प्रफुल्ल पटेल- इकबाल मिर्ची व्यावसायिक
संबंध की खबर के बीच याद आई
वोहरा कमेटी की रपट
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प्रफुल्ल पटेल और इकबाल मिर्ची के बीच संपत्ति से संबंधित कांट्रेक्ट का जांच एजेंसी को पता चला है।
इस खबर के साथ ही मुझे वोहरा कमेटी की रपट की याद आ गई।
दाउद इब्राहिम ने 1993 में बंबई में 12 स्थानों में भीषण विस्फोट करवाए थे।
करीब सवा तीन सौ लोगों की जानें गईं थीं।
तब भारतीय जांच एजेंसी को दाउद के साथ-साथ उसके अत्यंत करीबी सहयोगी इकबाल मिर्ची की भी तलाश थी।
उस घटना के बाद माफिया से नेताओं आदि के संबंधों की जांच के लिए वोहरा कमेटी बनी।
उसने विस्फोटक रपट दी।सिफारिशें भी कीं।
पर, आज तक उसे न तो केंद्र सरकार ने सार्वजनिक किया और न ही उसे लागू ही किया ।
रपट को भी गुप्त रखा गया।बल्कि दबा दिया गया।
उस रपट की कुछ पंक्तियों पर एक नजर डालें।
वह रपट माफिया-नेता-तस्कर-अफसर गंठजोड़ पर है।
उस रपट की एक फोटो काॅपी मेरे पास भी है।
वोहरा समिति ने 1993 में अपनी सिफारिश केंद्र सरकार को दे दी थी।
सिफारिश आर्थिक क्षेत्र में सक्रिय लाॅबियों,तस्कर गिरोहों ,माफिया तत्वों के साथ नेताओं और अफसरों के बने गंठबंधन को तोड़ने के ठोस उपायों से संबंधित है।
पर तब की या फिर उसके बाद की किसी भी केंद्र सरकार ने उस पर अमल नहीं किया ।
पांच दिसंबर, 1993 को तत्कालीन केंद्रीय गृह सचिव एन.एन.वोहरा ने अपनी सनसनीखेज रपट गृह मंत्री को सौंपी थी।
रपट में कहा गया कि ‘ इस देश में अपराधी गिरोहों,ं हथियारबंद सेनाओं, नशीली दवाओं का व्यापार करने वाले माफिया गिरोहों,तस्कर गिरोहों,आर्थिक क्षेत्रों में सक्रिय लाॅबियों का तेजी से प्रसार हुआ है।
इन लोगों ने विगत कुछ वर्षों के दौरान स्थानीय स्तर पर नौकरशाहों, सरकारी पदों पर आसीन व्यक्तियों, राजनेताओं,मीडिया से जुड़े व्यक्तियों तथा गैर सरकारी क्षेत्रों के महत्वपूर्ण पदों पर आसीन व्यक्तियों के साथ व्यापक संपर्क विकसित किये हैं।
इनमें से कुछ सिंडिकेटों की विदेशी आसूचना एजेंसियों के साथ- साथ अन्य अंतरराष्ट्रीय सबंध भी हैं।’
गोपनीयता बरतने के लिए इस रपट की सिर्फ तीन ही काॅपियां तैयार करवाई गयी थीं।
इस रपट की सनसनीखेज बातों को देखते हुए ही, मेरी जानकारी के अनुसार,केंद्र सरकार ने उसे सार्वजनिक नहीं किया।
उसे लागू करने की हिम्मत बाद की भी किसी सरकार में नहीं रही।
क्योंकि उससे सिस्टम नंगा हो जाता।
अब जब यह कहा जा रहा है कि मोदी है तो मुमकिन है तो फिर उसे लागू करो।
आज जब इस देश के खिलाफ देसी-विदेशी शक्तियों व जेहादियों ने अघोषित युद्ध छेड़ रखा है तब तो वोहरा कमेटी की रपट पर से धूल झाड़ना देशहित में और भी जरुरी लगता है।
संबंध की खबर के बीच याद आई
वोहरा कमेटी की रपट
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प्रफुल्ल पटेल और इकबाल मिर्ची के बीच संपत्ति से संबंधित कांट्रेक्ट का जांच एजेंसी को पता चला है।
इस खबर के साथ ही मुझे वोहरा कमेटी की रपट की याद आ गई।
दाउद इब्राहिम ने 1993 में बंबई में 12 स्थानों में भीषण विस्फोट करवाए थे।
करीब सवा तीन सौ लोगों की जानें गईं थीं।
तब भारतीय जांच एजेंसी को दाउद के साथ-साथ उसके अत्यंत करीबी सहयोगी इकबाल मिर्ची की भी तलाश थी।
उस घटना के बाद माफिया से नेताओं आदि के संबंधों की जांच के लिए वोहरा कमेटी बनी।
उसने विस्फोटक रपट दी।सिफारिशें भी कीं।
पर, आज तक उसे न तो केंद्र सरकार ने सार्वजनिक किया और न ही उसे लागू ही किया ।
रपट को भी गुप्त रखा गया।बल्कि दबा दिया गया।
उस रपट की कुछ पंक्तियों पर एक नजर डालें।
वह रपट माफिया-नेता-तस्कर-अफसर गंठजोड़ पर है।
उस रपट की एक फोटो काॅपी मेरे पास भी है।
वोहरा समिति ने 1993 में अपनी सिफारिश केंद्र सरकार को दे दी थी।
सिफारिश आर्थिक क्षेत्र में सक्रिय लाॅबियों,तस्कर गिरोहों ,माफिया तत्वों के साथ नेताओं और अफसरों के बने गंठबंधन को तोड़ने के ठोस उपायों से संबंधित है।
पर तब की या फिर उसके बाद की किसी भी केंद्र सरकार ने उस पर अमल नहीं किया ।
पांच दिसंबर, 1993 को तत्कालीन केंद्रीय गृह सचिव एन.एन.वोहरा ने अपनी सनसनीखेज रपट गृह मंत्री को सौंपी थी।
रपट में कहा गया कि ‘ इस देश में अपराधी गिरोहों,ं हथियारबंद सेनाओं, नशीली दवाओं का व्यापार करने वाले माफिया गिरोहों,तस्कर गिरोहों,आर्थिक क्षेत्रों में सक्रिय लाॅबियों का तेजी से प्रसार हुआ है।
इन लोगों ने विगत कुछ वर्षों के दौरान स्थानीय स्तर पर नौकरशाहों, सरकारी पदों पर आसीन व्यक्तियों, राजनेताओं,मीडिया से जुड़े व्यक्तियों तथा गैर सरकारी क्षेत्रों के महत्वपूर्ण पदों पर आसीन व्यक्तियों के साथ व्यापक संपर्क विकसित किये हैं।
इनमें से कुछ सिंडिकेटों की विदेशी आसूचना एजेंसियों के साथ- साथ अन्य अंतरराष्ट्रीय सबंध भी हैं।’
गोपनीयता बरतने के लिए इस रपट की सिर्फ तीन ही काॅपियां तैयार करवाई गयी थीं।
इस रपट की सनसनीखेज बातों को देखते हुए ही, मेरी जानकारी के अनुसार,केंद्र सरकार ने उसे सार्वजनिक नहीं किया।
उसे लागू करने की हिम्मत बाद की भी किसी सरकार में नहीं रही।
क्योंकि उससे सिस्टम नंगा हो जाता।
अब जब यह कहा जा रहा है कि मोदी है तो मुमकिन है तो फिर उसे लागू करो।
आज जब इस देश के खिलाफ देसी-विदेशी शक्तियों व जेहादियों ने अघोषित युद्ध छेड़ रखा है तब तो वोहरा कमेटी की रपट पर से धूल झाड़ना देशहित में और भी जरुरी लगता है।
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