9 अक्तूबर 1979 । पटना के श्रीकृष्ण स्मारक भवन में जय प्रकाश नारायण का शव अंतिम दर्शन के लिए रखा गया था।
संजय गांधी के साथ इंदिरा गांधी वहां पहुंचीं।
इंदिरा जी की कार जैसे ही भवन के द्वार पर पहुंची,युवा कांग्रेसियों ने उनके पक्ष में तेज नारे लगाने शुरू कर दिए।
प्रतिक्रियास्वरूप जेपी और युवा जनता से जुड़े युवजनों ने इंदिरा गांधी मुर्दावाद का नारा शुरू किया।
एक तरफ युवा कांग्रेसी और दूसरी ओर वाहिनी और युवा जनता के कार्यकत्र्तागण।
दोनों एक दूसरे पर टूट पड़े।अजीब तनावपूर्ण दृश्य उपस्थित हो गया।
स्थिति बिगड़ते देख जनता पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर तेजी से इंदिरा जी के पास पहुंच गए।
चंद्र शेखर जी ने इंदिरा जी के अगल -बगल अपनी बांहों का घेरा बनाया और हाथापाई पर उतारू भीड़ को बुरी तरह फटकारा।
वह चंद्र शेखर के दबंग व्यक्तित्व का ही असर था कि इंदिरा-संजय के साथ उस दिन कोई अप्रिय घटना नहीं हुई।
पटना में श्रीकृष्ण स्मारक भवन से जब जेपी का शव पास ही बह रही गंगा नदी किनारे श्मशान घाट पहुंचा तो वहां भी एक अप्रिय दृश्य इंतजार कर रहा था।
प्रधान मंत्री चरण सिंह,राज नारायण और जार्ज फर्नांडिस के खिलाफ नारे लगाए गए।उन्हें दल बदलू कहा गया।
दरअसल जेपी आंदोलन और आपातकाल से जन्मी मोरारजी सरकार को दल बदल कर गिराने वाले चरण सिंह तथा उनके समर्थकों पर पटना के अनेक लोग सख्त नाराज थे।
खैर, इन दो दृश्यों के अलावा जेपी की ऐतिहासिक शव यात्रा में बाकी सब कुछ ठीकठाक गुजरा।
शव यात्रा में करीब 15 लाख लोग शामिल हुए थे।
इनके अलावा अंतिम दर्शन के लिए बाहर से आए व्यक्तित्वों में राष्ट्रपति एन.संजीव रेड्डी,प्रधान मंत्री चरण सिंह,पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी और मोरारजी देसाई,आचार्य जे.बी.कृपलानी,नाना जी देशमुख और जगजीवन राम प्रमुख थे।
इनके अलावा कश्मीर,महाराष्ट्र,मध्य प्रदेश,तमिलनाडु ,पंजाब,उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश के मुख्य मंत्री शोकगस्त भीड़ में शामिल थे।
उससे पहले 8 अक्तूबर, 1979 की सुबह पटना के कदम कुआं स्थित उनके आवास में जेपी का 77 साल की उम्र में निधन हो गया।
स्वतंत्रता सेनानी व 1974 के चर्चित बिहार आंदोलन के नेता जय प्रकाश नारायण की किडनी उस समय खराब हो गयी थी जब वे आपातकाल में जेल में थे।
करीब चार साल से वे डायलिसिस पर थे।
8 अक्तूबर की सुबह करीब 4 बजकर 40 मिनट पर जेपी की नींद खुली।
फारिग होकर हाथ पैर धोया और फिर लेट गए।
सेवक अमृत से उन्होंने समय पूछा और कहा कि तुम जाओ अब मैं सोऊंगा।पर अमृत कुछ देर तक वहीं रहा।फिर बाहर आ गया।
कुछ देर बाद जब दूसरा सेवक गुलाब भीतर गया तो देखा कि
जेपी का एक हाथ लटका हुआ है।
तुरंत डाक्टर बुलाए गए।डा.सी.पी.ठाकुर उनके निजी चिकित्सक थे।
डाक्टर ने उनमें चेतना लाने की कोशिश की ,किन्तु सब बेकार।
सत्ता की राजनीति से दूर रहे जय प्रकाश नारायण के निधन पर सी.पी.आई.के अध्यक्ष एस.ए.डांगेे ने कहा था कि ‘राष्ट्र ने एक बेचैन आत्मा खो दी है।’
संयुक्त राष्ट्र महा सभा के अध्यक्ष सलीम ने महा सभा की कवर्यवाही रोक कर जेपी के निधन की सूचना दी और कहा कि ‘वह अन्याय के खिलाफ चाहे वह किसी भी शकल में हो,
आंदोलन करते रहे।
1977 के चुनाव में इंदिरा गांधी के सत्ताच्युत होने का कारण जेपी ही बने थे।फिर भी इंदिरा जी उनके अंमित दर्शन के लिए पटना पहुंचीं।
1977 में मोरारजी देसाई को प्रधान मंत्री बनाने में जेपी और जे.बी.कृपलानी की मुख्य भूमिका थी।हालांकि बाद में मोरारजी से जेपी का मन मुटाव हो गया था।
उस समय की राजनीतिक-प्रशासनिक स्थिति से क्षुब्ध जेपी ने तो एक बार एक भेंट वात्र्ता में यहां तक कह दिया था कि यदि अब नक्सली हथियार उठाएंगे तो मैं उन्हें नहीं रोकूंगा।
उससे पहले 1969 के मुसहरी नक्सल कांड के शमन के लिए जेपी ने वहां कैम्प किया था।
फिर भी मोरारजी देसाई भी जेपी के अंतिम दर्शन के लिए पहुंचे।
राष्ट्रपति ऐसे अवसरों पर कम ही निकलते हैं।पर नीलम संजीव रेड्डी के लिए वह तो विशेष अवसर बना ।
बिहार के जो लोग उस दिन पटना नहीं पहुंच सके थे,उन लोगों ने अपने -अपने शहरों में शोक जुलूस निकाला और शोक सभाएं कीं।
उन दिनों परिवहन के साधन कम थे।यहां तक कि पटना के निकट तब तक गंगा में कोई पुल भी नहीं था।
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अपनी विशेष बैठक कर सात दिनों तक शोक मनाने का निर्णय किया।
बिहार सरकार ने 13 दिनों तक शोक मनाया।
सत्ता से जुड़े नहीं रहने के बावजूद देश -विदेश से शोक संवदेनाएं प्रकट करने की इतनी अधिक खबरें आई थीं कि वह संख्या हैरान करने वाली थी।
@ यह लेख 8 अक्तूबर 2018 के फस्र्टपोस्ट हिन्दी में प्रकाशित मेरे साप्ताहिक काॅलम ‘दास्तान ए सियासत’ से@
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