शनिवार, 5 अक्तूबर 2019

‘गिरने वाले मकान और डूबने वाले जहाज को चूहे  छोड़ देते हैं।’
आज जो कांग्रेसी किसी न किसी बहाने कांग्रेस छोड़ रहे हैंं,वे मेरी समझ से उन चूहों  की तरह हैं।
जब तक शरण मिली और मलाई मिली,तब तक वे कांग्रेस में रहे।
पर अब बेचारी कांग्रेस चूंकि उस स्थिति में नहीं है,होने की निकट भविष्य में उम्मीद भी नहीं हैं,इसलिए अवसरवादी नेता  एक -एक कर बेहतर चारागाह के लिए कांग्रेस  छोड़ रहे हैं।
क्या उन्हें पहले यह नहीं मालूम था कि कांगे्रस की राजनीतिक शैली कैसी है ?
क्या किसी नेता -कार्यकत्र्ता का अपनी पार्टी से संबंध सिर्फ टिकटों का ही रह गया है ? 
जो नेता आज कांगे्रेस छोड़ रहे हैं,वे चाहे और जो कुछ हों,पर जन सेवक तो बिलकुल नहीं है।‘स्वयं’ सेवक जरुर हैं।
मेरी यह बात अन्य दलों के ऐसे दलबदलू नेताओं पर भी लागू होती है जो पार्टी को दुर्दिन में देख कर दल छोड़कर भाग जाते हैं।
  यदि उस दल की स्थिति बेहतर हुई तो वे लौट भी आते हैं।
वे पार्टी  भी कोई भला काम नहीं करती जो ऐसे अवसरवादियों को बार- बार गले लगा लेती है। ़
लोकतंत्र राजनीतिक दलों से ही चलता है।
यदि दलों में ऐसे ही चूहे पलेंगे तो उस लोकतंत्र का अंततः क्या हाल होगा ?
वही होगा,जो हो रहा है।हालांकि अभी बहुत कुछ और  होने वाला है।

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