गुरुवार, 31 अक्टूबर 2019

एम.जी.आर.को 1988 में और 
पटेल को 1991 में भारत रत्न !!!
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हर साल उनकी जयंती के अवसर पर कुछ लोग यह सवाल पूूछते हैं । 
‘भारत रत्न’ एम.जी.आर.को 1988 में और सरदार वल्लभ भाई पटेल को उनके तीन साल बाद यानी 1991 में क्यों दिया
 गया ?
क्या देश के निर्माण में एम.जी.आर.का योगदान पटेल की अपेक्षा अधिक था ?
किसका कितना योगदान था,यह पूरा देश जानता है।
पर, इस मामले में सरदार पटेल की उपेक्षा ने यह साबित कर दिया कि भारत रत्न या कोई अन्य पद्म पुरस्कार देने की कोई भी कसौटी नहीं रही है।
यह अंधे की रेबड़ी की तरह है।
खुशवंत सिंह ने एक बार लिखा था कि मुझे आज तक यह समझ में नहीं आया कि पद्म पुरस्कार देने का आधार क्या है।

आदित्य ठाकरे को मुख्य मंत्री बनाने का 
मतलब होगा,लर्नर्स ड्राइविंग लाइसेंस 
वाले को नेशनल हाईवे पर 
गाड़ी चलाने देना।

बुधवार, 30 अक्टूबर 2019

  छठ पर्व के अवसर पर पटना में 
75 रुपए किलो ए-वन सेब उपलब्ध
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पटना में 75 रुपए किलोग्राम सेब और 25 रुपए में एक नारियल !
 वह भी ए -वन गुणवत्तायुक्त।
  छठ पर्व के अवसर पर ‘बिस्कोमान’ इसी दर से बेच रहा है।
इसके लिए 20 काउंटर खोले गए हैं।
बिस्कोमान यानी बिहार स्टेट कोआॅपरेटिव मार्केटिंग यूनियन लि.।
2 नवबंर के दो बजे तक बिक्री जारी रहेगी।
कश्मीर से 50 ट्रक सेब और आंध्र से 30 ट्रक नारियल मंगाए गए हैं।
इसके लिए ‘बिस्कोमान’ को धन्यवाद।
यदि बिस्कोमान सालों भर यह काम करे तो उससे न सिर्फ जन स्वास्थ्य कल्याण होगा,कीमतों पर काबू पाना संभव होगा, साथ -साथ बिस्कोमान की छवि भी बेहतर बनेगी। 
   सेब-नारियल की बिक्री में अभी तो बिस्कोमान लाभ नहीं लेगा।
  पर भविष्य में यदि वह बहुत कम लाभ लेकर भी कम दाम में गुणवत्तापूर्ण सामग्री की आपूत्र्ति करने का निर्णय करे तो भी उसे लाभ ही होगा।
इसके साथ ही वह ड्राई फ्रूट और हरी सब्जी आदि की आपूत्र्ति भी कर सकता है।
 बिस्कोमान को इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि रासायनिक खाद की बिक्री धीरे -धीरे कम होगी।
वैसे में बिस्कोमाॅन के समक्ष विकल्प रहना चाहिए।
--सुरेंद्र किशोर-30 अक्तूबर 2019

मंगलवार, 29 अक्टूबर 2019

  चुनाव नतीजों के विश्लेषण में डंडीमारी
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किसी भी चुनाव नतीजे को लेकर कुछ बुद्धिजीवी लोग अपनी -अपनी सुविधा, विचारधारा तथा अन्य कारणों से ऐसे-ऐसे विश्लेषण पेश करने लगते हैं जिनका सरजमीन से कोई संबंध ही नहीं होता।
महाराष्ट्र-हरियाणा चुनाव में सत्ताधारी दल को अपेक्षाकृत कम सीटें मिलीं तो कुछ भाई लोग इसमें देश की राष्ट्रीय राजनीति में संभावित भारी बदलाव की उम्मीद पालने लगे।
   अरे भई, शरद पवार और भूपेंदर सिंह हुड्डा के खिलाफ जांच एजेंसियों की अति सक्रियता के कारण उनकी जातियों के अनेक मतदाताओं ने बड़ी संख्या ने सत्ताधारी दल के खिलाफ वोट दे दिए।
 गंभीर विचार-विमर्श तो अब इस बात पर होना चाहिए था कि यदि एक-एक करके भ्रष्टाचार के आरोपियों पर कार्रवाई होती रहे और  उनकी जातियों के अधिकतर लोग आरोपी के दल के पक्ष में ‘सहानुभूति मतदान’ करने लगें तो इस देश के लोकतंत्र का आखिर क्या होगा ? 
   कोई तानाशाह पैदा नहीं होगा ?
क्या लोकतंत्र देश को लूटने के लिए है ?
महात्मा गांधी ने कहा था कि ‘भ्रष्टाचार को लोकतंत्र  की अपरिहार्य उपज नहीं बनने दिया जाना चाहिए।’
दरअसल आजादी के बाद उनके जीवनकाल मंे ही उसके संकेत मिलने लगे थे।
गांधी ने बिहार के एक कैबिनेट मंत्री को हटाने को कहा था जिस पर भ्रष्टाचार के आरोप की खबर मिलनी शुरू हो गई थी।
पर, तब गांधी की बात नहीं मानी गई।

रामजी मिश्र मनोहर की याद में 
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हम तो दिवंगत नेताओं को  समय -समय पर याद करते हैं।
पर, चैथे स्तम्भ यानी पत्रकारिता क्षेत्र की वैसी
हस्तियों को भी सामान्यतः याद नहीं करते,जिनका उस क्षेत्र में योगदान रहा है और उनसे सीखने की इच्छा रखने वाले नई पीढ़ी के पत्रकार कुछ सीख सकते हैं।
   हमारे कई स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने शानदार शैक्षणिक रिकार्ड व शानदार कैरियर छोड़कर भी आजादी की लड़ाई में खुद को झोंक दिया था।
 उन्हें तो याद किया ही जाना चाहिए।
  पर, कम ही लोगों को मालूम है कि बहुत पहले सरकारी नौकरी के आॅफर व भरपूर संभावनाओं को नजरअंदाज करके कई लोगों ने दैनिक आर्यावत्र्त में अपेक्षाकृत कम पैसों पर पत्रकारिता की नौकरी शुरू की थी।
 ऐसा देश के अन्य मीडिया हलके में भी हुआ।
ऐसे में जब आज के कुछ अखबारों के जरिए रामजी मिश्र मनोहर को याद किया गया तो संतोष हुआ। 
  मनोहर जी उन वरीय पत्रकारों में शामिल थे जिनसे थोड़ा-बहुत मुझे भी सीखने का मौका मिला था।
मैंने उनके साथ काम तो नहीं किया,पर जहां मैं काम करता था,यानी ‘आज’ में उसके संपादक पारसनाथ सिंह से मिलने वे अक्सर आते रहते थे।
हम जूनियर पत्रकारों की खबरें भी मनोहर जी पढ़ते थे और उसकी निर्ममतापूर्वक समीक्षा भी करते थे।
उससे हमें सीखने का मौका मिलता है।
पर, आज तो पत्रकारिता का नजारा ही लगभग बदल चुका है।
अब तो कुछ अपवादों को छोड़कर अधिकतर नए पत्रकार सिर्फ उन्हीं की आलोचनात्मक टिप्पणियां बेमन से बर्दाश्त करते हैं जिनके हाथों में उनके सेवा नवीकरण,वेतन वृद्धि और तबादला आदि के अधिकार होते हैं।
   ऐसे में मीडिया जगत की दिवंगत हस्तियों के गुणों को व विशेषताओं को याद किया जाए,तो सीखने की इच्छा रखने वाले कुछ मीडियाकर्मियों को शायद कुछ फायदा हो।
  ---सुरेंद्र किशोर--29 अक्तूबर 2019

सोमवार, 28 अक्टूबर 2019

अपनी जड़ों से जुड़ें !
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आज के अखबार में एक महत्वपूर्ण खबर छपी है।
एम्स, भोपाल के अध्ययन में एक आयुर्वेदिक एंटीबायोटिक दवा को एक प्रमुख बैक्टीरिया संक्रमण के खिलाफ प्रभावी पाया गया है।
   अभी -अभी मैंने भी आयुर्वेदिक दवाओं को बैक्टीरिया संक्रमण में अत्यंत प्रभावी पाया।
करीब एक सप्ताह पहले मैं खांसी-सर्दी से परेशान था।
किसी चिकित्सक के यहां जाने ही वाला था कि संयोग से स्वयंप्रकाश जी का फोन आ गया।
मेरी भारी आवाज सुनकर उन्होंने कहा कि ‘मैं
आपको दवा भिजवाता हूं।’
उन्होंने दवाएं भिजवाईं।
श्रीश्री की दवाएं थीं।
दवाएं गजब की कारगर साबित हुईं।
अब मैं पूरी तरह स्वस्थ हूं।
असावधानी से पिछले 
साल भी मौसम के संक्रमणकाल में मैं इसी तरह ‘संक्रमण’ परेशान हो गया था।
तब एलोपैथिक दवाएं ली थीं।
ठीक होने में अपेक्षाकृत अधिक समय लगा।
साथ ही, शरीर पर एंटीबाॅयटिक का प्रतिकूल असर भी पड़ा।
कई दिनों तक कमजोरी महसूस हुई ।
इस बार कमेजारी नाम की कोई चीज नहीं।
मैं अक्सर  कहता हूं कि 
आयुर्वेद लोअर कोर्ट है।
होमियोपैथ हाई कोर्ट और एलोपैथ सुप्रीम कोर्ट।
अधिकतर लोग सीधे सुप्रीम कोर्ट पहुंच जाते हैं।
हां,आयुर्वेद दवाओं में गुणवत्ता होनी चाहिए।
स्वामी रामदेव ने योग व आयुर्वेद के क्षेत्र में युगांतरकारी काम किया है।
उन्होंने योग को आसान बनाकर उसे घर- घर पहुंचाया।
प्रारंभिक दिनों में उनके आयुर्वेदिक दवाएं और भोज्य-खाद्य  पदार्थ भी गुणवत्तापूर्ण रहे।
पर, पतंजलि का जब भारी विस्तार होने लगा तो उन्होंने गुणवत्ता पर उतना  ध्यान नहीं दिया जितना देना चाहिए था।
  पर श्रीश्री की सामग्री अभी तो गुणवत्तापूर्ण लग रही है।
आगे जो हो !़      

बिहार विधान सभा उप चुनाव, 2019
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दारौंदा-2019
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कर्णजीत उर्फ व्यास सिंह
निर्दलीय-50645
अजय सिंह..
जदयू --23544
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दरौंदा-2015
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कविता सिंह-
जदयू-66255
जितेंद्र स्वामी-
भाजपा-53033
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नाथ नगर-2019
लक्ष्मीकांत मंडल-जदयू-55981
राबिया खातून-राजद-50850
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नाथ नगर-2015
अजय मंडल-जदयू-66485
अमरनाथ कुशवाहा-एलजेपी-58660
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बेलहर-2019
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राम देव यादव-राजद-76350
लालधारी यादव-जदयू-57119
बेलहर-2015
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गिरधारी यादव-जदयू -70348
मनोज यादव-भाजपा-54157
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सिमरी बख्तियार पुर-2019
जफर आलम-राजद-71435
अरूण कुमार-जदयू-55927
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सिमरी बख्तियार पुर-2015
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दिनेश यादव-जदयू-78514
युसूफ सलाउद्दीन-एलजेपी-40708
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किशन गंज-2019
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कमरूल--एआईएमआइएम--70469
स्वीटी सिंह-भाजपा-60285
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किशनगंज-2015
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मोहम्मद जावेद-कांग्रेस-66522
स्वीटी सिंह-भाजपा-57913
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रविवार, 27 अक्टूबर 2019

हमारे लोकतंत्र का ताजा हाल !!
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1.-18 हजार करोड़ रुपए का हिसाब नहीं 
दे रहे हैं बिहार के मुखिया।
--- 6 अक्तूबर, 2019 के एक अखबार की खबर
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2.-बिहार सरकार के इंजीनियरों ने विधायक फंड के 764 करोड़ रुपए का हिसाब नहीं दिया।
---3 अक्तूबर 2019 की खबर
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3.-इस बरसात में जब पटना डूब गया तो कहा गया कि अरबों के बजट वाले पटना नगर निगम में जारी भारी भ्रष्टाचार के कारण ही ऐसा हुआ।
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4.- भ्रष्टाचार के आरोप में जब शरद पवार के खिलाफ केंद्रीय जांच एजेंसियों ने अपनी सक्रियता बढ़ाई तो पवार के स्वजातीय मतदाताओं में से अधिकतर लोगों ने इस चुनाव में पवार के प्रति सहानुभूतिपूर्ण एकजुटता दिखा दी ।
5.-ऐसी ही एकजुटता भ्रष्टाचार के आरोप झेल रहे हरियाणा के कांग्रेसी नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ वहां के जाट मतदाताओं ने  दिखाई ।
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इस तरह की कहानियों की इस देश में कमी नहीं है।
इससे कोई दल अछूता भी नहीं है।
किसी दल पर कम आरोप हैं तो किसी पर अधिक।
हाल में यह खबर आई थी कि गत लोक सभा चुनाव लड़ने के लिए डी.एम.के.ने सी.पी.आई. को 15 करोड़ और सी.पी.एम.को 10 करोड़ रुपए दिए थे।
डी.राजा ने कहा कि यह चुनावी चंदा था।
ऐसे अनोखे चंदे की खबर पहली बार सुनी गई।
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त्रिपुरा की सी.पी.एम.सरकार के मंत्री रहे बादल चैधरी 630 करोड़ रुपए के घोटाले के आरोप में इसी महीने गिरफ्तार कर लिए गए।
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हरि अनंत ,हरिकथा अनंता !!!!!!!
----सुरेंद्र किशोर--27 अक्तूबर 2019

छपरा के एक सम्मानित बुजुर्ग से फोन पर अभी -अभी मेरी बातचीत हुई।
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार की नल जल योजना को 
लेकर लोगबाग निराश हो रहे हैं।
आगे -आगे नल लग रहे हैं और वे  पीछे -पीछे टूटते भी जा रहे हैं।
  काफी कमजोर नल लग रहे हैं।
ऊपर का कोई अधिकारी देखने वाला नहीं है।
  उनकी दूसरी शिकायत जानवारों द्वारा फसल की बर्बादी को लेकर है।
 गांवों में नीलगाय,जंगली सूअर और बंदर के उत्पात के कारण किसानों ने कुछ खास तरह की फसल बोना ही बंद कर दिया।
  बजुर्ग ने कहा कि मेरी  नीतीश कुमार से पूरी सहानुभूति है।
मैं यह भी नहीं चाहता कि फिर से बिहार में जंगल राज आए।
पर,इस बीच 2005 के बाद एक पीढ़ी  जवान हो गई है।उसने तो जंंगल राज न देखा और न भोगा।
कहीं ऐसा न हो कि नल -जल योजना में लूट के कारण राजग की हवा बिगड़ जाए ! 
 हालांकि  अब भी संभलने का समय है।

शनिवार, 26 अक्टूबर 2019

‘बिजली की तरह कौंधो और सूरज की तरह स्थायी हो जाओ’
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आज के तरह -तरह के भ्रष्टाचारियों से जो सत्ताधारी नहीं लड़ रहा है,वह दरअसल उनसे समझौता कर रहा है।
या, फिर उनसे डर रहा है।उसे इस क्रम में सत्ता जाने का डर है।
जो सत्ताधारी भ्रष्टाचारियों से लड़ने के क्रम में खतरा मोल लेने को तैयार नहीं रहता,उसका राजपाट वैसे भी जाने ही वाला है।
उनकी उम्मीद से जल्द ही ! 
  आज इन तत्वों से लड़ने की बेचैनी कुछ ही सत्ताधारियों के चेहरे और देह भाषा से परिलक्षित हो रही  है।
  क्या देवेंद्र फडणवीस और मनोहर लाल खट्टर के चेहरों पर वैसी कोई बेचैनी परिलक्षित हो रही थी ?
 मुझे तो उसकी निशानी नजर नहीं आई।वैसी कोई खबर भी नहीं आ रही थी।
नतीजतन इस बार उनकी सत्ता जाते-जाते बची।
मोदी का नाम आखिर उन्हें कितने दिनों तक बचा पाएगा ? 
  दूसरी ओर, नरेंद्र मोदी में वह बेचैनी परिलक्षित होती रही है ,इसीलिए पिछले लोस चुनाव की अपेक्षा अगले चुनाव में जनता ने उन्हें अधिक वोट दिए।
मोदी इस देश के पहले नेता हैं जो सिर्फ अपने बल -बूते लगातार दूसरी बार भी प्रधान मंत्री बने।
मोदी को  यदि जेहादियों से खतरा है तो आर्थिक अपराधियों से भी।
  1967 में जब नौ राज्यों में गैैर कांग्रेसी सरकारें बनीं तो गैर कांग्रेसवाद के रचयिता डा.राम मनोहर लोहिया ने अपने दल के सत्ताधारियों से कहा था कि
 ‘बिजली की तरह चमको और सूरज की तरह स्थायी हो जाओ।’
तब भी यह नहीं हो सका था।
इसलिए गैर कांग्रेसी सरकारें अल्पजीवी रहीं।
   आज भी बिजली की तरह कौंधने व सूरज की तरह स्थायी हो जाने की जरूरत है।
क्योंकि भ्रष्ट तत्व 1967 की अपेक्षा आज अधिक ताकतवर हैं।
 मेरा मानना है कि भ्रष्टाचार से ही अन्य अधिकतर बुराइयां पैदा होती हैं।उनका पालन-पोषण होता है।
एक बहुत बड़ी जानलेवा बुराई यानी खाद्य-भोज्य पदार्थों में व्यापक मिलावट के रुप में सामने है।
इससे पीढि़यों के नष्ट होने का खतरा है।
इस पर कल के दैनिक ‘आज’ में राज्य सभा सदस्य आर.के.सिन्हा का आंखें खोलने वाला लेख छपा है।
मिलावट के पीछे भी भीषण भ्रष्टाचार ही है।
हे सत्ताधारियो , यदि बाहर-भीतर के भ्रष्टों को निर्णायक रूप से अभी पराजित नहीं कर दोगे तो वे एक दिन  फिर तुम पर चढ़ बैठेंगे।
तुम पर क्या, जनता व देश पर चढ़ बैठेंगे।
फिर वे वही सब करेंगे जो करने की उनकी आदत रही है।
क्योंकि वे लोग नोबेल विजेता अभिजीत बनर्जी की इस स्थापना में विश्वास करते हैं कि 
‘‘भारत में भ्रष्टाचार अर्थ व्यवस्था के पहियों को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण था,इसे काट दिया गया है।
भ्रष्टाचार से लड़ना महंगा प्रयास है।’’
@दैनिक हिन्दुस्तान में प्रकाशित अभिजीत बनर्जी के इंटरव्यू से@
  याद रहे कि जब भी सत्ता बदलती है,तो ये तरह-तरह के तत्व नई सत्ता से जुड़ जाते हैं।
या, ऐसा करने की कोशिश में लग जाते हैं।
ऐसा करने का ‘कौशल’ जो उनके पास है !

हाल के चुनाव नतीजों ने एक बार फिर यह साफ कर दिया 
कि अपवादों को छोड़कर देश के कुछ नामी भ्रष्ट नेताओं का, उनकी जातियों  के अधिकतर मतदातागण अब भी साथ दे रहे हैं।
  लोकतंत्र की इस चिंताजनक स्थिति पर उन जातियों की नई पीढ़ी को ध्यान देना चाहिए।
  यदि ऐसा ही चलता रहा तो उन जातियों की नई पीढ़ी के लिए भी कुछ नहीं बचेगा।

  

शुक्रवार, 25 अक्टूबर 2019

बरकरार हैं कांग्रेस की चुनौतियां -- सुरेंद्र किशोर
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विधान सभा के चुनाव नतीजे कांग्रेस के राष्ट्रीय
स्तर पर कायाकल्प के कोई ठोस संकेत नहीं दे रहे हैं।
राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस के लिए अच्छे संकेत तब माने जाते जब हरियाणा के ही अनुपात में उसे महाराष्ट्र में भी सीटें मिलतीं।
लेकिन ऐसा नहीं हुआ। 
 जहां महाराष्ट्र में वह चैथे नंबर पर जाकर टिकी है,वहीं हरियाणा में उसके प्रदर्शन में राष्ट्रीय नेतृत्व का योगदान मुश्किल से ही नजर आता है।
  निःसंदेह इसके साथ इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि भाजपा का जहां महाराष्ट्र में दबदबा कम
हुआ, वहीं हरियाणा में वह बहुमत से पीछे रही।
 क्या यह एक गैर जाट को मुख्य मंत्री बनाने के भाजपा के प्रयोग की विफलता की निशानी है ?
जो भी हो,लोकतंत्र प्रेमियों के लिए यह कोई संतोष की बात नहीं है कि प्रतिपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी, क्षेत्रीय उम्मीदों एवं पहचान की राजनीति के बल पर ही जिंदा रहे।
 आज प्रतिपक्ष जितना कमजोर और दिशाहीन है,उतना इससे पहले कभी नहीं था।
स्वस्थ लोकतंत्र के लिए यह कोई अच्छी बात नहीं है। 
पर, इस स्थिति के लिए खुद कांग्रेस ही जिम्मेदार है।
बीते लोकसभा चुनाव में करीब 12 करोड़ मत हासिल करने के बावजूद कांग्रेस यदि फिर से राष्ट्रीय स्तर पर एक मजबूत पार्टी के रूप में उभरती नहीं दिख रही तो यह अकारण नहीं है।
समस्या कांग्रेस की काया में नहीं बल्कि उसकी आत्मा में है।
 वर्ष 2014 में हुए आम चुनाव के पहले सलमान खुर्शीद ने कहा था कि ‘राहुल गांधी हमारे सचिन तेंदुलकर हैं।
पर अभी हाल में उन्होंने कहा कि ‘हमारे नेता ने हमें छोड़ दिया।’
उनके हिसाब से राहुल हमें पुनः सत्ता दिलवा सकते हैं ,लेकिन उन्हें महाराष्ट्र और हरियाणा में पार्टी की जीत की संभावना नहीं दिख रही थी।
  पिछले वर्षों में जब -जब  कांग्रेस को चुनावी हार का सामना करना पड़ा , तब -तब उसने यही कहा कि हम अपनी गलतियों से सीखेंगे।
पर, सीखने की बात कौन कहे ,उन कारणों को भी याद नहीं रखा गया जो हार के मुख्य कारण रहे।
2013 में जब कांग्रेस की चार राज्यों में हार हुई तो राष्ट्रीय नेतृत्व ने कहा कि स्थानीय मुद्दों के असर के कारण ऐसा हुआ।
पर, जब मध्य प्रदेश,राजस्थान,छत्तीस गढ़ में उसकी जीत हुई तो यह बात नहीं कही गई।
2013 में जब दिल्ली विधान सभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की जीत हुई तो राहुल ने कहा था कि ‘हम आम आदमी पार्टी से सबक लेंगे।’
बाद में यही लगा कि उन्होंने ‘आप’ से इतना ही सीखा कि किसी पर आधारहीन आरोप लगा दो और मुकदमे लड़ने में अपना बहुमूल्य समय जाया करते रहो।
कांग्रेस नेतृत्व ने एंटोनी कमेटी की रपट से भी कोई सबक नहीं लिया,जबकि एंटोनी रपट में ही कांग्रेस के पुनर्जीवन का उपचार मौजूद है।
 मुश्किल यह है कि पार्टी इस रपट पर सघन चर्चा को ही नहीं तैयार।
यह 2014 के लोक सभा चुनावों में कांग्रेस की हार के बाद तैयार की गई थी।
एंटोनी ने अगस्त, 2014 में अपनी रपट हाईकमान को सौंप दी।
पर उस रपट को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया।
रपट में अन्य बातों के अलावा दो मुख्य बातें थीं।
उन पर यदि कांग्रेस हाईकमान ने चिंतन-मनन किया होता 
तो शायद पार्टी का कुछ कल्याण हो जाता।
 ऐसा लगता है कि कांग्रेस ने खुद को सुधारने की क्षमता खो दी है।
वह एक खास ढर्रे पर चल चुकी है जिससे पीछे पलटना उसके लिए संभव नहीं है।
    चार सदस्यीय एंटोनी कमेटी की रपट में प्रमुख बात यह है कि ‘‘कांग्रेस के बारे में मतदाताओं में यह धारणा बनी कि वह अल्पसंख्यक समुदाय की तरफ झुकी हुई है।इससे भाजपा को चुनावी लाभ मिला।
धर्म निरपेक्षता बनाम सांप्रदायिकता को लेकर कांग्रेस ने जो चुनावी मुद्दा बनाया,वह उसके खिलाफ गया।
इसके अलावा संप्रग सरकार के दौर में घोटालों की चर्चा ने भी नुकसान पहुंचाया।’’
  क्या कांग्रेस ने एकतरफा धर्म निरपेक्षता की अपनी रणनीति को छोड़कर संतुलित धर्म निरपेक्षता की नीति अपनाई ?
क्या उसने कभी यह कहा कि भ्रष्टाचार के प्रति हमारी शून्य सहनशीलता की नीति है ?
उसने तो इसके विपरीत ही रवैया अपनाया।
कांग्रेस नेताओं के खिलाफ जब -जब भ्रष्टाचार को लेकर मुकदमे हुए,छापामारी हुई,बरामदगी हुई,नेतागण जेल भेजे गए,तब -तब कांग्रेस नेतृत्व ने कहा कि ‘यह सब बदले की भावना में आकर किया जा रहा है।’
यह एक तथ्य है कि कांग्रेस ने चिदंबरम और शिवकुमार के साथ खड़े होना पसंद किया।
भ्रष्टाचार को लेकर जैसी सहनशीलता की नीति कांग्रेस ने आजादी के तत्काल बाद अपनाई वह समय के साथ बढ़ती चली गई।
आज वह पराकाष्ठा पर है।
कांग्रेस का प्रथम परिवार भी रिश्तेदार सहित आरोपों और मुकदमों के घेरे में है।
 पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने यह कह कर भ्रष्टाचार के प्रति अपनी सहनशीलता प्रकट कर दी थी कि ‘‘भ्रष्टाचार तो वैश्विक परिघटना है।सिर्फ भारत में थोड़े ही है !’’
 ‘मिस्टर क्लिन’ नाम से चर्चित राजीव गांधी को अपनी सरकार पर लगे आरोपों के जवाब देने में ही समय बिताना पड़ा।
1989 में कांग्रेस की सत्ता ऐेसे गई कि फिर उसे कभी लोक सभा में बहुमत नहीं मिल सका।
बाद के वर्षों में कांग्रेस ने जोड़-तोड़कर सरकारें बनानी शुरू कीं।
एक समय मन मोहन सिंह ने यह माना था कि मिलीजुली सरकार में समझौते करने की मजबूरी होती है।
मजबूरी की उसी धारा में कांग्रेस आज भी बह रही है।
  दूसरी ओर, एक ऐसी सरकार है जिसके प्रधान मंत्री कहते हैं कि ‘‘न खाऊंगा और न खाने दूंगा।’’
उन्होंने अपने मंत्रिमंडल को घोटालों से अब तक दूर रखा है।अधिकतर लोग पहले की और आज की सरकारों में अंतर देख रहे हैं।दूसरा मुख्य अंतर देश की सुरक्षा के मोर्चे पर आया है।
यदि पड़ोसी देश कोई दुःसाहस करता है तो मोदी सरकार नतीजों की परवाह किए बिना उसका प्रतिकार करती है।
अनुच्छेद -370 और 35 ए को निष्क्रिय करने के निर्णये से जिहादी आतंकवादियों से लड़ने में सुविधा हो रही है।
   कांग्रेस को सर्वाधिक नुकसान वंशवाद को लेकर हो रहा है।
यदि आज कांग्रेस के पास कल्पनाशील नेतृत्व होता और वह वाजिब मुद्दे चुनकर उन पर खुद को केंद्रित करता तो महाराष्ट्र और हरियाणा में जनता उसकी ओर कहीं अधिक आकर्षित होती। 
तब शायद इन दोनों राज्यों में चुनावों के पहले ही यह माहौल न बनता कि कांग्रेस के जीतने की संभावनाएं कम हैं।   
-- 25 अक्तूबर 2019 के दैनिक जागरण के संपादकीय पेज पर  प्रकाशित।    






पूर्व आई.ए.एस.अफसर और लोक सत्ता अभियान के नेता
जय प्रकाश नारायण ने लिखा है कि 
‘‘वर्ष 2014 और फिर 2019 में मोदी को मिला जनादेश वास्तविक बदलाव के लिए है।
यह अवसर अनमोल है।
समय आ गया है कि 
प्रभावी कानून-व्यवस्था,विकेंद्रीकरण,सिविल सेवा सुधार और शिक्षा एवं स्वास्थ्य पर विशेष रूप से केंद्रित किया जाए।’’

गुरुवार, 24 अक्टूबर 2019

लालू के साथ चली गईं रोचक खबरें भी !
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22 अगस्त, 1997 के दैनिक ‘जनसत्ता’ में लालू प्रसाद पर मेरी
एक रपट छपी थी।
उसका शीर्षक था--
‘लालू के साथ चली गईं रोचक खबरें भी !’
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   लालू प्रसाद अरसे से एक बार फिर जेल में हैं।
1997 की उस खबर को एक बार फिर पढ़ना रुचिकर होगा। 
यहां हू ब बहू प्रस्तुत है--
 ‘‘पटना, 21 अगस्त। लालू प्रसाद के राजनीतिक परिदृश्य से गायब होने के कारण पिछले तीन हफ्तों से बिहार में रोचक खबरों की कमी पड़ गई है।
इससे संवाददाता परेशान हैं।
   जेल जाने से पहले खुद लालू ने पत्रकारों से कहा था,
‘‘तू लोगिन चाहत बाड़ कि हम जेल चल जाईं।तब चटपटी खबर ना मिली।’’
उन्होंने कहा कि यदि मैं जेल चला गया तो आप लोगों की नौकरी चली जाएगी।क्योंकि तब आपको चटपटी खबर नहीं मिलेगी।
  लालू प्रसाद ने ठीक ही कहा था।पटना के पत्रकार भी अब यही महसूस करने लगे हैं।
अब मुख्य मंत्री आवास यानी ,एक अणे मार्ग का दृश्य पूरा बदला-बदला सा है।
वहीं से लालू प्रसाद की पत्नी राबड़ी देवी राज चला रही हैं।
पर पत्रकारों के प्रति राबड़ी देवी का रवैया बिलकुल उल्टा है।
उनकी मजबूरी भी है।
   उन्हें पत्रकारों के उल्टे-सीधे सवालों के जवाब देने की अभी प्रैक्टिस नहीं हुई है।
वे दे भी नहीं सकतीं।
कल तक सिर्फ एक घरेलू महिला थीं।
उन्हें अभी प्रचार का चस्का भी नहीं लगा है।
पति के जेल जाने से वे दुखी और उदास सी हैं।
    लालू प्रसाद की हाजिर जवाबी मशहूर रही है।कई बार उनकी हाजिर जवाबी शालीनता की सीमा पार कर जाती थी।
पर, पत्रकार उसमें से भी रोचक बातें निकाल ही लेते थे।
  पिछले माह तक पटना के कई पत्रकार तत्कालीन मुख्य मंत्री लालू प्रसाद के आवास पर करीब -करीब रोज ही जाते थे।
जिस दिन संवाददाताओं को कहीं दूसरी जगह खबर नहीं मिलती थी,उस दिन भी वे लालू प्रसाद के घर से खाली हाथ नहीं लौटते थे।
संवाददाता आपस में अक्सर यह कहते सुने जाते थे,‘‘आज कहीं कुछ नहीं है।चलो लालू के घर।’’
  दैनिक टेलिग्राफ के संवाददाता फैजान अहमद ने स्वीकार किया कि ‘‘लालू प्रसाद अपने आप में एक खबर थे।
अच्छी या बुरी खबरें उनसे निकलती रहती थीं।
पर अब पहले जैसा नहीं है।
रोचक और चटपटी खबरों की कमी से पटना के दूसरे संवाददाता भी परेशान हैं।
  अब अस्पताल जेल से बाहर छन कर आने वाली अपुष्ट खबरों से संतोष करना पड़ रहा है।
  दरअसल लालू प्रसाद से संबंधित उटपटांग खबरें पढ़ने की पाठकों की आदत सी पड़ गई है।
लालू प्रसाद भी जानते थे कि उनकी उटपटांग बातों और अजीब ओ गरीब हरकतों से अखबारों के लिए अच्छी खबरें बनती हैं।
   करीब डेढ़ साल पहले लालू प्रसाद जब जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन कर पटना पहुंचे थे तो उन्होंने प्रेस से कहा था कि ‘‘अब मैं सावधानी से बोलूंगा।क्योंकि अब मैं जो कुछ बोलूंगा,वह देश के अखबारों के पहले पेज पर मोटे -मोटे अक्षरों में छपेगा।
कुछ दिनों तक उनका यह संयम कायम भी रहा।
पर वे तो अपनी आदत से लाचार थे।
 वे कहीं भी, कभी भी, कुछ भी बोल देते थे।
उन्हें छपास की बीमारी भी थी।
वे जानते थे कि किसी मुख्य मंत्री की उटपटांग चीजें खूब छपती हैं।
बाद के दिनों में जब इलेक्ट्रानिक मीडिया का प्रसार बढ़ा तो एक दिन लालू ने प्रिंट मीडिया के संवाददाता से कहा था,‘अब तोहरा लोगिन के ग्लेमर कम हो गईल।अब तो तुरंत फोटो खींचत बा, आ ओही दिन सांझ में टी.वी.पर देखा देत बा।वीकली का वैल्यू त खतम ही हो गया।’’
    लालू प्रसाद जब सत्ता में थे तो उनका प्रेस से खट्टा-मीठा संबंध रहा।
कभी वे अपनी आलोचनाओं से चिढ़कर गालियां भी दे देते थे।
वे कभी मिलने से इनकार भी कर देते थे।
पर वे मानते थे कि प्रेस उनके लिए एक जरुरी बुराई है।
चारा घोटाले को लेकर प्रेस ने लालू प्रसाद के खिलाफ क्या- क्या नहीं लिखा ?
उन्होंने कुछ किया ही ऐसा है।
वे प्रेस से बीच- बीच में सख्त नाराज भी होते रहे।
  फिर भी प्रेस से लालू प्रसाद का काम चलाऊ रिश्ता उनके जेल जाने तक बना रहा।
एक पत्रकार के अनुसार वह प्रेम और घृणा का मिलाजुला रिश्ता था।
अब तो प्रेस के लिए रोचक खबरों का सवाल है।रोचक खबरें अब कौन देगा ?

बुधवार, 23 अक्टूबर 2019

एक समाचार लीक से हटकर
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630 करोड़ रुपए के घोटाले के आरोप में त्रिपुरा के पूर्व लोक निर्माण मंत्री व माकपा नेता बादल चैधरी सोमवार की रात मंे 
 गिरफ्तार कर लिए गए।
पहले वे फरार थे।
बाद में गिरफ्तारी से बचने के लिए अस्पताल में भर्ती भी हो गए थे।
पर वे बच नहीं सके।
  है न लीक से हटकर यह समाचार !!
पहले यह माना जाता रहा है कि कम्युनिस्ट घोटालेबाज नहीं होते।थोड़ा बहुत इधर-उधर करने को चंदा कहते हैं !
पर, सी.पी.एम.की केंद्रीय कमेटी के एक सदस्य  पर  आरोप भी लगा तो अरबों का !
हां,पर संतोष की बात है कि अरबों का ही तो लगा।
कुछ अन्य दलों के कुछ बड़े नेताओं पर तो खरबों के घोटाले के आरोप हैं।
अरबों के आरोप में मुकदमे झेल रही एक बड़ी हस्ती हाल में पीठ दर्द के कारण अस्पताल में भर्ती हुई है।
क्या उन पर भी गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है ?


मंगलवार, 22 अक्टूबर 2019

   ‘‘अखलाक और पहलू खान की हत्या पर पूरे देश को असहनशील बताने वाले कलाकार,पत्रकार और लेखकों की जुबान कमलेश तिवारी की हत्या पर क्यों सिली हुई है ?
ये धार्मिक भेदभाव आखिर क्यों ?
किसी मैग्सेसे और नोबल वाले को इस हत्या से डर और गुस्सा क्यों नहीं आ रहा ?’’
                          ---राहुल सिन्हा
मान लिया कि कमलेश तिवारी अतिवादी था।
उसने मोहम्मद साहब के खिलाफ टिप्पणी करके तो बहुत ही गलत काम किया।
 पर याकूब मेमन और अफजल गुरू कैसे थे ?
एक के  लिए आधी रात में सुप्रीम कोर्ट खोलवाने वाले और 
दूसरे की बरखी विश्व विद्यालय में मनाने वाले कमलेश की जघन्य हत्या पर क्यों नहीं कुछ बोल रहे हैं ?
इसका कारण अधिकतर जनता जान गई है।
इसीलिए अनेक लोग न चाहते हुए भी भाजपा की शरण में चले गए और धीरे -धीरे जा रहे हैं ।


रविवार, 20 अक्टूबर 2019


कोर्ट और सरकार के रुख से साफ है कि नहीं बचेंगे अतिक्रमणकारी--सुरेंद्र किशोर
पटना में भारी जल जमाव के लिए जिम्मेवार अफसरों के खिलाफ बिहार सरकार ने कार्रवाई शुरू कर दी है।
अब पटना हाईकोर्ट ने कहा है कि आदेश के बावजूद जल-जमाव हमारे आदेश की अवमानना है।
इसके लिए जो जिम्मेदार होंगे,वे बख्शे नहीं जाएंगे।
लगा कि हाईकोर्ट राज्य सरकार की  अफसरों के खिलाफ ताजा कार्रवाइयों से संतुष्ट नहीं है।
 दरअसल हाईकोर्ट से आम लोग यह उम्मीद कर रहे हैं कि वह जल जमाव के मूल कारणों की तलाश करने का प्रबंध करे।
  मोटा-मोटी इसका मूल कारण नगर निगम में व्याप्त अपार भ्रष्टाचार है जिसने संस्थागत रूप धारण कर लिया है।
  उसकी तह में सी.बी.आई.ही पहुंच सकती है।
यह राज्य सरकार की किसी एजेंसी के वश की बात नहीं है।
   -- राज्य सरकार की कार्रवाई भी अभूतपूर्व--
पटना जल जमाव के लिए जिम्मेवार अफसरों के खिलाफ  इस बार जितने बड़े पैमाने पर कार्रवाई की घोषणा हुई है,वैसी कड़ी कार्रवाई होते अब तक नहीं देखा गया था।
  यदि घोषणाओं को तार्किक परिणति तक पहुंचा दिया जाए तो लापारवाह और भ्रष्ट कर्मियों को नसीहत मिलेगी।
उम्मीद है कि राज्य सरकार गैर जिम्मेवार अफसरों-कर्मियों के राजनीतिक-गैर राजनीतिक पैरवीकारों के दबाव में नहीं आएगी।
  राज्य सरकार की यह घोषणा महत्वपूर्ण है कि नालों पर से अगले दो महीनों में अतिक्रमण हटवा दिए जाएंगे।
पिछले कुछ हफ्तों में शासन ने जिस तरह पटना में  अतिक्रमणकारियों के खिलाफ कार्रवाई की है,उससे उम्मीद बंधती है।
 पर नालों पर अतिक्रमणकारी कुछ अधिक ही प्रभावकारी व ढीठ हैं।
उन पर यदि सचमुच कार्रवाई हो गई तो शासन का इकबाल कायम हो जाएगा।
वैसे पटना नगर निगम में संस्थागत हुए भ्रष्टाचार को राज्य सरकार किस तरह समाप्त करेगी,यह भी एक यक्ष प्रश्न है। 
 --रिंग रोड से घटेगा पटना पर आबादी का बोझ--
.भारी वर्षा से जल जमाव,बाढ़,वायु प्रदूषण,रोड जाम  और भूजल की कमी आदि की समस्याओं से पटना को राहत दिलानी हो तो प्रस्तावित  पटना रिंग रोड पर शीघ्रातिशीघ्र काम शुरू कर देना होगा।
यह रिंग रोड प्रधान मंत्री पैकेज का हिस्सा है।
आम तौर पर रिंग रोड के आसपास खुली हवा में मूल नगर की कुछ आबादी शिफ्ट करती है और नई आबादी बसती है।
इससे मूल नगर पर आबादी का दबाव कम होता हैं।आबादी कम यानी जन सुविधाओं पर दबाव कम।
  --सी.पी.आई.की सकारात्मक पहल-
 सी.पी.आई.की केरल शाखा ने एक अनोखी पहल की है।
वह 25 अक्तूबर से तीन दिनों का सेमिनार आयोजित करने जा रही  है।
उस सेमिनार में हिन्दू धर्म ग्रंथांे पर चर्चा होगी।
उसमें देश भर के वैज्ञानिक सोच वाले नौ विशेषज्ञ अपने पेपर पढ़ेंगे।
वे पेपर वेद ,पुराण और उपनिषदों पर आधारित होंगे।
उन धर्म ग्रंथों पर वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में नजर डाली जाएगी।
 इस संबंध में एक सी.पी.आई.नेता ने बताया कि हम चाहते हंै कि सांप्रदायिक तत्व उन धर्म ग्रंथों का अपने राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमान न करंे।
काश ! सी.पी.आई.अन्य धर्मों के ग्रंथों पर भी इसी तरह वैज्ञानिक दृष्टि से नजर डालती !
  --फिर एस.ए.डांगे से 
नाराजगी क्यों ?--
 हिन्दू धर्म ग्रंथों का कुछ लोग दुरुपयोग कर रहे हैं।यानी, 
 सी.पी.आई. यह मानती है कि उन ग्रंथों का सदुपयोग भी हो सकता है।
  यानी सी.पी.आई.सत्तर के दशक से बहुत आगे चली आई है।यह एक तरह से जड़ों से जुड़ने और समझने की जाने-अनजाने कोशिश है।कोशिश सराहनीय है।
 इस पार्टी में सबसे बड़ी कमी यही रही है कि वह देश की जड़ों से कटी रही है।    
 त्यागी-तपस्वी नेताओं व कार्यकत्र्ताओं से भरी
पार्टी होने के बावजूद यह  इस गरीब देश में भी पूरी तरह जम नहीं  पाई।अब तो जो भी बचा है,उसके उखरते
जाने के संकेत भी मिल रहे हैं।
 सत्तर के दशक में सी.पी.आई.के अध्यक्ष एस.ए.डांगे के दामाद वाणी देशपांडेय ने  वेदों पर एक किताब लिखी थी।उन्होंने वेदों में माक्र्सवादी द्वंद्ववाद की झलक पाई थी।
डांगे साहब ने उसकी प्रशंसात्मक भूमिका लिखी थी।
उस पर पार्टी डांगे पर काफी नाराज हो गई थी।
  --उम्मीदवारों के आपराधिक रिकाॅर्ड का विवरण--
11 नवंबर, 2018 को चुनाव आयोग ने कहा था कि मतदान से पूर्व अपने आपराधिक रिकाॅर्ड के विज्ञापन अखबारों में और टी.वी.पर नहीं देने वाले उम्मीदवारों को अदालत की अवमानना का सामना करना पड़ सकता है। 
विज्ञापन तीन बार देने होंगे।यह सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन है।
इन दिनों बिहार में भी कई क्षेत्रों में उप चुनाव हो रहे हैं।क्या आपने किसी उम्मीदवार के बारे में ऐसे विवरण किसी अखबार में विज्ञापन के रूप में देखा ?
 क्या सुप्रीम कोर्ट ने अपनी  गाइडलाइन वापस ले ली  है ?
ऐसी कोई खबर भी नहीं देखी गई।
       --और अंत में-
देश की राजधानी में कुछ ही दिनों के भीतर प्रधान मंत्री के परिजन,मेट्रोपाॅलिटन मजिस्ट्रेट और पत्रकार से लुटेरों ने सामान छीने।
तीनों मामलों में अपराधी पकड़ लिए गए।
यह माना जाता है कि पुलिस जिन अपराधियों को पकड़ना चाहती है,उन्हें तो वह पकड़ ही लेती है।इन मामलों में भी यही हुआ।
 यह भी आम धारणा है कि अपवादों को छोेड़कर इस देश की पुलिस अपने इलाके के अपराधियों को जितना अधिक जानती-पहचानती है,उतना कुछ ही अन्य देशों की पुलिस अपने क्षेत्राधिकार के अपराधियों को जानती-पहचानती होगी !
इसके बावजूद इस देश में आरोपित अपराधियों में से सिर्फ 45 प्रतिशत अपराधियों को ही अभियोजन पक्ष  कोर्ट से सजा दिलवा पाता है।
ऐसा क्यों ? बात कुछ समझ में आई !!
--कानोंकान-प्रभात खबर-बिहार-18 अक्तूबर 2019



पी.एम.किसान सम्मान निधि योजना को जैविक खेती से जोड़ने की जरुरत--सुरेंद्र किशोर  
प्रधान मंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत प्रति किसान परिवार को सालाना 6000 रुपए देने का प्रावधान है।
यह राशि किश्तों में मिल भी रही है।
 यह योजना शुरू करते समय केंद्र सरकार ने कहा था कि समय के साथ इस राशि में बढ़ोत्तरी भी होगी।
  अब किसी भी बढ़ोत्तरी को जैविक खेती से जोड़ देने की जरुरत है।
यानी, अब बढ़ी हुई राशि उन्हीं  किसानों को  मिले जो जैविक खेती करें।पूरी जमीन में नहीं तो कम से कम उसके एक हिस्से में करें।
   --जैविक खेती समय की मांग--
साठ के दशक में  इस देश में रासायनिक खाद का चलन शुरू हुआ।तब अधिक फसल के कारण किसान खुश हुए।पर जानकार लोग इसके खतरे के प्रति लोगों को तभी आगाह भी करने लगे थे।खास कर वास्तविक गांधीवादी नेता किसानों को आगाह करने लगे।
आजादी के लड़ाई के दौरान भी खुद महात्मा गांधी जैविक खेती के लिए किसानों से अपील करते थे।
वे कम्पोस्ट खाद पर बल देते थे।
  पर आजादी के बाद हमारी सरकार ने गांधी जी के इस पक्ष को भी नकार दिया।
  नतीजतन रासायनिक खादों और कीटनाशक दवाओं से जल प्रदूषित हो रहा है।
जहां -तहां फसलें जल जा रही हैं।वायु प्रदूषण में वृद्धि हो रही है।
भूमि का तेजाबीकरण हो रहा है।
इससे कैंसर का खतरा बढ़ रहा है।
हाल के दिनों में लोगों में जैविक खेती के प्रति जागरुकता बढ़ी है।
पर,वह पर्याप्त नहीं है।इसे प्रधान मंत्री किसान सम्मान निधि से जोड़ने से शायद खेती के जैवीकरण की रफ्तार बढ़े।
 --स्मृति लोप या राजनीतिक 
जरुरत !--
  एन.सी.पी.के प्रमुख शरद पवार ने बुधवार को कहा कि इंदिरा गांधी ने सेना के शौर्य का
 इस्तेमाल कभी वोट हासिल करने के लिए नहीं किया।
पवार जी का यह कथन समकालीन इतिहास को झुठलाना है।
  1971 में बंगला देश युद्ध में भारत ने पाक पर विजय हासिल की थी।उसके ठीक बाद बिहार सहित कई राज्यों में विधान सभाओं के चुनाव हुए थे।
यदि उस जीत का चुनाव में इस्तेमाल नहीं किया जाता तौभी इंदिरा गांधी के दल को विधान सभाओंं में भारी जीत होती।
फिर भी प्रधान मंत्री ने मतदाताओं के नाम से जो अपनी चिट्ठी जारी की उसके अनुसार,‘देशवासियों की एकता और उच्च आदर्शों के प्रति निष्ठा ने हमें युद्ध में जिताया।
अब उसी लगन से हमें गरीबी हटानी है।इसके लिए हमें विभिन्न प्रदेशों में ऐसी स्थायी सरकारों की जरूरत है जिनकी साझेदारी केंद्रीय सरकार के साथ हो सके।’कांग्रेस के चुनाव घोषणा पत्र में भी उसका जिक्र था।

  --एक और राजेंद्र नगर !--
निर्माणाधीन दाना पुर -खगौल आठ लेन सड़क के बाएं -दाएं एक और ‘राजेंद्र नगर’ या ‘लोहिया नगर’ तैयार हो रहा है।
ये दोनांे मुहल्ले जल -जमाव के लिए जाने जाते हैं।
 दाना पुर-खगौल रोड बुधवार को पांच घंटे जाम रहा।जल जमाव से मुक्ति के लिए शासन पर दबाव डालने के लिए लोग सड़क पर उतरे थे।
अभी तो वह इलाका पूरा विकसित नहीं हुआ है।तब तो यह हाल है।पूरा भर जाएगा तो पता नहीं क्या होगा।बहुत लंबा -चैड़ा इलाका है।
पर, सवाल है कि ऐसे इलाके बसाने और बसने से पहले लोगों ने जल निकासी के बारे में क्यों नहीं सोचा ? शासन को तो तभी आना पड़ता है जब पानी सिर से ऊपर चला जाए।
पटना एम्स के पास भी ऐसी अव्यवस्थित बसावट एक दिन शासन के लिए सिरदर्द साबित होगी।  
     --भूली बिसरी याद--
जय प्रकाश नारायण का अपने गांव सिताब दियारा से गहरा लगाव था।
अमरीका में पढ़े-लिखे जेपी 1977 में जब गांव गए तो वे भाव -विह्वल हो गए थे।माइक पर ही रोने लगे।
‘गांव याद रहेगा,गांव के लोग याद रहेंगे,’यह कहते -कहते जब जेपी भाव -विह्वल हो गए तो वहां उपस्थित चंद्रशेखर ने उनके हाथ से माइक ले ली और सभा समाप्ति की घोषणा कर दी।
उस साल अपने जन्म दिन पर वे गांव गए थे।
 गांव की वह उनकी  अंतिम यात्रा साबित हुई।
1979 में जेपी का पटना में निधन हो गया।
  जेपी गांव जाने के लिए पहले से ही बेचैन थे।पर बीमार होने के कारण वे सड़क मार्ग से  नहीं जा सकते थे।
मुख्य मंत्री कर्पूरी ठाकुर  बिहार सरकार के हेलीकाॅप्टर से जेपी को उनके गांव ले गए।
  याद रहे कि  सिताब दियारा में प्लेग फैल जाने के कारण जेपी के जन्म के तत्काल बाद उनके पिता हरसू दयाल उन्हें लेकर तीन किलोमीटर दूर स्थित गांव मंे जा बसे।
साठ के दशक तक दोनों गांव बिहार के सारण जिले में ही थे।
पर त्रिवेदी आयोग की सिफारिश के अनुसार जब परिसीमन हुआ तो दूसरा गांव यानी जेपी नगर उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में पड़ गया।दरअसल जेपी नगर को पूर्व प्रधान मंत्री चंद्र
शेखर के प्रयास से विकसित किया गया। 
राज्य सभा के उप सभापति हरिवंश भी सिताब दियारा के ही मूल निवासी हैं।
    --कोचिंग सेंटर में अग्नि शमन-- 
गत मई में सूरत में कोचिंग सेंटर में भीषण आग लग गई।
वहां आग बुझाने की समुचित व्यवस्था नहीं थी।
नतीजतन 25 छात्रों की जानें चली गर्इं।
उस दर्दनाक घटना के बाद दिल्ली व पटना की सरकारों ने भी स्थानीय कोचिंग सेंटर की जांच की थी।
जांच में क्या पाया ?
कितने केंद्रों पर अग्नि शमन की समुचित व्यवस्था थी ?
सरकारी प्रयास के बाद कितनों में इस दृष्टि से सुधार हुआ ?
-और अंत में-
कम से कम एक बात के लिए राहुल गांधी की सराहना तो होनी ही चाहिए।
उन्होंने लोक सभा चुनाव में हार की जिम्मेदार ली।लाख गुहार के बावजूद उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष पद से अपना इस्तीफा वापस नहीं लिया।
--कानोंकान-प्रभात खबर-बिहार-11 अक्तूबर, 2019


घोटालेबाजों की खैर नहीं !
.....................................................
घोटालेबाजों और महा घोटालेबाजों के प्रत्यक्ष या परोक्ष समर्थकगण और जेहादियों तथा आतंकियों के प्रत्यक्ष या परोक्ष मददगार समूह आने वाले दिनों में भी चुनाव हारते ही जाएंगे।
इस देश के अधिकतर मतदातागण यही संकेत दे रहे हैं।
   बेहतर होगा ,वैसे समर्थक व मददगार जनहित,देशहित और स्वहित में इन मामलों में जल्द से जल्द ‘यू टर्न’ ले लें।
हर क्षेत्र के अधिकतर घोटालेबाजों -महा घोटालेबाजों को अगले तीन-चार साल में ही इतनी सजा तो हो ही जाएगी 
कि वे चुनाव लड़ने लायक नहीं रहेंगे।
  जो लोग यह समझते हैं कि राजग के जुड़े घोटालेबाजों को बचाया जा रहा है तो उनके लिए लोकहित याचिकाओं का रास्ता तो खुला ही हुआ है।
डा.स्वामी ने यू.पी.ए.शासनकाल में इसी तरीके से एकाधिक  घोटालेबाजों को जेल भिजवाया था। 

शनिवार, 19 अक्टूबर 2019

प्रफुल्ल पटेल- इकबाल मिर्ची व्यावसायिक 
संबंध की खबर के बीच याद आई 
वोहरा कमेटी की रपट
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प्रफुल्ल पटेल और इकबाल मिर्ची के बीच संपत्ति से संबंधित कांट्रेक्ट का जांच एजेंसी को पता चला है।
इस खबर के साथ ही मुझे वोहरा कमेटी की  रपट की याद आ गई।
दाउद इब्राहिम ने 1993 में बंबई में 12 स्थानों में भीषण विस्फोट करवाए थे।
करीब सवा तीन सौ लोगों की जानें गईं थीं। 
तब भारतीय जांच एजेंसी को दाउद के साथ-साथ उसके अत्यंत करीबी सहयोगी इकबाल मिर्ची की भी तलाश थी।
उस घटना के बाद माफिया से नेताओं आदि के संबंधों की जांच के लिए वोहरा कमेटी बनी।
उसने विस्फोटक रपट दी।सिफारिशें भी कीं।
पर, आज तक उसे न तो केंद्र सरकार ने सार्वजनिक किया और न ही उसे लागू ही किया ।
रपट को भी गुप्त रखा गया।बल्कि दबा दिया गया।
उस रपट की कुछ पंक्तियों पर  एक नजर डालें। 
वह रपट माफिया-नेता-तस्कर-अफसर गंठजोड़ पर है।
उस रपट की एक फोटो काॅपी मेरे पास भी है।
   वोहरा समिति ने 1993 में अपनी सिफारिश केंद्र सरकार को दे दी थी।
सिफारिश आर्थिक क्षेत्र में सक्रिय लाॅबियों,तस्कर गिरोहों ,माफिया तत्वों के साथ नेताओं और अफसरों के बने गंठबंधन  को  तोड़ने के ठोस उपायों से संबंधित है।
   पर तब की या फिर उसके बाद की किसी भी केंद्र सरकार ने उस पर अमल नहीं किया ।
  पांच दिसंबर, 1993 को तत्कालीन केंद्रीय गृह सचिव  एन.एन.वोहरा ने अपनी सनसनीखेज रपट गृह मंत्री को सौंपी थी।
रपट में कहा गया  कि ‘ इस देश में अपराधी गिरोहों,ं हथियारबंद सेनाओं, नशीली दवाओं का व्यापार करने वाले माफिया गिरोहों,तस्कर गिरोहों,आर्थिक क्षेत्रों में सक्रिय लाॅबियों का तेजी से प्रसार हुआ है।
इन लोगों ने विगत कुछ वर्षों के दौरान स्थानीय स्तर पर नौकरशाहों, सरकारी पदों पर आसीन व्यक्तियों, राजनेताओं,मीडिया से जुड़े व्यक्तियों तथा गैर सरकारी क्षेत्रों के महत्वपूर्ण पदों पर आसीन व्यक्तियों के साथ व्यापक संपर्क विकसित किये हैं।
इनमें से कुछ सिंडिकेटों की विदेशी आसूचना एजेंसियों के साथ- साथ अन्य अंतरराष्ट्रीय सबंध भी हैं।’
गोपनीयता बरतने के लिए इस रपट की सिर्फ तीन ही काॅपियां तैयार करवाई गयी थीं।
इस रपट की सनसनीखेज बातों को देखते हुए ही, मेरी जानकारी के अनुसार,केंद्र  सरकार ने उसे सार्वजनिक नहीं किया।
उसे लागू करने की हिम्मत बाद की भी किसी सरकार में नहीं रही।
क्योंकि उससे  सिस्टम नंगा हो जाता।
अब जब यह कहा जा रहा है कि मोदी है तो मुमकिन है तो फिर उसे लागू करो।
आज जब इस देश के खिलाफ देसी-विदेशी शक्तियों व जेहादियों ने अघोषित युद्ध छेड़ रखा है तब तो वोहरा कमेटी की रपट पर से धूल झाड़ना देशहित में और भी जरुरी लगता है। 

कभी -कभी जब मैं किसी बात पर अटकता था तो रविरंजन बाबू को फोन करता था।
वे बिहार की राजनीति के बारे में काफी जानकारी रखते थे।
वे संभवतः सबसे पुराने सक्रिय पत्रकार थे।
हाल में तो फेसबुक ने हमलोगों को उनसे जोड़ा था।
उनके प्रति पत्रकारों में भी आदर का भाव रहा।
वे कभी विवादों में नहीं रहे।
संवाद संकलन के लिए कई बार उनके साथ राज्य के भ्रमण का अवसर मुझे मिला था।
वे किसी के प्रति पूर्वाग्रहग्रस्त भी नहीं थे ।
  वे याद आएंगे।
उन्हें मेरी विनम्र श्रद्धांजलि !

 राम जन्मस्थान पर मस्जिद का होना दुर्भाग्यपूर्ण है।
केवल एक विदेशी -विधर्मी विजेता के अहंकार व प्रजा के मनोवैज्ञानिक दमन, अपमान का चिन्ह है।
मुसलमान इसे अहंकार व राजनीति का मुद्दा ना बनाकर सहर्ष हिन्दुओं को सौंप देते तो अद्भुत हिन्दू-मुस्लिम सौहार्द कायम होता।
यह मेरी निजी राय है।
           ---जनसत्ता के पूर्व संपादक राहुल देव

गुरुवार, 17 अक्टूबर 2019

फासीवादी,हत्यारे,अराजकतावादी और जिहादी ही कश्मीर के असल दुश्मन हैं।
हम उनकी कायरता के आगे नहीं झुकेंगे ।
उन्होंने 1990 के दशक से चले आ रहे उन्मादी छद्म युद्ध में हजारों लोगों का कत्ल किया।
हम तब तक शांत नहीं बैठेंगे जब तक इनके सताए सभी लोगों को इंसाफ नहीं दिलाएंगे।
ये हमसे कभी नहीं जीत पाएंगे।
           ----इम्तियाज हुसैन,दैनिक जागरण
यह तो ठीक बात है।
पर इस छद्म युद्ध में लगे जेहादियों के साथ हमारी अदालतें और सरकार सामान्य अपराधियों जैसा ही व्यवहार करती हैं।
आज जरुरत इस बात की है कि हमारी सरकार ऐसे कानून बनाए ताकि वास्तविक युद्ध और छद्म युद्ध में लगे देसी-विदेशी राष्ट्रद्रोहियों के बीच कानून की दृष्टि से अंतर मिट जाए।
क्या युद्ध भूमि में इस बात की मनाही है कि जब तक दुश्मन गोली न चलाए,तब तक हमारी सेना गोली नहीं चलाएगी ?

बुधवार, 16 अक्टूबर 2019


पहले मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार ने जेपी सेनानी पेंशन योजना बंद की।
अब वही काम राजस्थान की गहलोत सरकार ने कर दिया।
अब राजस्थान के उन मीसा बंदियों को पेंशन राशि का भुगतान बंद हो जाएगा जो आपातकाल--1975-77 में जेल में थे।

राष्ट्रीय राजधानी को पंजाब-हरियाणा से दूर ले जाइए !
अन्यथा, फसल अवशेष के मारक धुएं से अपनी और अपने बाल -बच्चों की आयु कम करते जाइएगा
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यदि पंजाब और हरियाणा के किसानों को फसल अवशेष को
खेतों में जलाने से आप नहीं रोक सकते तो कम से कम देश की राजधानी अन्यत्र ले जाने के बारे में सोच-विचार तो कर ही सकते हैं।
 वैसे भी दिल्ली-नई दिल्ली की सड़कें अब बढ़ते टै्रफिक को संभाल नहीं पा रही है।
आने वाले दिनों में स्थिति और भी बदतर होगी।
राष्ट्रीय राजधानी वैसी जगह ले जाइए जहां दूर -दूर तक भी हरियाणा-पंजाब जैसे ढीठ व अन्य लोगों के प्रति असंवेदनशील किसान नहीं बसते हों।
वोट लोलुप सरकारें तो लाखों लोगों को जहरीले धुएं  से मरते देखना पसंद करेगी ,पर धुएं पर अंकुश नहीं लगाएगी।  


रविवार, 13 अक्टूबर 2019

डा.राम मनोहर लोहिया के जीवन और उनकी राजनीति पर एक नजर
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यह जानकारी खास तौर पर उनके लिए जिन्होंने 
कल उनकी पुण्यतिथि मनाई और जो लोहिया के नाम का सिर्फ तोतारटंत करते हैं।
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1.-लोहिया ने शादी नहीं,घर नहीं बसाया।
क्योंकि उनका मानना था कि जिन्हें सार्वजनिक जीवन में 
जाना है,उन्हें शादी नहीं करनी चाहिए।
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आज राजनीति में वंशवाद-परिवारवाद की महामारी को देखने से लगता है कि लोहिया यह जान गए थे कि एक दिन यही सब होने वाला है।
इन दिनों तो इन बुराइयों के कारण राजनीतिक दल एक -एक कर मुरझाते जा रहे हैं।
.......................................................................... 
2.-संसद सदस्य रहने के बावजूद उन्होंने कार नहीं खरीदी।
वे कहते थे कि कार को मेन्टेन करने लायक मेरी आय नहीं है।
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यह भी जान गए थे कि नेताओं को आय से अधिक खर्च करने 
की आदत पड़ जाएगी तो देश घोटालों-महा घोटालों में डूब जाएगा ।
आज कितने छोटे -बड़े नेता भ्रष्टाचार के आरोपों में मुकदमे झेल रहे हैं,उनकी गिनती की है आपने ?
..................................................................................
3.-उनका नारा था-‘पिछड़े पावें सौ में साठ।’
पर, वे ऊंची जातियों के विरोधी नहीं थे।
बारी-बारी से उनके जितने भी निजी सचिव हुए,
सब के सब ब्राह्मण थे।
यह बात बहुत मायने रखती है कि कोई नेता किसे अपना निजी सचिव रखता है।
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याद रहे कि जातीय-साम्प्रदायिक वोट बैंक के किले में सुरक्षित हो जाने के कारण इस देश के नेताओं ने जितने भ्रष्टाचार व अनर्थ किए,वह एक रिकाॅर्ड है।
यह आजादी के बाद ही शुरू हो गया था।
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4.-लोहिया ने एक बार एक ऐसे व्यक्ति को पार्टी छोड़ देने को कहा था कि जिसकी दुकान में शराब बिकती थी।
रांची के उस व्यक्ति ने शराब का व्यापार छोड़ दिया,पर पार्टी नहीं छोड़ी। 
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इस देश में आज कितने नेता हैं जो शराब नहीं पीते ?
उसका युवा पीढ़ी पर कैसा असर पड़ता है ?
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5.-लोहिया ने 1967 के चुनाव से ठीक पहले कहा कि मैं सामान्य नागरिक संहिता के पक्ष में हूं।
इस पर उनके एक सहकर्मी ने कहा कि यह आपने क्या कह दिया ?!!
आप तो अब चुनाव हार जाएंगे।
उस पर डा.लोहिया ने कहा कि मैं सिर्फ चुनाव जीतने के लिए राजनीति नहीं करता।देश बनाने के लिए राजनीति करता हूं। 
उस बयान के बाद वे चुनाव हारते -हारते जीते थे।
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सामान्य नागरिक संहिता संविधान के नीति निदेशक तत्वों वाले चैप्टर में है।
आज कितने नेता राजनीतिक स्वार्थ के कारण संविधान या उसकी भावना की उपेक्षा नहीं करते हैं ?
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ये तो बानगी भर हैं।उनके बारे में और
 बहुत सारी बातें हैं।
जयंती व पुण्यतिथि के अवसरों पर मंच से उनके ऐसे गुणों की चर्चा करते आपने किसी को सुना ?
मैंने तो नहीं सुना।
अधिकतर नेता लोहिया के बहाने उनकी तस्वीर लगाकर मंचों से अपनी राजनीति चमकाने की कोशिश करते हैं।


नई दिल्ली से प्रकाशित पाक्षिक पत्रिका ‘यथावत’..1.15 अक्तूबर 2019... के अनुसार,
गत लोक सभा चुनाव में बाद 21 जून तक पश्चिम बंगाल में
हुई राजनीतिक हत्याओं में भाजपा के 15 लोग मारे गए।
तृणमूल कांग्रेस के एक व्यक्ति की जान गई।
घायलों में 136 भाजपा कार्यकत्र्ता,16 तृणमूल कार्यकत्र्ता और 5 आम नागरिक थे।एक पुलिसकर्मी भी घायल हुआ।
  यथावत के अनुसार 34 साल में कम्युनिस्ट पार्टी ने जितनी हत्याएं कराईं,तृणमूल कांग्रेस उससे आगे निकल गई है।

शुक्रवार, 11 अक्टूबर 2019

हिन्दी गरीब या अमीर !
कुछ मामलों में हिन्दी अमीर तो 
कुछ अन्य मामलों में अंग्रेजी
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बहनोइर्,
साला,
जेठ,
देवर,
नंदोई
और साढ़ू 
के लिए अंग्रेजी में सिर्फ एक शब्द है।
वह है--ब्रदर-इन-ला।
यह है अंग्रेजी की गरीबी 
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सिस्टर-इन-ला के लिए 
हिन्दी में निम्न लिखित शब्द हैं--
भाभी,
अनुज बधू,
साली,
सलहज,
जेठानी,
देवरानी
और ननद।
यह है हिन्दी की संपन्नता
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शीर्ष राजनीति से मुंह मोड़ लेने के बाद क्या राहुल गांधी
अब शादी करके घर बसाएंगे ?
 शादी के बारे में खुद राहुल ने तो कुछ नहीं कहा है।
किन्तु सलमान खुर्शीद ने गत 9 अक्तूबर को यह कह कर लोगों की उत्सुकता बढ़ा दी है कि 
‘हमारे नेता ने ही हमें छोड़ दिया।’
यानी शायद राजनीति नहीं तो शादी सही !!!
अपनी गर्ल फ्रेंड की मौजूदगी के बारे में खुद राहुल ने 2005 में 
कहा था कि ‘वह स्पेनिश है और बेनेजुआला में रहती है।उसका नाम है-वेरोनिका।पर अभी शादी की जल्दबाजी नहीं है।मैंने उसे अभी प्रपोज भी नहीं किया है।
   

जब तक तथाकथित सेक्युलरिस्ट और प्रगतिशील लोग 
मुर्शीदाबाद जैसी घटना पर चुप रहेंगे और तबरेज पर 
हंगामा करते रहेंगे ,तब तक भाजपा आगे बढ़ती रहेगी।
अरे भई ! निंदा करनी है तो दोनों तरह की घटनाओं की निंदा करो।
अन्यथा चुप रहो।
अनजाने में भाजपा के एजेंट तो मत बनो।

भाजपा सहित कुछ दलों के नेताओं ने पटना को डूबोने के लिए संबंधित अफसरों पर भड़ास निकाली है।
सही किया है।
अधिकतर अफसर भी दोषी हैं।
कुछ अधिक ही दोषी हैं।
किन्तु क्या राजनीतिक कार्यपालिका ने अपनी जिम्मेवारी 
निभाई है ?
क्या यह खबर गलत है कि गत 12 साल से  पटना नगर निगम की बैठकों में  कोई सांसद या विधायक शामिल नहीं हुए ?
यदि मंत्री की बात भी अफसर नहीं मानते तो यह बात पहले सार्वजनिक क्यों नहीं हुई ?
केंद्रीय सरकार के स्तर पर भी यह शिकायत आती रहती है कि अफसर राजनीतिक कार्यपालिका के हुकुम की अक्सर अवहेलना करते हैं।
इसीलिए संयुक्त सचिव स्तर पर 200 लेटरल बहाली हुई है।
400 और होने वाली है।
ऐसी स्थिति में बड़े अफसरों को काबू में लाने के लिए संविधान में संशोधन करने पर राजनीतिक कार्र्यपालिका विचार क्यों नहीं करती ?
अपवादों को छोड़कर जन प्रतिनिधि-अफसर मिल बांटकर जब तक सांसद-विधायक फंड की बंदरबांट करते रहेंगे तब तक जन प्रतिनिधियों की अफसरों पर नैतिक धाक कैसे कायम होगी ?

  

गुरुवार, 10 अक्टूबर 2019

     राष्ट्रद्रोह पर 1962 का सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
     इसी कसौटी पर अदालतें देखेंगी नए मामले
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26 मइर्, 1953 को बेगूसराय में एक रैली हो रही थी।
फाॅरवर्ड कम्युनिस्ट पार्टी के नेता केदार नाथ सिंह रैली को संबांधित कर रहे थे।
रैली में सरकार के खिलाफ अत्यंत कड़े शब्दों का इस्तेमाल करते हुए उन्होंने कहा कि 
‘सी.आई.डी.के कुत्ते बरौनी में चक्कर काट रहे हैं।
कई सरकारी कुत्ते यहां इस सभा में भी हैं।जनता ने अंगे्रजों को यहां से भगा दिया।
कांग्रेसी कुत्तों को गद्दी पर बैठा दिया।
इन कांग्रेसी गुंडों को भी हम उखाड़ फकेंगे।’
   ऐसे उत्तेजक व अशालीन भाषण के लिए बिहार सरकार ने केदारनाथ सिंह के खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा दायर किया।
केदारनाथ सिंह ने हाईकोर्ट की शरण ली।
हाईकोर्ट ने उस मुकदमे की सुनवाई पर रोक लगा दी।
बिहार सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई।
सुप्रीम कोर्ट ने आई.पी.सी.की राजद्रोह से संबंधित धारा  
को परिभाषित कर दिया।
  20 जनवरी, 1962 को मुख्य न्यायाधीश बी.पी.सिन्हा की अध्यक्षता वाले संविधान पीठ ने कहा कि ‘देशद्रोही भाषणों और अभिव्यक्ति को सिर्फ तभी दंडित किया जा सकता है,जब उसकी वजह से किसी तरह की हिंसा, असंतोष या फिर सामाजिक असंतुष्टिकरण बढ़े।’
 चूंकि केदारनाथ सिंह के भाषण से ऐसा कुछ नहीं हुआ था,इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने केदारनाथ सिंह को राहत दे दी।
   हाल में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम केदारनाथ सिंह बनाम बिहार सरकार वाले जजमेंट पर कायम है।
देशद्रोह के हाल के कुछ मामलों को अदालतें 1962 के उस निर्णय की कसौटी पर ही कसेंगी।

व्यवस्था सुधारने के लिए नालियों की सफाई के खर्चे का आॅडिट जरुरी-सुरेंद्र किशोर


क्या पिछले कुछ वर्षों में पटना की नालियों की सही ढंग से सफाई हुई थी ?
  इस मद में कितने खर्च हुए और उसका कितना सदुपयोग हुआ ?
पटना के लोगों की यह आम धारणा है कि नाले-नालियों  की समुचित सफाई नहीं होती ।
वैसे तो थोड़े ही समय में उम्मीद से अत्यंत अधिक वर्षा भारी जल जमाव का मूल कारण रहा।पर नालों की पूरी सफाई हुई होती तो लोगों को थोड़ा कम कष्ट होता।
पटना की साफ-सफाई को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कुछ साल पहले पिछले  मेयर के समक्ष सार्वजनिक रुप से अपना गुस्सा जाहिर किया था।
पर कुव्यवस्था ऐसी है जो सुधरने का नाम ही नहीं लेती।
आए दिन नगर निगम के विवादास्पद कामों को लेकर खबरें आती रहती हैं।
 नगरवासियों के इस बार के अपार कष्ट को देखते हुए राज्य सरकार को चाहिए कि वह भ्रष्टाचार और काहिली के लिए जिम्मेवार अफसरों और कर्मचारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करे ताकि लोगों के ‘घाव’ पर थोड़ा मलहम लग सके।
  आश्चर्य है कि भारी खर्च के बावजूद मुहल्लों से संप हाउसों तक पानी नहीं पहुंचते।कहीं पहंुचते भी हैं तो अधिकतर संप हाउस काम नहीं करते।
  --1975 की बाढ़ का एक दृश्य-
पश्चिमी पटना की एक संपन्न बस्ती में सहायता पहुंचाने वालों की नाव एक मकान से आकर टिकी।छत पर एक स्त्री खड़ी थी।
बगल में दो छोटे- छोटे बच्चे।
भूख और प्यास से कुम्हालाये हुए चेहारों पर आतंक और बेबसी के भाव !
48 घंटे के बाद उस तरफ मदद देने वाले लोग पहुंचे थे।
छत और नाव के बीच की दूरी कुछ अधिक थी और हाथ से किसी चीज को पकड़ पाना संभव नहीं था।
   कार्यकत्र्ताओं ने कहा कि कोई रस्सी लटका कर उसके सहारे पानी ऊपर खींच लें।
  रस्सी घर में नहीं थी।
स्त्री की आंखों से निरंतर आंसू गिर रहे थे।
कुछ न मिलने पर उसने अपनी साड़ी नीचे लटका दी।
कार्यकत्र्ता ने कोने में बंधी गांठ खोली तो उसमें एक परची मिली।
अंग्रेजी में लिखा था कि ‘मेरे पति दौरे पर हैं।’
राहत पाकर उसे कुछ तसल्ली हुई होगी।उसका ख्याल था कि अगर उसके पति घर पर होते तो उसे इस तरह की स्थिति से न गुजरना पड़ता।
लेकिन जिनके पति घर पर थे उनकी भी तो वही हालत थी !
--कानून के दुरुपयोग के खिलाफ--
अनुसूचित जाति और जनजाति --उत्पीड़न से संरक्षण --कानून पर सुप्रीम कोर्ट का ताजा निर्णय आ गया है।
अब यह कानून अपने मूल रुप में है।उससे पहले 20 मार्च 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस कानून के तहत गिरफ्तारी से पहले सरसरी तौर पर पुलिस आरोप की सत्यता की जांच कर ले।
  खैर अब अलग ढंग से इस कानून के दुरुपयोग को रोकने के उपाय करने होंगे।
अपने मुख्य मंत्रित्व काल में मायावती ने इस कानून के दुरुपयोग को रोकने का ठोस उपाय किया था।
उसका सकारात्मक असर भी हुआ था।
इस उद्देश्य से राज्य मुख्यालय ने  तब उत्तर प्रदेश के सारे जिलों के आरक्षी अधीक्षकांे को सर्कुलर भेजा था।उसमें दुरुपयोग रोकने का उपाय बताया गया था।
  सुप्रीम कोर्ट के ताजा निर्णय से उत्पन्न नई परिस्थिति से निपटने के लिए मायावती शासन काल के उस सर्कुलर को अन्य राज्य मंगवा ले।
ताकि न किसी को गलत ढंग से फंसाया जा सके और न ही  अनुसूचित जाति -जनजाति के किसी व्यक्ति के खिलाफ कोई ज्यादती हो। 
--यासिन मलिक पर मुकदमा--
जे.के.एल.एफ. के अध्यक्ष यासिन मलिक पर 1990 में भारतीय वायु सेना के चार अफसरों की हत्या का मुकदमा चल रहा है।
वह अभी जेल में बंद है।वीडियो कांफ्रंेसिंग के जरिए सुनवाई होगी।
  सामूहिक हत्या यह एक ऐसा मुकदमा है जिसके आरोपित यासिन यह स्वीकार कर चुका  है कि उसने हत्याएं की थीं।
उसकी स्वीकारोक्ति दिल्ली की एक बड़ी पत्रिका में बहुत पहले छप चुकी है।
पत्रिका के साथ इंटरव्यू में यासिन मलिक ने उन हत्याओं को  औचित्यपूर्ण भी ठहराया था।
यह पता नहीं चल सका है कि उस पत्रिका के संवाददाता को गवाह के रुप में कोर्ट में पेश करने का अभियोजन पक्ष का कोई इरादा  है या नहीं।
  करीब 30 साल पहले हुई इन हत्याओं के मुजरिम को यह व्यवस्था हाल तक पालती-पोसती रही।
2006 में तो यासिन मलिक ने प्रधान मंत्री मन मोहन सिंह से मुलाकात भी की थी।
 -- और अंत में--
सोशल मीडिया पर जाली खबरों को रोकने के इसे  आधार जोड़ने का सुझाव आया है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यदि सरकार इंटरनेट के दुरुपयोग 
नहीं रोक सकती तो हम इस पर विचार करेंगे।
  जानकार लोग कह रहे हैं कि सोशल मीडिया को आधार से जोड़ने के लिए संबंधित कानून में संशोधन करना पड़ेगा।
जो कुछ करना पड़े ,पर सोशल मीडिया के दुरुपयोग को रोकना ही होगा।
इस कारगर मीडिया को प्रामाणिक बनाए रखना अधिक जरुरी है।यह आम  लोगों की आवाज का एक कारगर प्लेटफार्म है। 
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--4 अक्तूबर 2019 के प्रभात खबर-बिहार-में प्रकाशित मेरे काॅलम कानोंकान से।




बुधवार, 9 अक्टूबर 2019

विजय दशमी बनाम विजया दशमी !
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इस साल भी मीडिया के एक हिस्से ने 
विजय दशमी ‘मनाई’ तो दूसरे हिस्से ने 
विजया दशमी !!!

यह बहुत बड़ी गलत फहमी है कि राम विलास,लालू और नीतीश कुमार संपूर्ण क्रांति की उपज थे।
संपूर्ण क्रांति आंदोलन ने मोरारजी देसाई को प्रधान मंत्री और कर्पूरी ठाकुर को बिहार का मुख्य मंत्री बनाया था।
क्या मोरारजी ,इंदिरा गांधी से और कर्पूरी ठाकुर जगन्नाथ
मिश्र से बदतर थे ?
  संपूर्ण क्रांति ने राम विलास और लालू को सिर्फ एम.पी बनाया।
 कोशिश के बावजूद केंद्र में ये दोनों केंद्र में राज्य मंत्री तक नहीं बन सके थे।
नीतीश तो 1977 में विधायक भी नहीं बन सके थे।
विवादास्पद ‘भूमि सेना’ के समर्थक उम्मीदवार से हार गए थे।
यदि जेपी आंदोलन नहीं भी हुआ होता,तौभी राम विलास,लालू और नीतीश देर -सवेर सांसद-विधायक बन ही गए होते।
राम विलास तो 1969 में भी विधायक थे।
लालू -नीतीश की भी समाजवादी आंदोलन की पृष्ठभूमि पहले से थी।
  दरअसल राम विलास पासवान,लालू प्रसाद और नीतीश कुमार बोफर्स और मंडल अभियान की उपज थे।
उसी की पृष्ठभूमि में हुए 1989 के लोस चुनाव के बाद ये लोग सत्ता में आए और देश-राज्य को बनाने या बिगाड़ने की निर्णायक स्थिति में आए।

गांधी जन्म शताब्दी के अवसर पर 1969 में भूदान की दृष्टि 
से पूरा ‘बिहार दान’ घोषित कर दिया गया था।
जबकि जानकार लोग बताते हैं कि यह काम तब तक आधा -अधूरा ही हो पाया था।उस घोषणा में जल्दबाजी की गई थी।
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  इस बार गांधी की 150 वीं जयंती के अवसर पर पूरे देश के ग्रामीण क्षेत्रों को खुला शौच से मुक्त घोषित कर दिया गया।
इसका वास्तविक क्या हाल है ?
गांव-गांव के लोग अच्छी तरह जानते हैं।
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दोनों उद्देश्य अच्छे हैं।
पर ,दावे के मामले में किसी तरह की अतिशयोक्ति तो न हो !
जितना हुआ,उतना ही बताइए।
उतना भी कम नहीं है।


मंगलवार, 8 अक्टूबर 2019

जय प्रकाश नारायण की पुण्य तिथि पर
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सत्तासीन जनता पार्टी के बारे में 1977 में जय प्रकाश नारायण ने बडे़ दुख के साथ कहा था कि 
‘ये लोग भी उसी तरह बंगलों में रह रहे हैं।
वैभवपूर्ण बंगला प्राप्त करने के लिए मंत्रियों के बीच होड़ लगी हुई है।
सांसदों ने संपत्ति की घोषणा नहीं की।
उन्हें जिंदगी भर पेंशन देने की घोषणा को भी तुरंत बंद करने की बात थी,
लेकिन इस बारे में भी कुछ नहीं किया गया।
चुनाव खर्च कम करने ,
भ्रष्टाचार समाप्त करने और
जन प्रतिनिधियों को वापस बुलाने के मामले पर कोई कार्रवाई नहीं की गई।’
  इस सबसे उन्हें यानी जेपी को हार्दिक व्यथा हुई।
लेकिन इसके बावजूद उन्होंने जनता सरकार के इरादों पर संदेह न करते हुए उसे एक वर्ष का समय दिया।
जब उनके मापदंड़ों पर सरकार खरी नहीं उतर पाई तो उन्होंने 5 जून 1978 को सार्वजनिक रूप से वक्तव्य दिया,
‘जनता सरकार भी पिछली सरकार के ही रास्ते पर चल रही है।
लोग उम्मीद खो रहे हैं क्योंकि जनता पार्टी उनकी अपेक्षा पर खरी नहीं उतर रही है।’
--सुधांशु रंजन की पुस्तक ‘जय प्रकाश नारायण’ से।


रविवार, 6 अक्टूबर 2019


सुधांशु त्रिवेदी उत्तर प्रदेश से राज्य सभा के उम्मीदवार होंगे।
ज्ञानवान,विचारवान और शालीन सुधांशु जैसे व्यक्तियों के लिए
ही राज्य सभा बनी थी।
पर हाल के दशकों में कैसे -कैसे लोगों से उसे भरा गया, यह पूरा देश जानता है।
बारी से पहले और निर्धारित समय से अधिक बोलने वालों की तो भरमार ही रही है।
नाहक चिल्लाने वालों,अशालीन बातें करने वालों, शोरगुल -हंगामा करने वालों के कारण राज्य सभा की गरिमा बुरी तरह प्रभावित होती रही है।
  इस बीच सुधांशु त्रिवेदी का चयन साफ हवा के झोंके की तरह हंै।मैं उन्हें सिर्फ उन्हें इलेक्ट्रानिक चैनलों के जरिए जानता हूं।
कुछ चैनलों के ‘कुक्कड़ भुकाओ कार्यक्रमों’ में भी सुंधाशु हमेशा अपनी शालीनता बनाए रखते हैं।उत्तेजनाओं के बीच भी।
काश ! अन्य दल भी अपने बीच के सुधांशुओं को ही राज्य सभा में भेजते। हालांकि हर जगह सुधांशु नहीं मिला करते।
वैसे गैर राजनीतिक क्षेत्रों में सुभाष कश्यप और प्रकाश सिंह जैसी हस्तियों को राज्य सभा में रहना चाहिए था।उनके अनुभवों से देश को लाभ मिलता।
इन दोनों की तरह इस देश में कई अन्य लोग भी हैें।
मैंने तो सिर्फ समझाने के लिए यहां दो नाम लिए।यह देश बड़ा है।
काश ! कभी  वैसा दिन भी आता जब राजनीतिक दल राज्य सभा की गरिमा को पुनस्र्थापित करने की दिशा में 
गंभीरता से काम करते !
उम्मीद तो नहीं है, पर,सदिच्छा रखने पर रोक भी तो नहीं है !

रणछोड़ राहुल गांधी !
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महाराष्ट्र-हरियाणा विधान सभा चुनाव के दस दिन पहले 
राहुल गांधी विदेश चले गए।
जिसे कांग्रेस के अधिकतर नेताओं-कार्यकत्र्ताओं ने अपना ‘अर्ध-देव’ माना, वह रणछोड़ निकला !
वंशवाद-परिवारवाद से इससे अधिक नुकसान किसी पार्टी व देश का भला और क्या हो सकता है ?
कमजोर व गैर जिम्मेवार प्रतिपक्ष सत्ता को यदि तानाशाह नहीं तो मनमर्जी  करने वाला जरुर बना सकता है।
  संकेत बता रहे हैं कि इस राजनीतिक शैली से कांग्रेस को अभी और अधिक नुकसान होने वाला है।
ऐसा ही नुकसान एक -एक कर अन्य वंशवादी-परिवारवादी दलों का भी होगा।होना शुरू हो चुका है।
 क्या संविधान निर्माताओं ने कभी इस स्थिति की कल्पना की थी ?
वंश के नाम पर अयोग्य लोगों को शीर्ष पर बैठाओ और उसका नतीजा भुगतो।
  वंशवाद-परिवारवाद अब अधिकतर दलों को ग्रसता चला जा रहा है। 
पर, इस मामले में विभिन्न दलों में थोड़ा अंतर है।
कुछ दल वंश-परिवार में ही समाहित है।
कुछ अन्य दलों में वंशवाद-परिवारवाद प्रवेश करता जा रहा है।बढ़ता जा रहा है।
पहली किस्म की पार्टियों को वंश-परिवार तानाशाह की तरह संचालित करते हैं।
दूसरी किस्म की पार्टियों में वंशवादी मौजूद जरुर हैं,पर वे पार्टी को निदेशित नहीं करते।
  हालांकि वहां भी धीरे -धीरे वंशवाद-परिवारवाद बढ़ता जा रहा है।
यह गति जारी रही तो वह दिन दूर नहीं जब 90 प्रतिशत सीटों पर निवत्र्तमान सांसदों-विधायकों के ही वंशज या परिजन चुनाव लड़ेंगे।
फिर राजनीतिक कार्यकत्र्ताओं के लिए जगह कहां रहेगी ?
नहीं रहेगी।
सांसद-विधायक फंड के ठेकेदार गण हर जगह कार्यकत्र्ता की भूमिका निभाएंगे। अनेक स्थानों में निभा भी रहे हैं।

शनिवार, 5 अक्टूबर 2019

‘गिरने वाले मकान और डूबने वाले जहाज को चूहे  छोड़ देते हैं।’
आज जो कांग्रेसी किसी न किसी बहाने कांग्रेस छोड़ रहे हैंं,वे मेरी समझ से उन चूहों  की तरह हैं।
जब तक शरण मिली और मलाई मिली,तब तक वे कांग्रेस में रहे।
पर अब बेचारी कांग्रेस चूंकि उस स्थिति में नहीं है,होने की निकट भविष्य में उम्मीद भी नहीं हैं,इसलिए अवसरवादी नेता  एक -एक कर बेहतर चारागाह के लिए कांग्रेस  छोड़ रहे हैं।
क्या उन्हें पहले यह नहीं मालूम था कि कांगे्रस की राजनीतिक शैली कैसी है ?
क्या किसी नेता -कार्यकत्र्ता का अपनी पार्टी से संबंध सिर्फ टिकटों का ही रह गया है ? 
जो नेता आज कांगे्रेस छोड़ रहे हैं,वे चाहे और जो कुछ हों,पर जन सेवक तो बिलकुल नहीं है।‘स्वयं’ सेवक जरुर हैं।
मेरी यह बात अन्य दलों के ऐसे दलबदलू नेताओं पर भी लागू होती है जो पार्टी को दुर्दिन में देख कर दल छोड़कर भाग जाते हैं।
  यदि उस दल की स्थिति बेहतर हुई तो वे लौट भी आते हैं।
वे पार्टी  भी कोई भला काम नहीं करती जो ऐसे अवसरवादियों को बार- बार गले लगा लेती है। ़
लोकतंत्र राजनीतिक दलों से ही चलता है।
यदि दलों में ऐसे ही चूहे पलेंगे तो उस लोकतंत्र का अंततः क्या हाल होगा ?
वही होगा,जो हो रहा है।हालांकि अभी बहुत कुछ और  होने वाला है।