पत्रकार व लेखक आर.जगन्नाथन ने ठीक ही लिखा है कि
‘मी टू’ के तहत तमाम महिलाओं ने जो अपनी व्यथा बयान की है ,उसमें मीडिया सहित तमाम क्षेत्रों की बड़ी हस्तियों के नाम भी सामने आ रहे हैं।
ऐसे में शिकायतों के संज्ञान,जांच और न्याय के लिए हमें एक स्थायी तंत्र की दरकार है।
यह कोई इक्का-दुक्का मामला नहीं,बल्कि महामारी जैसी स्थिति है।’
जगन्नाथन के कथन का पूर्ण समर्थन करते हुए मैं भी यह महसूस करता हूं कि मानवाधिकार आयोग की तरह इस देश में ‘प्रतिष्ठाधिकार आयोग’ का गठन होना चाहिए।
आज राजनीति में पर्याप्त संख्या में महिलाओं के न आने का
सबसे बड़ा कारण मैं इसे ही मानता हूं।
आज महिलाओं के नाम पर राजनीति में छोटे-बड़े नेताओं की पत्नियां,बेटियां व अन्य करीबी रितेदार ही अधिक हैं।उनकी संख्या बढ़ती जा रही हैं।
सामान्य परिवारों की महिलाओं के लिए बड़ी दिक्कतें हैं।और कुछ नहीं तो उन्हें नाहक बदनाम कर देने का प्रचलन राजनीति में बहुत है।
यदि राजनीति में रह चुकी महिलाएं ‘मी टू’ अभियान में शामिल हो जाएं तो इस देश के अनेक दिवंगत व मौजूदा नेताओं का असली चेहरा सामने आ जाएगा।
इस ‘मी टू’ अभियान से यह तो हो ही सकता है कि आगे कोई ‘शर्म हया’ वाला व्यक्ति ऐसा कुछ करने से पहले कई बार सोचेगा।पर सवाल यह भी है कि कितने प्रभावशाली लोगों के पास शर्म हया बचा हुआ है ? बेशर्म लोगों की हरकतें तो जारी ही रहनी हैं।
फिर भी उम्मीद की जाए कि यदि कोई आयोग बन जाए तब कुछ तो फर्क आ ही सकता है।
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