रामजी मिश्र मनोहर की याद में
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हम तो दिवंगत नेताओं को समय -समय पर याद करते हैं।
पर, चैथे स्तम्भ यानी पत्रकारिता क्षेत्र की वैसी
हस्तियों को भी सामान्यतः याद नहीं करते,जिनका उस क्षेत्र में योगदान रहा है और उनसे सीखने की इच्छा रखने वाले नई पीढ़ी के पत्रकार कुछ सीख सकते हैं।
हमारे कई स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने शानदार शैक्षणिक रिकार्ड व शानदार कैरियर छोड़कर भी आजादी की लड़ाई में खुद को झोंक दिया था।
उन्हें तो याद किया ही जाना चाहिए।
पर, कम ही लोगों को मालूम है कि बहुत पहले सरकारी नौकरी के आॅफर व भरपूर संभावनाओं को नजरअंदाज करके कई लोगों ने दैनिक आर्यावत्र्त में अपेक्षाकृत कम पैसों पर पत्रकारिता की नौकरी शुरू की थी।
ऐसा देश के अन्य मीडिया हलके में भी हुआ।
ऐसे में जब आज के कुछ अखबारों के जरिए रामजी मिश्र मनोहर को याद किया गया तो संतोष हुआ।
मनोहर जी उन वरीय पत्रकारों में शामिल थे जिनसे थोड़ा-बहुत मुझे भी सीखने का मौका मिला था।
मैंने उनके साथ काम तो नहीं किया,पर जहां मैं काम करता था,यानी ‘आज’ में उसके संपादक पारसनाथ सिंह से मिलने वे अक्सर आते रहते थे।
हम जूनियर पत्रकारों की खबरें भी मनोहर जी पढ़ते थे और उसकी निर्ममतापूर्वक समीक्षा भी करते थे।
उससे हमें सीखने का मौका मिलता है।
पर, आज तो पत्रकारिता का नजारा ही लगभग बदल चुका है।
अब तो कुछ अपवादों को छोड़कर अधिकतर नए पत्रकार सिर्फ उन्हीं की आलोचनात्मक टिप्पणियां बेमन से बर्दाश्त करते हैं जिनके हाथों में उनके सेवा नवीकरण,वेतन वृद्धि और तबादला आदि के अधिकार होते हैं।
ऐसे में मीडिया जगत की दिवंगत हस्तियों के गुणों को व विशेषताओं को याद किया जाए,तो सीखने की इच्छा रखने वाले कुछ मीडियाकर्मियों को शायद कुछ फायदा हो।
---सुरेंद्र किशोर--29 अक्तूबर 2019
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हम तो दिवंगत नेताओं को समय -समय पर याद करते हैं।
पर, चैथे स्तम्भ यानी पत्रकारिता क्षेत्र की वैसी
हस्तियों को भी सामान्यतः याद नहीं करते,जिनका उस क्षेत्र में योगदान रहा है और उनसे सीखने की इच्छा रखने वाले नई पीढ़ी के पत्रकार कुछ सीख सकते हैं।
हमारे कई स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने शानदार शैक्षणिक रिकार्ड व शानदार कैरियर छोड़कर भी आजादी की लड़ाई में खुद को झोंक दिया था।
उन्हें तो याद किया ही जाना चाहिए।
पर, कम ही लोगों को मालूम है कि बहुत पहले सरकारी नौकरी के आॅफर व भरपूर संभावनाओं को नजरअंदाज करके कई लोगों ने दैनिक आर्यावत्र्त में अपेक्षाकृत कम पैसों पर पत्रकारिता की नौकरी शुरू की थी।
ऐसा देश के अन्य मीडिया हलके में भी हुआ।
ऐसे में जब आज के कुछ अखबारों के जरिए रामजी मिश्र मनोहर को याद किया गया तो संतोष हुआ।
मनोहर जी उन वरीय पत्रकारों में शामिल थे जिनसे थोड़ा-बहुत मुझे भी सीखने का मौका मिला था।
मैंने उनके साथ काम तो नहीं किया,पर जहां मैं काम करता था,यानी ‘आज’ में उसके संपादक पारसनाथ सिंह से मिलने वे अक्सर आते रहते थे।
हम जूनियर पत्रकारों की खबरें भी मनोहर जी पढ़ते थे और उसकी निर्ममतापूर्वक समीक्षा भी करते थे।
उससे हमें सीखने का मौका मिलता है।
पर, आज तो पत्रकारिता का नजारा ही लगभग बदल चुका है।
अब तो कुछ अपवादों को छोड़कर अधिकतर नए पत्रकार सिर्फ उन्हीं की आलोचनात्मक टिप्पणियां बेमन से बर्दाश्त करते हैं जिनके हाथों में उनके सेवा नवीकरण,वेतन वृद्धि और तबादला आदि के अधिकार होते हैं।
ऐसे में मीडिया जगत की दिवंगत हस्तियों के गुणों को व विशेषताओं को याद किया जाए,तो सीखने की इच्छा रखने वाले कुछ मीडियाकर्मियों को शायद कुछ फायदा हो।
---सुरेंद्र किशोर--29 अक्तूबर 2019
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