गुरुवार, 3 अक्तूबर 2019

प्रबंधन सही हो तो प्रस्तावित मेडिकल विश्व विद्यालय बदल सकता है तस्वीर--सुरेंद्र किशोर


मेडिकल की पढ़ाई के लिए बिहार में अलग से नए मेडिकल विश्व विद्यालय की स्थापना की प्रक्रिया शुरू हो गई है।
इसके लिए राज्य सरकार ने उच्चस्तरीय समिति का गठन कर दिया है।
  राज्य सरकार का यह काम सराहनीय है।
  फिलहाल बिहार में 14 मेडिकल काॅलेज हैं।नए 11 मेडिकल काॅलेज खुलने वाले हैं।
 संभवतः  बिहार सरकार ने यह सोचा है कि इससे मेडिकल की पढ़ाई बेहतर हो सकेगी,यदि अलग से कोई विश्व विद्यालय उसका संचालन करे।
  पर अनुभव बताते हैं कि सिर्फ कोई नया विश्व विद्यालय खोल देने से पुरानी समस्या का हल नहीं होगा।
सबसे बड़ी समस्या यह है कि उस प्रस्तावित विश्वविद्याल में वाइस चांसलर कौन होंगे ? वे कैसे होंगे ?
शिक्षक कहां से आएंगे ?
क्या ये लोग मेडिकल काॅलेजों में शिक्षण-परीक्षण की सही व्यवस्था सुनिश्चित करा पाएंगे ?
 अभी तो छिटपुट यह खबर आती  रहती है कि अधिकतर मेडिकल काॅलेजों में न तो छात्र
पढ़ने में रूचि रखते हैं और शिक्षक की संख्या पर्याप्त है।
क्या नए विश्व विद्यालय के कत्र्ता धत्र्ता इस बात की जांच पहले करा लेंगे कि कितने मौजूदा मेडिकल काॅलेजों में बिना कदाचार के परीक्षाएं होती हैं ?
यदि वहां कदाचार व्याप्त है तो वैसा क्यों है ? उस परंपरा को प्रस्तावित विश्व विद्यालय में  प्रवेश पाने से कैसे रोका जा सकेगा ?
  देश में तीन आर्मी मेडिकल काॅलेज हैं।
वे पूना,दिल्ली और तेलांगना में हैं।
  बिहार के नए मेडिकल विश्व विद्यालय में आर्मी काॅलेज
से  रिटायर प्रिंसिपल व शिक्षक को बुला कर तैनात किया जा सकता है,यदि वे आने को राजी हों।  
पचास के दशक में बाहर के राज्यों से शिक्षकों को बुलाकर पटना विश्व विद्यालय में तैनात किया गया था। 
   मेडिकल काॅलेजों में कदाचारमुक्त परीक्षा को सुनिश्चित करने के लिए जरुरत पड़ने पर परीक्षा के दौरान पर्याप्त सुरक्षा बलों की तैनाती की जा सकती है।  
सामान्य विषयों की परीक्षाओं में कदाचार का सीधा असर सामान्य लोगों पर नहीं पड़ता।
पर मेडिकल की पढ़ाई अच्छी नहीं हो तो धरती के भगवान पर मरीजों के गार्जियन का गुस्सा उतरने लगता है।
हालांकि यहां यह नहीं कहा जा रहा है कि आज जो लोग मेडिकल की पढ़ाई करके निकल रहे हैं,वे सब के सब अयोग्य ही हैं।
उनमें से अनेक लोग विदेशों में भी जाकर नाम -यश कमा रहे हैं।पर उनके साथ कुछ वैसे लोग भी डाॅक्टर बन रहे हैं जिन्होंने न सिर्फ प्रवेश परीक्षा में पास होने के लिए दो नंबर का काम किया,बल्कि वे सामान्य मेडिकल शिक्षा-परीक्षा में भी सिरियस नहीं रहे।
   हालांकि एक कमी राज्य सरकार की भी है।वह मेडिकल काॅलेजों में मानव संसाधन व अन्य तरह की जरुरी सुविधाएं जुटाने के प्रति लापारवाह रही है। 
सामान्य शिक्षा की तस्वीर
स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता के क्षेत्र में बिहार का देश में 17 वां स्थान है।
नीति आयोग के अनुसार सर्वाधिक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा राजस्थान में दी जा रही है और सबसे खराब हाल उत्तर प्रदेश का है।
संतोष का विषय यह है कि पंजाब और जम्मू कश्मीर की भी स्थिति हमसे भी खराब है।
उधर यह भी खबर आती रहती है कि बिहार में दर्जनों काॅलेज कागजों  पर ही चलते हैं।
 सामान्य शिक्षा को भी सुधारने के  प्रयास में चांसलर व राज्य सरकार लगे हुए हैं।पर  मेडिकल शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए तो अलग से यथाशीघ्र पूरा ध्यान देने की जरुरत है। 
      भूली-बिसरी याद
छात्र जीवन में अक्सर ही मुझे रेलवे स्टेशन से रात-विरात पैदल ही चार किलोमीटर दूर गांव जाना पड़ता था।
अंधेरी व आधी रात में भी सूनसान सड़क पर चलने में कोई खास डर-भय नहीं रहता था।
कानून -व्यवस्था तब बेहतर थी।
  पर यदाकदा सड़क पर पहरा देते चैकीदार से भी मुलाकात हो जाती थी।
कई बार परिचय पूछ कर वह मेरे घर तक मुझे पहुंचा दिया करता था।
 समय बीतने के साथ चैकीदार-दफादारों की अनुपस्थिति खलने लगी।
  कहा गया कि राजनीतिक संरक्षणप्राप्त अपराधियों ने चैकीदार-दफादारों के महत्व को समाप्त कर दिया।
  इस बीच उनके लिए वेतन का प्रावधान हो गया।
फिर भी उनकी चैकसी नहीं बढ़ी।
कहा गया कि उनकी सेवाएं कलक्टरों को सौंप दिए जाने से थानों का उन पर हुकुम नहीं चल पाता।
 बिहार सरकार ने अपने ताजा निर्णय के तहत यह व्यवस्था कर दी है कि चैकीदार-दफादारों को अब एस.पी.दंडित कर पाएंगे।
इसके लिए चैकीदार संवर्ग नियमावली में संशोधन कर दिया गया है।
  देर आए,दुरुस्त आए !
कम से कम जिन जिलों के एस.पी.कत्र्तव्यनिष्ठ होंगे,उस जिले में चैकीदार-दफादारों की भूमिका बढ़ जाएगी।
  घाटा पाटने के उपाय
गत 20 सितंबर को भारत सरकार ने काॅरपोरेट टैक्स में जो भारी छूट दी,उससे एक लाख 45 हजार करोड़ रुपए का टैक्स नुकसान होगा।
  इसकी भरपाई के उपाय में सरकार लग गई है।
कई उपाय किए जा रहे हैं।उन उपायों में खाली पड़ी सरकारी जमीन को बेचना शामिल है।
  सेना की देश भर में फैली 9600 एकड़ जमीन पर लोगों ने कब्जा कर रखा है।उसे खाली करा कर बेचा जा सकता है।
उसी तरह भारतीय रेल की 930 हेक्टेयर जमीन अतिक्रमित है।
रेल महकमे की अपनी कुल जमीन 4 लाख 58 हजार हेक्टेयर है।इसमें से 47 हजार 339 हेक्टेयर जमीन का कोई उपयोग नहीं हो पा रहा है।
अनुपयुक्त जमीन को अतिक्रमण से बचाना बहुत कठिन काम होता है।
इसके अलावा भी कुछ महकमों के पास जमीन है।
इन्हें बेचा जा सकता है।
और अंत में
इंडोनेशिया की जल सेना का ‘ध्येय वाक्य’ संस्कृत में है-
‘जलेष्वेव जयामहे।’ 
श्रीलंका के कोलंबो विश्व विद्यालय का ध्येय वाक्य है-
‘बुद्धिः सर्वत्र भ्राजते।’
चेन्नई स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान का ध्येय वाक्य है--‘सिद्धिर्भवति कर्मजा।’
जिस तरह  भारत सरकार का ध्येय वाक्य है-सत्यमेव जयते। 
--27 सितंबर 2019 के प्रभात खबर-बिहार-में प्रकाशित मेरे काॅलम ‘कानोंकान’ से।



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