रविवार, 13 अक्तूबर 2019

डा.राम मनोहर लोहिया के जीवन और उनकी राजनीति पर एक नजर
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यह जानकारी खास तौर पर उनके लिए जिन्होंने 
कल उनकी पुण्यतिथि मनाई और जो लोहिया के नाम का सिर्फ तोतारटंत करते हैं।
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1.-लोहिया ने शादी नहीं,घर नहीं बसाया।
क्योंकि उनका मानना था कि जिन्हें सार्वजनिक जीवन में 
जाना है,उन्हें शादी नहीं करनी चाहिए।
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आज राजनीति में वंशवाद-परिवारवाद की महामारी को देखने से लगता है कि लोहिया यह जान गए थे कि एक दिन यही सब होने वाला है।
इन दिनों तो इन बुराइयों के कारण राजनीतिक दल एक -एक कर मुरझाते जा रहे हैं।
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2.-संसद सदस्य रहने के बावजूद उन्होंने कार नहीं खरीदी।
वे कहते थे कि कार को मेन्टेन करने लायक मेरी आय नहीं है।
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यह भी जान गए थे कि नेताओं को आय से अधिक खर्च करने 
की आदत पड़ जाएगी तो देश घोटालों-महा घोटालों में डूब जाएगा ।
आज कितने छोटे -बड़े नेता भ्रष्टाचार के आरोपों में मुकदमे झेल रहे हैं,उनकी गिनती की है आपने ?
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3.-उनका नारा था-‘पिछड़े पावें सौ में साठ।’
पर, वे ऊंची जातियों के विरोधी नहीं थे।
बारी-बारी से उनके जितने भी निजी सचिव हुए,
सब के सब ब्राह्मण थे।
यह बात बहुत मायने रखती है कि कोई नेता किसे अपना निजी सचिव रखता है।
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याद रहे कि जातीय-साम्प्रदायिक वोट बैंक के किले में सुरक्षित हो जाने के कारण इस देश के नेताओं ने जितने भ्रष्टाचार व अनर्थ किए,वह एक रिकाॅर्ड है।
यह आजादी के बाद ही शुरू हो गया था।
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4.-लोहिया ने एक बार एक ऐसे व्यक्ति को पार्टी छोड़ देने को कहा था कि जिसकी दुकान में शराब बिकती थी।
रांची के उस व्यक्ति ने शराब का व्यापार छोड़ दिया,पर पार्टी नहीं छोड़ी। 
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इस देश में आज कितने नेता हैं जो शराब नहीं पीते ?
उसका युवा पीढ़ी पर कैसा असर पड़ता है ?
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5.-लोहिया ने 1967 के चुनाव से ठीक पहले कहा कि मैं सामान्य नागरिक संहिता के पक्ष में हूं।
इस पर उनके एक सहकर्मी ने कहा कि यह आपने क्या कह दिया ?!!
आप तो अब चुनाव हार जाएंगे।
उस पर डा.लोहिया ने कहा कि मैं सिर्फ चुनाव जीतने के लिए राजनीति नहीं करता।देश बनाने के लिए राजनीति करता हूं। 
उस बयान के बाद वे चुनाव हारते -हारते जीते थे।
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सामान्य नागरिक संहिता संविधान के नीति निदेशक तत्वों वाले चैप्टर में है।
आज कितने नेता राजनीतिक स्वार्थ के कारण संविधान या उसकी भावना की उपेक्षा नहीं करते हैं ?
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ये तो बानगी भर हैं।उनके बारे में और
 बहुत सारी बातें हैं।
जयंती व पुण्यतिथि के अवसरों पर मंच से उनके ऐसे गुणों की चर्चा करते आपने किसी को सुना ?
मैंने तो नहीं सुना।
अधिकतर नेता लोहिया के बहाने उनकी तस्वीर लगाकर मंचों से अपनी राजनीति चमकाने की कोशिश करते हैं।


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