मंगलवार, 9 अक्तूबर 2018

जबल पुर आम्र्स फैक्ट्री से ए के -47 अवैध ढंग से निकाले 
जाते थे और उन्हें 900 किलोमीटर दूर मुंगेर पहुंचा कर 
बेचे जाते थे।
 फैक्ट्री के रद किन्तु  मरम्मत योग्य हथियार आयुध कारखाने के कर्मचारी के सहयोग  से  तस्कर के हाथ पहुंच जाते थे।तस्कर उन्हें मरम्मत करवा कर मुंगेर पहंुचा देते थे।
  आखिर ये अवैध हथियार कैसे 900 किलोमीटर चले और बीच में किसी पुलिस ने नहीं पकड़ा ?
कैसे पकड़ेगी ? सबके हिस्से बंधे जो होते हैं।
लंबे समय से ऐसे ही यह देश चल रहा है।
 हालत तो यह है कि किसी दिन कोई विदेशी हमारे देश में 
और भी खतरनाक काम कर सकता है।
क्योंकि यहां बिकने के लिए अनेक लोग सदा तैयार रहते हैं।ऐसे देशद्रोहियों को बचाने वाले लोग भी यहां मौजूद हैं।ऐसे लोगों के लिए आधी रात में सुप्रीम कोर्ट भी खुलवा दिया जाता है।
  मुंगेर कांड की तरह कुछ अन्य कांड़ों के उदाहरण यहां पेश हैं।
1995 में एक छोटे विदेशी विमान से बहुत सारे हथियार पश्चिम बंगाल में गिरा दिए गए।
वे हथियार पश्चिम बंगाल के सत्ताधारी कम्युनिस्टों से लड़ने के लिए कुछ लोगों ने बाहर से मंगवाए थे।
चाहे जिस उद्देश्य से आए हों,पर यहां पहंुचाने के तरीके बताए जा रहे हैं ताकि हमारे हुक्मरानों की नींद  अब भी तो खुले।
 उस विमान ने उससे पहले मद्रास में ईंधन भी लिया था।
बाद मंे यह भी पता चला कि उस हथियार वाले विमान के पुरूलिया आने के समय कलकत्ता एयरपोर्ट पर स्थित  चारों मशीनें मरम्मत के लिए बंद थीं जिनसे अवांछित विमानों की पहचान होती है।नियमतः बारी -बारी से ऐसी मशीनों  की मरम्मत की जाती  है।
   1993 में बंबई को दहलाने के लिए पाकिस्तान से बड़ी मात्रा में विस्फोटक पदार्थ समुद्री मार्ग से आसानी से बंबई पहंुचा दिए गए थे।उसके लिए पुलिस व कोस्ट गार्ड ने रिश्वत ली थी।
स्मगलर पहले एक डोंगी को पार कराने के लिए 350 रुपए घूस देते थे।
जब विस्फोटक पदार्थों के प्रति तस्करों की सावधानी देखी तो भ्रष्ट कोस्ट गार्ड और पुलिस ने उनसे कहा कि लगता है कि कोई कीमती चीज है।ज्यादा पैसे लगेंगे।तस्करों ने रिश्वत दुगुनी कर दी थी।जाहिर है कि रिश्वत के पैसे ऊपर तक जाते हैं।
  आपातकाल में गुजरात से दो बार डायनामाइट पटना आसानी से आ गया था।एक बार बिहार के लोग लाए,दूसरी बार गुजरातियों ने पहुंचाया।डायनामाइट आपातकाल से लड़ने के लिए आए थे।
 सोहराबुद्दीन का नाम सुना होगा। 2005 में वह मारा गया था।वह गुजरात सहित तीन राज्यों के मार्बल व्यवसायियों से हफ्ता वसूलता था और न देने पर हत्याएं करता था।
उसके मध्य प्रदेश स्थित गांव के कुएं से पुलिस ने 1995 में अन्य हथियारों के साथ 40 ए.के.-47 भी बरामद किए थे।
सोहराबुद्दीन वह सारे हथियार अहमदाबाद से इंदौर के पास अपने गांव ले जा सका था क्योंकि बीच में रिश्वत लेकर पार कराने वाली पुलिस कदम -कदम पर मौजूद थी।
 इस तरह के और न जाने और कितने उदाहरण इस देश में आपको मिल जाएंगे।
शासन की ऐसी कमजोरियों पर कभी कोई गंभीर चर्चा नहीं होती।चुनाव में तो और भी नहीं।क्योंकि उससे कुछ वोट बिगड़ने का खतरा जो रहता है।
हां,जब सोहराबुददीन
मारा जाता है तो पुलिस अफसरों को जेल जरूर हो जाती है।
कुछ दिन के बाद सुनिएगा कि ताजा मुंगेर हथियार कांड के अपराधियों के बचाव में भी कितने बड़े -बड़े लोग आगे आ जाते हैं।
हां,यह एक अच्छी बात है कि सुप्रीम कोर्ट के नये मुख्य न्यायाधीश ने कह दिया कि अब हम फांसी के मामले को छोड़ कर बारी से पहले कोई केस  नहीं सुनेंगे।    

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