शुक्रवार, 26 अक्तूबर 2018

जिनमें  राजनीतिक जागरूकता अधिक है,उनमें से कई लोग अब बेचैनी से यह पूछने लगे हैं कि 2019 के लोक सभा के चुनाव में कौन गठबंधन जीतेगा ?
कई लोगों को यह लगता है कि एक बार फिर नरेंद्र मोदी की सरकार बनेगी।कुछ दूसरे लोगों की राय अलग है।
पर, किसी के लगने को कोई आधार नहीं बनाया जा सकता।
 देखना होगा कि अब तक ठोस संकेत क्या-क्या हैं ?
छह माह पहले ठोस संकेत मिलने हालांकि मुश्किल है।
 पर, एक -दो बातों पर तो गौर किया ही जा सकता है।
 आज देश के इलेक्ट्रानिक व प्रिंट मीडिया का एक बड़ा हिस्सा दो खेमों में साफ-साफ बंटा हुआ दिखाई पड़ता है।
 एक खेमा नरेंद्र मोदी को हटाने की कोशिश में लगा हुआ है तो दूसरा हिस्सा उन्हें बचाने के प्रयास में।
 अब देखना यह होगा कि किस खेमे को अधिक दर्शक व पाठक मिल रहे हैं।जहां आकर्षण अधिक है,उसके सफल होने के संकेत हैं,ऐसा कहा जा सकता है।
हालांकि मेरे पास दर्शक-पाठक के उन आंकड़े को जानने का कोई उपाय नहीं है।
 दूसरा संकेत विभिन्न दलों को मिलने वाले चंदे के आंकड़ों से मिल सकता है।
  6 मई 2014 के टाइम्स आॅफ इंडिया में प्रदीप ठाकुर ने लिखा था कि मोदी लहर चलने से बहुत पहले ही भाजपा की तिजोरी भरने लगी थी।
2012-13 में भाजपा को घोषित चंदा के रूप में 82 करोड़ 82 लाख रुपए मिले थे जबकि उसी अवधि में कांग्रेस को 11 करोड़ 42 लाख रुपए।
  याद रहे कि तब मन मोहन सिंह की सरकार थी।
अब जब नरेंद्र मोदी की सरकार है और चुनाव सामने हैं तो किस दल को कितना चंदा मिला या मिल रहा है ?
यह आंकड़ा जानने का भी मेरे पास कोई जरिया नहीं है।
जो जान पाएंगे ,वे हवा के रुख का अनुमान लगा सकते हैं।
 कभी- कभी सट्टा बाजार वालों का अनुमान परंपरागत चुनाव विश्लेषकों से अधिक सटीक होता है।
क्या सट्टा बाजार वाले अभी से सन 2019 के नतीजे का अनुमान लगा रहे हैं ? पता नहीं।
 कुछ चुनाव विश्लेषक समय -समय पर बड़े नेताओं की लोकप्रियता के अनुमान के लिए सर्वेक्षण कराते रहते हैं।
उन सारे नतीजों का औसत क्या है ?
 छह महीना पहले किसी चुनाव नतीजे के बारे में पूर्वानुमान लगा पाना इसलिए भी कठिन  है क्योंकि इस बीच दोनों पक्षों की ओर से न जाने कितने चुनावी ,राजनीतिक तथा अन्य तरह के ब्रह्मा़स्त्र चलाये जाएंगे और उनके भी कुछ नतीजे होंगे।
 चूंकि लोगबाग अब एक दूसरे से पूछने लगे हैं ,मुझसे भी पूछते  रहते हैं,इसलिए मैंने यह पोस्ट लिख दिया ।  


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