सन 1998 में सहरसा के डी.एस.पी.सतपाल सिंह खूंखार अपराधियों के गिरोह की गोलियों के शिकार हुए तो यह आरोप लगा था कि तत्कालीन एस.पी.ने सूचना मिलने के बावजूद डी.एस.पी.की जान बचाने के लिए समय पर
अतिरिक्त पुलिस बल नहीं भेजा था।
तब यह भी आरोप लगा था कि राजनीतिक कारणों से एक डी.एस.पी. की जान चली गयी।
पर, अब जब शुक्रवार की रात कम पुलिस बल के कारण थानेदार आशीष सिंह की जान चली गयी तो क्या कहा जाए ?
बिहार पुलिस ने एक डी.एस.पी.गंवा कर भी यह मामूली बात नहीं सीखी कि खूंखार अपराधियों के बड़े गिरोह के मुकाबले के लिए कम पुलिस बल के साथ किसी अफसर को नहीं भेजा जाना चाहिए।
अतिरिक्त पुलिस बल नहीं भेजा था।
तब यह भी आरोप लगा था कि राजनीतिक कारणों से एक डी.एस.पी. की जान चली गयी।
पर, अब जब शुक्रवार की रात कम पुलिस बल के कारण थानेदार आशीष सिंह की जान चली गयी तो क्या कहा जाए ?
बिहार पुलिस ने एक डी.एस.पी.गंवा कर भी यह मामूली बात नहीं सीखी कि खूंखार अपराधियों के बड़े गिरोह के मुकाबले के लिए कम पुलिस बल के साथ किसी अफसर को नहीं भेजा जाना चाहिए।
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