विचित्र,किन्तु सत्य !!!
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खबर है कि बिहार के इंजीनियरों ने विधायक फंड के 764 करोड़ रुपए के खर्च का कोई हिसाब ही नहीं दिया है।जबकि पैसे खर्च हो चुके हैं।
तीन वित्तीय वर्ष में दी गई राशि का उपयोगिता प्रमाण पत्र नहीं भेजा गया।सवाल है कि क्या उन पैसों का सरजमीन पर इस्तेमाल हुआ भी है ?हुआ है तो कितना ?
दैनिक ‘हिन्दुस्तान’ के अनुसार विधान सभा की प्राक्कलन समिति ने जब खर्च का हिसाब मांगा तो योजना एवं विकास विभाग ने इंजीनियरों को तलब किया।
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इस तरह विधायक फंड के उपयोग का असली रुप सामने आ रहा है।
पहले भी आता रहा है।पर, अब यह तो हद हो गई है।
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विधायक-सांसद फंड का और भी असली रुप तब सामने आ जाएगा,जब केंद्र व राज्य सरकार एक काम करेगी।
इस मद के पैसों का कहां -कहां और किस काम में इस्तेमाल किया गया ?
यदि उसका पूरा विवरण गांव-टोला-शहर के नाम सहित स्थानीय अखबारों में सरकार विज्ञापन के रूप में छपवा दे।
उस स्थल के लोगबाग जान जाएंगे कि काम सरजमीन पर हुआ है या कागज पर।
सरजमीन पर हुआ भी है तो कितना टिकाऊ हुआ है।
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खबर है कि बिहार के इंजीनियरों ने विधायक फंड के 764 करोड़ रुपए के खर्च का कोई हिसाब ही नहीं दिया है।जबकि पैसे खर्च हो चुके हैं।
तीन वित्तीय वर्ष में दी गई राशि का उपयोगिता प्रमाण पत्र नहीं भेजा गया।सवाल है कि क्या उन पैसों का सरजमीन पर इस्तेमाल हुआ भी है ?हुआ है तो कितना ?
दैनिक ‘हिन्दुस्तान’ के अनुसार विधान सभा की प्राक्कलन समिति ने जब खर्च का हिसाब मांगा तो योजना एवं विकास विभाग ने इंजीनियरों को तलब किया।
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इस तरह विधायक फंड के उपयोग का असली रुप सामने आ रहा है।
पहले भी आता रहा है।पर, अब यह तो हद हो गई है।
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विधायक-सांसद फंड का और भी असली रुप तब सामने आ जाएगा,जब केंद्र व राज्य सरकार एक काम करेगी।
इस मद के पैसों का कहां -कहां और किस काम में इस्तेमाल किया गया ?
यदि उसका पूरा विवरण गांव-टोला-शहर के नाम सहित स्थानीय अखबारों में सरकार विज्ञापन के रूप में छपवा दे।
उस स्थल के लोगबाग जान जाएंगे कि काम सरजमीन पर हुआ है या कागज पर।
सरजमीन पर हुआ भी है तो कितना टिकाऊ हुआ है।
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