सोमवार, 29 अक्तूबर 2018

 ‘स्टार इंडिया’ के अध्यक्ष और मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी उदय शंकर से नलिन मेहता की बातचीत आज के टाइम्स आॅफ इंडिया के संपादकीय पेज पर छपी है।
  उदय शंकर बिहार से हैं और अस्सी के दशक में पटना में टाइम्स आॅफ इंडिया के संवाददाता थे।
एक अखबार के युवा संवाददाता से स्टार इंडिया के अध्यक्ष  तक की यात्रा  कैसी रही होगी,यह तो उदय शंकर ही बता सकते हैं,पर मैंने जो कुछ थोड़ा देखा-सुना है,उसे यहां दर्ज कर देना चाहता हूंं ताकि बिहार के अन्य युवा, उदय शंकर से प्रेरित हों।
  उदय शंकर से मेरी पहली मुलाकात के साथ ही मैंने अनुमान लगा लिया था कि यह लड़का बहुत ऊपर जाएगा।पर,इतना ऊंचा जाएगा,इसकी पूर्व कल्पना तो मुझे भी नहीं थी।उदय शंकर पर मुझे और बिहारवासियों को गर्व है।
   मेरी मुलाकात का कारण ही वैसा था।
उन दिनों में मैं जनसत्ता का बिहार ब्यूरो प्रमुख था।एक शाम दो नौजवान मेरे आॅफिस आए।
उदय शंकर और उसी अखबार दूसरे संवाददाता वी.वी.पी.शर्मा।संभवतः इन दोनों से मेरा परिचय उसी दिन हो रहा था।
उदय ने आते -आते  कहा कि ‘सुरेंद्र जी,मैं आपको देखने आ गया।क्योंकि भागवत झा आजाद ने आपकी तारीफ की।
मुख्य मंत्री ने हमें कहा कि  यहां तो सिर्फ दो ही ईमानदार पत्रकार हैं।एक सुमंत सेन और दूसरे सुरेंद्र किशोर।
मैं तुम लोगों से क्या बात करूं ?
तुम्हारा बाॅस तो जगन्नाथ का आदमी है।’
 याद रहे कि मैं कभी आजाद जी से मिला नहीं था। स्वाभाविक ही है कि मुझे यह अच्छा लगा कि आजाद जी ने मेरी तारीफ की जो कभी किसी तारीफ नहीं करते।इतना ही नहीं, मैं उनके खिलाफ भी यदाकदा खबरें लिख रहा था।फिर भी तारीफ की।
 इधर पहली मुलाकात में ही मुझे लग गया कि उदय शंकर हीन भावना से मुक्त व्यक्ति हैं । आत्म विश्वास से भरे हुए भी। शायद उन्हें लगता होगा कि मैं तो एक दिन सुरेंद्र किशोर
से भी काफी ऊपर जाऊंगा।ये व्यक्ति मेरे प्रतिद्वंद्वी तो हैं नहीं ।फिर इनकी तारीफ करने में मेरा कोई नुकसान नहीं।
वे ऊंचा पहुंचे भी।अपनी योग्यता,प्रतिभा,आत्म विश्वास और सलाहीयत के बल पर ।
उस दिन के बाद तो उदय शंकर अक्सर  मेरे जनसत्ता आॅफिस आने लगे।हमलोग भूजा खाते।गप करते।
उदय शंकर अपनी बातों से कभी किसी को आहत नहीं करते।
स्टार इंडिया ज्वाइन करने के बाद भी उदय शंकर मेरे पास आए थे।तब मैं हिन्दुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुस्तान का राजनीतिक संपादक था।
उन्होंने आते ही कहा कि ‘सुरेंद्र जी, भूजा मंगवाइए।’
मैंने मंगवाया ।लगा कि उनमें कुछ बदला नहीं था।
 अब तो वे अध्यक्ष हैं।कुछ और भी हैं।
कैसा लगता है जब उसी बड़े अखबार में उस व्यक्ति का इंटरव्यू छपे जिस अखबार से  कभी उसने नौकरी की शुरूआत की हो !
  अब जरा भागवत जी के बारे में ।स्टेट्समैन के बिहार संवाददाता व मेरे मित्र मोहन सहाय का मुख्य मंत्री के यहां आना -जाना अपेक्षाकृत अधिक था।मैं एक दिन उनके साथ वहां गया।मोहन जी ने आजाद जी से मेरा परिचय कराया,‘यही हैं जनसत्ता के सुरेंद्र किशोर।’
मुझे देखते ही आजाद जी की त्योरी चढ़ गयी।उन्होंने कोई अन्य बात करने की जगह यह कहा,‘आपको जो मन करे, मेरे बारे में लिखते रहिए।मैं उसकी कोई परवाह नहीं करता।’
मैं तो यह देखने गया था कि जिसे वह सबसे ईमानदार पत्रकार मानते हैं, उसके साथ उनका कैसा व्यवहार होता है।
पर जो मैंने सुना था,वही हुआ, ‘भागवत जी के सामने पड़ जाना किसी के लिए सुरक्षित नहीं होता है।’
  हालांकि मेरी समझ से अन्य किसी मुख्य मंत्री से वे बेहतर काम कर रहे थे। यदि वे 1989 के चुनाव तक मुख्य मंत्री रह गए होते तो बोफर्स के बावजूद कांग्रेस की उतनी बुरी गत नहीं होती जैसी  हुई।
भागवत जी के  मुख्य मंत्री बनने के तत्काल बाद  मशहूर पत्रकार जर्नादन ठाकुर ने जो लेख लिखा था,उसका शीर्षक था-‘दैत्यों की गुफा में भागवत झा आजाद।’
 यह शीर्षक अकारण नहीं था।

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