मंगलवार, 22 अक्तूबर 2019

   ‘‘अखलाक और पहलू खान की हत्या पर पूरे देश को असहनशील बताने वाले कलाकार,पत्रकार और लेखकों की जुबान कमलेश तिवारी की हत्या पर क्यों सिली हुई है ?
ये धार्मिक भेदभाव आखिर क्यों ?
किसी मैग्सेसे और नोबल वाले को इस हत्या से डर और गुस्सा क्यों नहीं आ रहा ?’’
                          ---राहुल सिन्हा
मान लिया कि कमलेश तिवारी अतिवादी था।
उसने मोहम्मद साहब के खिलाफ टिप्पणी करके तो बहुत ही गलत काम किया।
 पर याकूब मेमन और अफजल गुरू कैसे थे ?
एक के  लिए आधी रात में सुप्रीम कोर्ट खोलवाने वाले और 
दूसरे की बरखी विश्व विद्यालय में मनाने वाले कमलेश की जघन्य हत्या पर क्यों नहीं कुछ बोल रहे हैं ?
इसका कारण अधिकतर जनता जान गई है।
इसीलिए अनेक लोग न चाहते हुए भी भाजपा की शरण में चले गए और धीरे -धीरे जा रहे हैं ।


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