गुरुवार, 10 अक्तूबर 2019

     राष्ट्रद्रोह पर 1962 का सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
     इसी कसौटी पर अदालतें देखेंगी नए मामले
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26 मइर्, 1953 को बेगूसराय में एक रैली हो रही थी।
फाॅरवर्ड कम्युनिस्ट पार्टी के नेता केदार नाथ सिंह रैली को संबांधित कर रहे थे।
रैली में सरकार के खिलाफ अत्यंत कड़े शब्दों का इस्तेमाल करते हुए उन्होंने कहा कि 
‘सी.आई.डी.के कुत्ते बरौनी में चक्कर काट रहे हैं।
कई सरकारी कुत्ते यहां इस सभा में भी हैं।जनता ने अंगे्रजों को यहां से भगा दिया।
कांग्रेसी कुत्तों को गद्दी पर बैठा दिया।
इन कांग्रेसी गुंडों को भी हम उखाड़ फकेंगे।’
   ऐसे उत्तेजक व अशालीन भाषण के लिए बिहार सरकार ने केदारनाथ सिंह के खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा दायर किया।
केदारनाथ सिंह ने हाईकोर्ट की शरण ली।
हाईकोर्ट ने उस मुकदमे की सुनवाई पर रोक लगा दी।
बिहार सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई।
सुप्रीम कोर्ट ने आई.पी.सी.की राजद्रोह से संबंधित धारा  
को परिभाषित कर दिया।
  20 जनवरी, 1962 को मुख्य न्यायाधीश बी.पी.सिन्हा की अध्यक्षता वाले संविधान पीठ ने कहा कि ‘देशद्रोही भाषणों और अभिव्यक्ति को सिर्फ तभी दंडित किया जा सकता है,जब उसकी वजह से किसी तरह की हिंसा, असंतोष या फिर सामाजिक असंतुष्टिकरण बढ़े।’
 चूंकि केदारनाथ सिंह के भाषण से ऐसा कुछ नहीं हुआ था,इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने केदारनाथ सिंह को राहत दे दी।
   हाल में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम केदारनाथ सिंह बनाम बिहार सरकार वाले जजमेंट पर कायम है।
देशद्रोह के हाल के कुछ मामलों को अदालतें 1962 के उस निर्णय की कसौटी पर ही कसेंगी।

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