रविवार, 20 अक्तूबर 2019


कोर्ट और सरकार के रुख से साफ है कि नहीं बचेंगे अतिक्रमणकारी--सुरेंद्र किशोर
पटना में भारी जल जमाव के लिए जिम्मेवार अफसरों के खिलाफ बिहार सरकार ने कार्रवाई शुरू कर दी है।
अब पटना हाईकोर्ट ने कहा है कि आदेश के बावजूद जल-जमाव हमारे आदेश की अवमानना है।
इसके लिए जो जिम्मेदार होंगे,वे बख्शे नहीं जाएंगे।
लगा कि हाईकोर्ट राज्य सरकार की  अफसरों के खिलाफ ताजा कार्रवाइयों से संतुष्ट नहीं है।
 दरअसल हाईकोर्ट से आम लोग यह उम्मीद कर रहे हैं कि वह जल जमाव के मूल कारणों की तलाश करने का प्रबंध करे।
  मोटा-मोटी इसका मूल कारण नगर निगम में व्याप्त अपार भ्रष्टाचार है जिसने संस्थागत रूप धारण कर लिया है।
  उसकी तह में सी.बी.आई.ही पहुंच सकती है।
यह राज्य सरकार की किसी एजेंसी के वश की बात नहीं है।
   -- राज्य सरकार की कार्रवाई भी अभूतपूर्व--
पटना जल जमाव के लिए जिम्मेवार अफसरों के खिलाफ  इस बार जितने बड़े पैमाने पर कार्रवाई की घोषणा हुई है,वैसी कड़ी कार्रवाई होते अब तक नहीं देखा गया था।
  यदि घोषणाओं को तार्किक परिणति तक पहुंचा दिया जाए तो लापारवाह और भ्रष्ट कर्मियों को नसीहत मिलेगी।
उम्मीद है कि राज्य सरकार गैर जिम्मेवार अफसरों-कर्मियों के राजनीतिक-गैर राजनीतिक पैरवीकारों के दबाव में नहीं आएगी।
  राज्य सरकार की यह घोषणा महत्वपूर्ण है कि नालों पर से अगले दो महीनों में अतिक्रमण हटवा दिए जाएंगे।
पिछले कुछ हफ्तों में शासन ने जिस तरह पटना में  अतिक्रमणकारियों के खिलाफ कार्रवाई की है,उससे उम्मीद बंधती है।
 पर नालों पर अतिक्रमणकारी कुछ अधिक ही प्रभावकारी व ढीठ हैं।
उन पर यदि सचमुच कार्रवाई हो गई तो शासन का इकबाल कायम हो जाएगा।
वैसे पटना नगर निगम में संस्थागत हुए भ्रष्टाचार को राज्य सरकार किस तरह समाप्त करेगी,यह भी एक यक्ष प्रश्न है। 
 --रिंग रोड से घटेगा पटना पर आबादी का बोझ--
.भारी वर्षा से जल जमाव,बाढ़,वायु प्रदूषण,रोड जाम  और भूजल की कमी आदि की समस्याओं से पटना को राहत दिलानी हो तो प्रस्तावित  पटना रिंग रोड पर शीघ्रातिशीघ्र काम शुरू कर देना होगा।
यह रिंग रोड प्रधान मंत्री पैकेज का हिस्सा है।
आम तौर पर रिंग रोड के आसपास खुली हवा में मूल नगर की कुछ आबादी शिफ्ट करती है और नई आबादी बसती है।
इससे मूल नगर पर आबादी का दबाव कम होता हैं।आबादी कम यानी जन सुविधाओं पर दबाव कम।
  --सी.पी.आई.की सकारात्मक पहल-
 सी.पी.आई.की केरल शाखा ने एक अनोखी पहल की है।
वह 25 अक्तूबर से तीन दिनों का सेमिनार आयोजित करने जा रही  है।
उस सेमिनार में हिन्दू धर्म ग्रंथांे पर चर्चा होगी।
उसमें देश भर के वैज्ञानिक सोच वाले नौ विशेषज्ञ अपने पेपर पढ़ेंगे।
वे पेपर वेद ,पुराण और उपनिषदों पर आधारित होंगे।
उन धर्म ग्रंथों पर वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में नजर डाली जाएगी।
 इस संबंध में एक सी.पी.आई.नेता ने बताया कि हम चाहते हंै कि सांप्रदायिक तत्व उन धर्म ग्रंथों का अपने राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमान न करंे।
काश ! सी.पी.आई.अन्य धर्मों के ग्रंथों पर भी इसी तरह वैज्ञानिक दृष्टि से नजर डालती !
  --फिर एस.ए.डांगे से 
नाराजगी क्यों ?--
 हिन्दू धर्म ग्रंथों का कुछ लोग दुरुपयोग कर रहे हैं।यानी, 
 सी.पी.आई. यह मानती है कि उन ग्रंथों का सदुपयोग भी हो सकता है।
  यानी सी.पी.आई.सत्तर के दशक से बहुत आगे चली आई है।यह एक तरह से जड़ों से जुड़ने और समझने की जाने-अनजाने कोशिश है।कोशिश सराहनीय है।
 इस पार्टी में सबसे बड़ी कमी यही रही है कि वह देश की जड़ों से कटी रही है।    
 त्यागी-तपस्वी नेताओं व कार्यकत्र्ताओं से भरी
पार्टी होने के बावजूद यह  इस गरीब देश में भी पूरी तरह जम नहीं  पाई।अब तो जो भी बचा है,उसके उखरते
जाने के संकेत भी मिल रहे हैं।
 सत्तर के दशक में सी.पी.आई.के अध्यक्ष एस.ए.डांगे के दामाद वाणी देशपांडेय ने  वेदों पर एक किताब लिखी थी।उन्होंने वेदों में माक्र्सवादी द्वंद्ववाद की झलक पाई थी।
डांगे साहब ने उसकी प्रशंसात्मक भूमिका लिखी थी।
उस पर पार्टी डांगे पर काफी नाराज हो गई थी।
  --उम्मीदवारों के आपराधिक रिकाॅर्ड का विवरण--
11 नवंबर, 2018 को चुनाव आयोग ने कहा था कि मतदान से पूर्व अपने आपराधिक रिकाॅर्ड के विज्ञापन अखबारों में और टी.वी.पर नहीं देने वाले उम्मीदवारों को अदालत की अवमानना का सामना करना पड़ सकता है। 
विज्ञापन तीन बार देने होंगे।यह सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन है।
इन दिनों बिहार में भी कई क्षेत्रों में उप चुनाव हो रहे हैं।क्या आपने किसी उम्मीदवार के बारे में ऐसे विवरण किसी अखबार में विज्ञापन के रूप में देखा ?
 क्या सुप्रीम कोर्ट ने अपनी  गाइडलाइन वापस ले ली  है ?
ऐसी कोई खबर भी नहीं देखी गई।
       --और अंत में-
देश की राजधानी में कुछ ही दिनों के भीतर प्रधान मंत्री के परिजन,मेट्रोपाॅलिटन मजिस्ट्रेट और पत्रकार से लुटेरों ने सामान छीने।
तीनों मामलों में अपराधी पकड़ लिए गए।
यह माना जाता है कि पुलिस जिन अपराधियों को पकड़ना चाहती है,उन्हें तो वह पकड़ ही लेती है।इन मामलों में भी यही हुआ।
 यह भी आम धारणा है कि अपवादों को छोेड़कर इस देश की पुलिस अपने इलाके के अपराधियों को जितना अधिक जानती-पहचानती है,उतना कुछ ही अन्य देशों की पुलिस अपने क्षेत्राधिकार के अपराधियों को जानती-पहचानती होगी !
इसके बावजूद इस देश में आरोपित अपराधियों में से सिर्फ 45 प्रतिशत अपराधियों को ही अभियोजन पक्ष  कोर्ट से सजा दिलवा पाता है।
ऐसा क्यों ? बात कुछ समझ में आई !!
--कानोंकान-प्रभात खबर-बिहार-18 अक्तूबर 2019



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