शनिवार, 26 अक्तूबर 2019

‘बिजली की तरह कौंधो और सूरज की तरह स्थायी हो जाओ’
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आज के तरह -तरह के भ्रष्टाचारियों से जो सत्ताधारी नहीं लड़ रहा है,वह दरअसल उनसे समझौता कर रहा है।
या, फिर उनसे डर रहा है।उसे इस क्रम में सत्ता जाने का डर है।
जो सत्ताधारी भ्रष्टाचारियों से लड़ने के क्रम में खतरा मोल लेने को तैयार नहीं रहता,उसका राजपाट वैसे भी जाने ही वाला है।
उनकी उम्मीद से जल्द ही ! 
  आज इन तत्वों से लड़ने की बेचैनी कुछ ही सत्ताधारियों के चेहरे और देह भाषा से परिलक्षित हो रही  है।
  क्या देवेंद्र फडणवीस और मनोहर लाल खट्टर के चेहरों पर वैसी कोई बेचैनी परिलक्षित हो रही थी ?
 मुझे तो उसकी निशानी नजर नहीं आई।वैसी कोई खबर भी नहीं आ रही थी।
नतीजतन इस बार उनकी सत्ता जाते-जाते बची।
मोदी का नाम आखिर उन्हें कितने दिनों तक बचा पाएगा ? 
  दूसरी ओर, नरेंद्र मोदी में वह बेचैनी परिलक्षित होती रही है ,इसीलिए पिछले लोस चुनाव की अपेक्षा अगले चुनाव में जनता ने उन्हें अधिक वोट दिए।
मोदी इस देश के पहले नेता हैं जो सिर्फ अपने बल -बूते लगातार दूसरी बार भी प्रधान मंत्री बने।
मोदी को  यदि जेहादियों से खतरा है तो आर्थिक अपराधियों से भी।
  1967 में जब नौ राज्यों में गैैर कांग्रेसी सरकारें बनीं तो गैर कांग्रेसवाद के रचयिता डा.राम मनोहर लोहिया ने अपने दल के सत्ताधारियों से कहा था कि
 ‘बिजली की तरह चमको और सूरज की तरह स्थायी हो जाओ।’
तब भी यह नहीं हो सका था।
इसलिए गैर कांग्रेसी सरकारें अल्पजीवी रहीं।
   आज भी बिजली की तरह कौंधने व सूरज की तरह स्थायी हो जाने की जरूरत है।
क्योंकि भ्रष्ट तत्व 1967 की अपेक्षा आज अधिक ताकतवर हैं।
 मेरा मानना है कि भ्रष्टाचार से ही अन्य अधिकतर बुराइयां पैदा होती हैं।उनका पालन-पोषण होता है।
एक बहुत बड़ी जानलेवा बुराई यानी खाद्य-भोज्य पदार्थों में व्यापक मिलावट के रुप में सामने है।
इससे पीढि़यों के नष्ट होने का खतरा है।
इस पर कल के दैनिक ‘आज’ में राज्य सभा सदस्य आर.के.सिन्हा का आंखें खोलने वाला लेख छपा है।
मिलावट के पीछे भी भीषण भ्रष्टाचार ही है।
हे सत्ताधारियो , यदि बाहर-भीतर के भ्रष्टों को निर्णायक रूप से अभी पराजित नहीं कर दोगे तो वे एक दिन  फिर तुम पर चढ़ बैठेंगे।
तुम पर क्या, जनता व देश पर चढ़ बैठेंगे।
फिर वे वही सब करेंगे जो करने की उनकी आदत रही है।
क्योंकि वे लोग नोबेल विजेता अभिजीत बनर्जी की इस स्थापना में विश्वास करते हैं कि 
‘‘भारत में भ्रष्टाचार अर्थ व्यवस्था के पहियों को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण था,इसे काट दिया गया है।
भ्रष्टाचार से लड़ना महंगा प्रयास है।’’
@दैनिक हिन्दुस्तान में प्रकाशित अभिजीत बनर्जी के इंटरव्यू से@
  याद रहे कि जब भी सत्ता बदलती है,तो ये तरह-तरह के तत्व नई सत्ता से जुड़ जाते हैं।
या, ऐसा करने की कोशिश में लग जाते हैं।
ऐसा करने का ‘कौशल’ जो उनके पास है !

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