गुरुवार, 24 अक्टूबर 2019

लालू के साथ चली गईं रोचक खबरें भी !
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22 अगस्त, 1997 के दैनिक ‘जनसत्ता’ में लालू प्रसाद पर मेरी
एक रपट छपी थी।
उसका शीर्षक था--
‘लालू के साथ चली गईं रोचक खबरें भी !’
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   लालू प्रसाद अरसे से एक बार फिर जेल में हैं।
1997 की उस खबर को एक बार फिर पढ़ना रुचिकर होगा। 
यहां हू ब बहू प्रस्तुत है--
 ‘‘पटना, 21 अगस्त। लालू प्रसाद के राजनीतिक परिदृश्य से गायब होने के कारण पिछले तीन हफ्तों से बिहार में रोचक खबरों की कमी पड़ गई है।
इससे संवाददाता परेशान हैं।
   जेल जाने से पहले खुद लालू ने पत्रकारों से कहा था,
‘‘तू लोगिन चाहत बाड़ कि हम जेल चल जाईं।तब चटपटी खबर ना मिली।’’
उन्होंने कहा कि यदि मैं जेल चला गया तो आप लोगों की नौकरी चली जाएगी।क्योंकि तब आपको चटपटी खबर नहीं मिलेगी।
  लालू प्रसाद ने ठीक ही कहा था।पटना के पत्रकार भी अब यही महसूस करने लगे हैं।
अब मुख्य मंत्री आवास यानी ,एक अणे मार्ग का दृश्य पूरा बदला-बदला सा है।
वहीं से लालू प्रसाद की पत्नी राबड़ी देवी राज चला रही हैं।
पर पत्रकारों के प्रति राबड़ी देवी का रवैया बिलकुल उल्टा है।
उनकी मजबूरी भी है।
   उन्हें पत्रकारों के उल्टे-सीधे सवालों के जवाब देने की अभी प्रैक्टिस नहीं हुई है।
वे दे भी नहीं सकतीं।
कल तक सिर्फ एक घरेलू महिला थीं।
उन्हें अभी प्रचार का चस्का भी नहीं लगा है।
पति के जेल जाने से वे दुखी और उदास सी हैं।
    लालू प्रसाद की हाजिर जवाबी मशहूर रही है।कई बार उनकी हाजिर जवाबी शालीनता की सीमा पार कर जाती थी।
पर, पत्रकार उसमें से भी रोचक बातें निकाल ही लेते थे।
  पिछले माह तक पटना के कई पत्रकार तत्कालीन मुख्य मंत्री लालू प्रसाद के आवास पर करीब -करीब रोज ही जाते थे।
जिस दिन संवाददाताओं को कहीं दूसरी जगह खबर नहीं मिलती थी,उस दिन भी वे लालू प्रसाद के घर से खाली हाथ नहीं लौटते थे।
संवाददाता आपस में अक्सर यह कहते सुने जाते थे,‘‘आज कहीं कुछ नहीं है।चलो लालू के घर।’’
  दैनिक टेलिग्राफ के संवाददाता फैजान अहमद ने स्वीकार किया कि ‘‘लालू प्रसाद अपने आप में एक खबर थे।
अच्छी या बुरी खबरें उनसे निकलती रहती थीं।
पर अब पहले जैसा नहीं है।
रोचक और चटपटी खबरों की कमी से पटना के दूसरे संवाददाता भी परेशान हैं।
  अब अस्पताल जेल से बाहर छन कर आने वाली अपुष्ट खबरों से संतोष करना पड़ रहा है।
  दरअसल लालू प्रसाद से संबंधित उटपटांग खबरें पढ़ने की पाठकों की आदत सी पड़ गई है।
लालू प्रसाद भी जानते थे कि उनकी उटपटांग बातों और अजीब ओ गरीब हरकतों से अखबारों के लिए अच्छी खबरें बनती हैं।
   करीब डेढ़ साल पहले लालू प्रसाद जब जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन कर पटना पहुंचे थे तो उन्होंने प्रेस से कहा था कि ‘‘अब मैं सावधानी से बोलूंगा।क्योंकि अब मैं जो कुछ बोलूंगा,वह देश के अखबारों के पहले पेज पर मोटे -मोटे अक्षरों में छपेगा।
कुछ दिनों तक उनका यह संयम कायम भी रहा।
पर वे तो अपनी आदत से लाचार थे।
 वे कहीं भी, कभी भी, कुछ भी बोल देते थे।
उन्हें छपास की बीमारी भी थी।
वे जानते थे कि किसी मुख्य मंत्री की उटपटांग चीजें खूब छपती हैं।
बाद के दिनों में जब इलेक्ट्रानिक मीडिया का प्रसार बढ़ा तो एक दिन लालू ने प्रिंट मीडिया के संवाददाता से कहा था,‘अब तोहरा लोगिन के ग्लेमर कम हो गईल।अब तो तुरंत फोटो खींचत बा, आ ओही दिन सांझ में टी.वी.पर देखा देत बा।वीकली का वैल्यू त खतम ही हो गया।’’
    लालू प्रसाद जब सत्ता में थे तो उनका प्रेस से खट्टा-मीठा संबंध रहा।
कभी वे अपनी आलोचनाओं से चिढ़कर गालियां भी दे देते थे।
वे कभी मिलने से इनकार भी कर देते थे।
पर वे मानते थे कि प्रेस उनके लिए एक जरुरी बुराई है।
चारा घोटाले को लेकर प्रेस ने लालू प्रसाद के खिलाफ क्या- क्या नहीं लिखा ?
उन्होंने कुछ किया ही ऐसा है।
वे प्रेस से बीच- बीच में सख्त नाराज भी होते रहे।
  फिर भी प्रेस से लालू प्रसाद का काम चलाऊ रिश्ता उनके जेल जाने तक बना रहा।
एक पत्रकार के अनुसार वह प्रेम और घृणा का मिलाजुला रिश्ता था।
अब तो प्रेस के लिए रोचक खबरों का सवाल है।रोचक खबरें अब कौन देगा ?

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