शुक्रवार, 4 अक्तूबर 2019

आज रमेश थानवी मेरे घर आए।
स्नेहिल व्यक्तित्व के धनी थानवी जी शहर से दूर गांव में होने के बावजूद मेरे यहां आए।सड़क भी अच्छी नहीं है।
वे गांधी विचार समागम के सिलसिल में पटना आमंत्रित थे।
रमेश जी जब सत्तर के दशक में दिल्ली से प्रकाशित चर्चित साप्ताहिक पत्रिका ‘प्रतिपक्ष’  के संपादकीय विभाग मंंे कार्यरत थे,उन दिनों मैं उस पत्रिका का बिहार संवाददाता था।
  उन दिनों तो यदाकदा पत्रिका के काम के सिलसिले में  उनसे सिर्फ पत्र-व्यवहार होता था।बाद के वर्षों में कई बार फोन पर बातचीत हुई।
 रमेश थानवी एक ऐसे परिवार से आते हैं जिसके एक से अधिक सदस्य अपने बारे में कम ,देश व समाज के बारे में अधिक सोचते रहे हैं।यह परिवार जोध पुर के पास के गांव का मूल निवासी है।
 खुद रमेश जी ने अनौपचारिक शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण काम किया।देश-विदेश घूमे।ज्ञानार्जन किया।नये काम किए।
  उनके भतीजा ओम थानवी जनसत्ता के संपादक रहे।
इन दिनों ओम जी हरिदेव जोशी पत्रकारिता एवं जन संचार विश्व विद्यालय,जयपुर के कुलपति हैं।
  ओम थानवी के दिवंगत पिता शिवरतन थानवी शिंक्षक,शिक्षाविद् और शिक्षा से संबंधित दो सम्मानित पत्रिकाओं के संपादक रह चुके थे।
गत साल उनका निधन हो गया।
जब मैं जनसत्ता में था तो ओम थानवी जी यदाकदा कहा करते थे कि आप तो मेरे चाचा के साथ काम कर चुके हंै।
ऐसे यशस्वी परिवार के सदस्य रमेश थानवी जब आज मेरे घर आए तो उसके पीछे  सिर्फ उनका मेरे प्रति स्नेह ही था और किसी प्रयोजन का सवाल की नहीं उठता।
मैं अभिभूत हो गया।
प्रभाष जोशी के पुत्र की शादी के अवसर पर मैं नब्बे के दशक में जोध पुर गया था।
हमलोग मेहरान गढ़ किले में भी गए। ओम थानवी ने एक पुरातन बंदूक के साथ मेरी जो तस्वीर तब खींची थी,उसे मैंने अब भी संजो कर रखा है।
दरअसल हमारे पूर्वज जोधपुर से ही भटकते-भटकते कभी बिहार आकर बसे थे।
इसलिए मैं जोध पुर और वहां के लोगों से विशेष लगाव महसूस करता हूं।
  जब मैं छोटा था तो अभिभावक हमें अपना परिचय बताने का यह तरीका सिखाते थे।
वह भोजपुरी में इस प्रकार होता था-
प्रश्न-का नाम बा ?
उत्तर-सुरेंद्र सिंह
प्रश्न-बाबू जी के नाम ?
उत्तर-शिव नंदन सिंह 
प्रश्न- कौन जात बाड़ ?
उत्तर-राजपूत
प्रश्न-गोत्र का बा ?
उत्तर-शाण्डिल्य
प्रश्न-घर कहां बा ?
उत्तर-भरहा पुर
प्रश्न-थाना ?
उत्तर-परसा
प्रश्न-जिला ?
उत्तर-सारण
प्रश्न-कहां के बाशिन्दा बाड़ ?
उत्तर-जोध पुर के ।
यानी, तब जोध पुर के बिना मेरा परिचय पूरा नहीं होता था।
--4 अक्तूबर 2019 

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