मंगलवार, 29 अक्तूबर 2019

  चुनाव नतीजों के विश्लेषण में डंडीमारी
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किसी भी चुनाव नतीजे को लेकर कुछ बुद्धिजीवी लोग अपनी -अपनी सुविधा, विचारधारा तथा अन्य कारणों से ऐसे-ऐसे विश्लेषण पेश करने लगते हैं जिनका सरजमीन से कोई संबंध ही नहीं होता।
महाराष्ट्र-हरियाणा चुनाव में सत्ताधारी दल को अपेक्षाकृत कम सीटें मिलीं तो कुछ भाई लोग इसमें देश की राष्ट्रीय राजनीति में संभावित भारी बदलाव की उम्मीद पालने लगे।
   अरे भई, शरद पवार और भूपेंदर सिंह हुड्डा के खिलाफ जांच एजेंसियों की अति सक्रियता के कारण उनकी जातियों के अनेक मतदाताओं ने बड़ी संख्या ने सत्ताधारी दल के खिलाफ वोट दे दिए।
 गंभीर विचार-विमर्श तो अब इस बात पर होना चाहिए था कि यदि एक-एक करके भ्रष्टाचार के आरोपियों पर कार्रवाई होती रहे और  उनकी जातियों के अधिकतर लोग आरोपी के दल के पक्ष में ‘सहानुभूति मतदान’ करने लगें तो इस देश के लोकतंत्र का आखिर क्या होगा ? 
   कोई तानाशाह पैदा नहीं होगा ?
क्या लोकतंत्र देश को लूटने के लिए है ?
महात्मा गांधी ने कहा था कि ‘भ्रष्टाचार को लोकतंत्र  की अपरिहार्य उपज नहीं बनने दिया जाना चाहिए।’
दरअसल आजादी के बाद उनके जीवनकाल मंे ही उसके संकेत मिलने लगे थे।
गांधी ने बिहार के एक कैबिनेट मंत्री को हटाने को कहा था जिस पर भ्रष्टाचार के आरोप की खबर मिलनी शुरू हो गई थी।
पर, तब गांधी की बात नहीं मानी गई।

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