लाल बहादुर शा़स्त्री जैसे ‘वीर बहादुर’ की याद में
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लाल बहादुर शास्त्री के प्रधान मंत्रित्व काल में 1965 में भारतीय सेना ने संभवतः पहली बार विदेशी भूभाग पर युद्ध लड़ा और जीता।
हमारी सेना ने पाक सेना के छक्के छुड़ा दिए थे।
रेल मंत्री के पद से शास्त्री जी के इस्तीफे का प्रकरण लोगांे को याद रहता है।
भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी शून्य सहनशीलता थी।
इसीलिए शास्त्री जी के प्रधान मंत्री बनते ही प्रताप सिंह कैरो को मुख्य मंत्री पद छोड़ना पड़ा।
जस्टिस एस.आर.दास के नेतृत्व में गठित जांच आयोग ने कैरो को दोषी ठहराया था।
आयोग की रपट शास्त्री जी के प्रधान मंत्री बनने से पहले ही आ गई थी।पर उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई थी।
पर शास्त्री जी के प्रधानमंत्री बनते ही 21 जून 1964 को कैरो को पद छोड़ना पड़ गया।
यदि शास्त्री जी अधिक दिनों तक हमारे बीच होते तो वे भ्रष्टाचारियों पर भी नकेल कस देते।
पर, ताशकंद में रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मौत हो
गई।
कई लोगों ने तभी यह आरोप लगाया था कि यह राजनीतिक हत्या है।
उस समय कई लोग उस आरोप पर विश्वास करने को तैयार नहीं थे।
पर जब 1975 में रेल मंत्री ललित नारायण मिश्र की समस्तीपुर में हत्या कर दी गई तो यह विश्वास होने लगा कि संभवतः शास्त्री जी की भी हत्या हुई होगी।
मिश्र हत्या कांड,उसकी जांच और संबंधित मुकदमे की मैंने शुरू से ही बारीकी से अध्ययन किया है।
ललित नारायण मिश्र के परिजन के साथ -साथ मेरा भी यह मानना है कि मिश्र के असली हत्यारे को पकड़ने के बाद भी छोड़ दिया गया और अभियोजन ने ऐसा झूठा केस बनाया कि निर्दोष लोगों को निचली अदालत से सजा दिलवा दी गई।
2 अक्तूबर 2019
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लाल बहादुर शास्त्री के प्रधान मंत्रित्व काल में 1965 में भारतीय सेना ने संभवतः पहली बार विदेशी भूभाग पर युद्ध लड़ा और जीता।
हमारी सेना ने पाक सेना के छक्के छुड़ा दिए थे।
रेल मंत्री के पद से शास्त्री जी के इस्तीफे का प्रकरण लोगांे को याद रहता है।
भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी शून्य सहनशीलता थी।
इसीलिए शास्त्री जी के प्रधान मंत्री बनते ही प्रताप सिंह कैरो को मुख्य मंत्री पद छोड़ना पड़ा।
जस्टिस एस.आर.दास के नेतृत्व में गठित जांच आयोग ने कैरो को दोषी ठहराया था।
आयोग की रपट शास्त्री जी के प्रधान मंत्री बनने से पहले ही आ गई थी।पर उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई थी।
पर शास्त्री जी के प्रधानमंत्री बनते ही 21 जून 1964 को कैरो को पद छोड़ना पड़ गया।
यदि शास्त्री जी अधिक दिनों तक हमारे बीच होते तो वे भ्रष्टाचारियों पर भी नकेल कस देते।
पर, ताशकंद में रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मौत हो
गई।
कई लोगों ने तभी यह आरोप लगाया था कि यह राजनीतिक हत्या है।
उस समय कई लोग उस आरोप पर विश्वास करने को तैयार नहीं थे।
पर जब 1975 में रेल मंत्री ललित नारायण मिश्र की समस्तीपुर में हत्या कर दी गई तो यह विश्वास होने लगा कि संभवतः शास्त्री जी की भी हत्या हुई होगी।
मिश्र हत्या कांड,उसकी जांच और संबंधित मुकदमे की मैंने शुरू से ही बारीकी से अध्ययन किया है।
ललित नारायण मिश्र के परिजन के साथ -साथ मेरा भी यह मानना है कि मिश्र के असली हत्यारे को पकड़ने के बाद भी छोड़ दिया गया और अभियोजन ने ऐसा झूठा केस बनाया कि निर्दोष लोगों को निचली अदालत से सजा दिलवा दी गई।
2 अक्तूबर 2019
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