दिवंगत भाजपा सासंद भोला सिंह की याद में
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बिहार के गृह राज्य मंत्री भोला सिंह ने एक दिन मुझे फोन पर कहा, ‘सुरेंद्र जी, आप घाव तो गहरे करते हैं।पर कभी -कभी मलहम भी लगाया कीजिए।’
यह बात उस समय की है जब मैं जनसत्ता का बिहार संवाददाता था।
मध्य बिहार में एक नर संहार हुआ था।
मरने वाले कमजोर वर्ग के लोग थे।
घटना स्थल पर मेरे पहुंचने से पहले ही भोला बाबू वहां का दौरा कर चुके थे।वह नक्सल प्रभावित इलाका था।
उन दिनों माओवादियों और भूमिपतियों के बीच मारकाट मची हुई थी।
मृतकों के परिजनों ने मुझे बताया कि भोला बाबू आए थे।
वे भूमिपतियों से राइफल के लाइसेंस के आवेदन पत्र बटोर कर ले गए।
‘जनसत्ता’ में यही खबर छपी थी।
खबर तो सरकार के लिए मारक थी।पर एक पत्रकार से निपटने का भोला बाबू का शालीन तरीका देखिए।
किसी ने उन्हें बता दिया था कि जनसत्ता वाला न तो धमकी में आएगा और न ही प्रलोभन में।पर एक तरीके से उसे
प्रभाव में लाया जा सकता है।उसे आप अच्छी -अच्छी खास एक्सक्लूसिव खबरें दे दिया कीजिए।
इसीलिए जब मैं दूसरे दिन उन्हें ‘मलहम लगाने’ उनके आवास पर पहुंचा तो उन्होंने पहले से ही एक अच्छी खबर की फाइल मेरे लिए तैयार रखी थी।
वह हमारे अखबार में प्रमुखता छपी।मुझे भी अच्छा लगा।
भोला बाबू ने उस दिन राइफल लाइसेंस वाली खबर की चर्चा तक नहीं की।
वे न सिर्फ भाषण कला में माहिर थे,बल्कि व्यक्तिगत बातचीत में अनोखे थे।
उनके साथ बैठकर बातचीत करना अच्छा लगता था।
अपने लंबे राजनीतिक कैरियर में वे अपनी शत्र्तों पर जिये।
निडर और स्वाभिमानी थे।फिलहाल भाजपा सांसद थे ,पर नेतृत्व से नाराज चल रहे थे।
जब जो पार्टी उन्हें मनोनुकूल नहीं लगी,उसे तुरंत छोड़ा।
वे बिहार के दूसरे नेता थे जो बारी -बारी से सी.पी.आई.और भाजपा के विधायक रहे।पहले विधायक थे नालंदा जिले के देव नाथ प्रसाद थे।पता नहीं, किसी अन्य राज्य में ऐसा कोई उदाहरण है या नहीं ।संभवतः उत्तर प्रदेश में ऐसा उदाहरण है !
और लोगों के लिए वे जो कुछ हों, पर मुझे तो वे अपनी वाक् पटुता और कुशल वक्तृत्व कला के लिए याद रहेंगे।
@20 अक्तूबर 2018@
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बिहार के गृह राज्य मंत्री भोला सिंह ने एक दिन मुझे फोन पर कहा, ‘सुरेंद्र जी, आप घाव तो गहरे करते हैं।पर कभी -कभी मलहम भी लगाया कीजिए।’
यह बात उस समय की है जब मैं जनसत्ता का बिहार संवाददाता था।
मध्य बिहार में एक नर संहार हुआ था।
मरने वाले कमजोर वर्ग के लोग थे।
घटना स्थल पर मेरे पहुंचने से पहले ही भोला बाबू वहां का दौरा कर चुके थे।वह नक्सल प्रभावित इलाका था।
उन दिनों माओवादियों और भूमिपतियों के बीच मारकाट मची हुई थी।
मृतकों के परिजनों ने मुझे बताया कि भोला बाबू आए थे।
वे भूमिपतियों से राइफल के लाइसेंस के आवेदन पत्र बटोर कर ले गए।
‘जनसत्ता’ में यही खबर छपी थी।
खबर तो सरकार के लिए मारक थी।पर एक पत्रकार से निपटने का भोला बाबू का शालीन तरीका देखिए।
किसी ने उन्हें बता दिया था कि जनसत्ता वाला न तो धमकी में आएगा और न ही प्रलोभन में।पर एक तरीके से उसे
प्रभाव में लाया जा सकता है।उसे आप अच्छी -अच्छी खास एक्सक्लूसिव खबरें दे दिया कीजिए।
इसीलिए जब मैं दूसरे दिन उन्हें ‘मलहम लगाने’ उनके आवास पर पहुंचा तो उन्होंने पहले से ही एक अच्छी खबर की फाइल मेरे लिए तैयार रखी थी।
वह हमारे अखबार में प्रमुखता छपी।मुझे भी अच्छा लगा।
भोला बाबू ने उस दिन राइफल लाइसेंस वाली खबर की चर्चा तक नहीं की।
वे न सिर्फ भाषण कला में माहिर थे,बल्कि व्यक्तिगत बातचीत में अनोखे थे।
उनके साथ बैठकर बातचीत करना अच्छा लगता था।
अपने लंबे राजनीतिक कैरियर में वे अपनी शत्र्तों पर जिये।
निडर और स्वाभिमानी थे।फिलहाल भाजपा सांसद थे ,पर नेतृत्व से नाराज चल रहे थे।
जब जो पार्टी उन्हें मनोनुकूल नहीं लगी,उसे तुरंत छोड़ा।
वे बिहार के दूसरे नेता थे जो बारी -बारी से सी.पी.आई.और भाजपा के विधायक रहे।पहले विधायक थे नालंदा जिले के देव नाथ प्रसाद थे।पता नहीं, किसी अन्य राज्य में ऐसा कोई उदाहरण है या नहीं ।संभवतः उत्तर प्रदेश में ऐसा उदाहरण है !
और लोगों के लिए वे जो कुछ हों, पर मुझे तो वे अपनी वाक् पटुता और कुशल वक्तृत्व कला के लिए याद रहेंगे।
@20 अक्तूबर 2018@
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