शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2019

भाजपा सहित कुछ दलों के नेताओं ने पटना को डूबोने के लिए संबंधित अफसरों पर भड़ास निकाली है।
सही किया है।
अधिकतर अफसर भी दोषी हैं।
कुछ अधिक ही दोषी हैं।
किन्तु क्या राजनीतिक कार्यपालिका ने अपनी जिम्मेवारी 
निभाई है ?
क्या यह खबर गलत है कि गत 12 साल से  पटना नगर निगम की बैठकों में  कोई सांसद या विधायक शामिल नहीं हुए ?
यदि मंत्री की बात भी अफसर नहीं मानते तो यह बात पहले सार्वजनिक क्यों नहीं हुई ?
केंद्रीय सरकार के स्तर पर भी यह शिकायत आती रहती है कि अफसर राजनीतिक कार्यपालिका के हुकुम की अक्सर अवहेलना करते हैं।
इसीलिए संयुक्त सचिव स्तर पर 200 लेटरल बहाली हुई है।
400 और होने वाली है।
ऐसी स्थिति में बड़े अफसरों को काबू में लाने के लिए संविधान में संशोधन करने पर राजनीतिक कार्र्यपालिका विचार क्यों नहीं करती ?
अपवादों को छोड़कर जन प्रतिनिधि-अफसर मिल बांटकर जब तक सांसद-विधायक फंड की बंदरबांट करते रहेंगे तब तक जन प्रतिनिधियों की अफसरों पर नैतिक धाक कैसे कायम होगी ?

  

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