पीढि़यां गढ़ेंगे प्रस्तावित कदाचारमुक्त विशाल परीक्षा केंद्र-सुरेंद्र किशोर
पटना में 25 हजार क्षमता वाले परीक्षा परिसर के निर्माण की घोषणा ऐतिहासिक है।
मुख्य मंत्री नीतीश कुमार के अनुसार परीक्षा केंद्र जिलों में भी बनेंगे । केंद्र सुविधाओं से लैस होंगे।
यह जरूरी काम है जो सरकार करने जा रही है।
परीक्षाओं में कदाचार की समस्या ने महामारी का रूप ले लिया है।
स्थिति ऐसी है कि योग्य शिक्षक तैयार करने में भी अब कठिनाई हो रही है।
सारे अयोग्य नहीं हैं।पर कुछ शिक्षक ऐसे भी हैं जो न तो शुद्ध प्रश्न पत्र तैयार कर सकते हैं और न ही उत्तर पुस्तिकाओं की सही -सही जांच कर सकते हैं।शिक्षण स्तर गिरता जा रहा है।
मेडिकल-इंजीनियरिंग शिक्षण की हालत भी असंतोषप्रद है।
पटना के प्रस्तावित परीक्षा केंद्र का इस्तेमाल खास तौर से बेहतर शिक्षक तैयार करने में हो।
कदाचारमुक्त बी.एड.प्रवेश परीक्षा उसी 25 हजार की क्षमता वाले परीक्षा केंद्र में हो।
कदाचारमुक्त परीक्षा आयोजित करने के काम में अक्सर बाधा आती रही है।
राज्य सरकार ने अच्छा सोचा है कि वहां 52 सिपाहियों के रहने की व्यवस्था भी होगी।
पर उसके साथ कुछ अन्य उपाय भी करने होंगे।
बिहार पुलिस के सिपाही के बदले वहां सेना के पूर्व जवानों को तैनात किया जा सकता है।
यदि संभव हो तो तमिलनाडु जैसे राज्य से अर्ध सैनिक बल की टुकडि़यां बुलाई जाएं।ताकि, भाषा की बाधा कदाचार में भी बाधक बन सके।
परीक्षाएं कई सप्ताह चलें।
परीक्षा केंद्रों पर निगरानी के लिए आई.ए.एस.और आई.पी.एस.सेवा के कुछ कार्यरत व कुछ रिटायर अफसर तैनात किए जाएं।
अधिकारी वैसे हों जिनकी ईमानदारी और कत्र्तव्यनिष्ठा को लेकर किसी को कोई शक न हो।
ऐसे अफसर मिल जाएंगे।
ऐसी कदाचारमुक्त परीक्षाओं से गुजरे शिक्षकों को अधिक वेतन पर सरकारी स्कूलों में बहाल किया जाना चाहिए।
--कैसा हो शिक्षकों का वेतनमान--
काफी पहले की बात है।
प्रकरण यूरोप के किसी देश का है।
वहां के डाक्टर-इंजीनियर तथा दूसरे पेशेवर सरकारीकर्मी एक बार अपने शासक के यहां पहंुचे।
उन लोगों ने मांग की कि हमारा वेतन शिक्षकों से कम है।
उसे बढ़ाकर उनके बराबर किया जाए।
शासक ने कहा कि आपका वेतन शिक्षक के बराबर कैसे हो सकता है ?
वे नई पीढि़यां गढ़ते हैं।
उनसे आपकी कोई तुलना नहीं हो सकती।
आज भारत में पीढि़यां गढ़ने को लेकर भारी समस्या उत्पन्न हो गई है।
बिहार सरकार ने कई नए काम किए हैं।
बिहार में क्यों नहीं अब ऐसे शिक्षक तैयार हों जिनकी मांग देश के साथ -साथ विदेश में भी हो ?
पर उसके लिए शिक्षक निर्माण की प्रक्रिया में हो रहे तरह- तरह के कदाचारों को बंद करना होगा।
--बिहार हरियाली की ओर--
पर्यावरण असंतुलन , भ्रष्टाचार और आतंकवाद !
देश-दुनिया के सामने ये तीन सर्वाधिक गंभीर समस्याएं हैं।
जल जीवन हरियाली का संदेश देने के लिए बिहार ने 19 जनवरी को मानव श्रृंखला बनाई।
रिकाॅर्ड तोड़ मानव श्रृंखला !
लोगों खास कर नई पीढ़ी को इस समस्या को लेकर जागरूक करने के लिए मानव श्रृंखला की जरूरत भी थी।
क्या ही अच्छा हो,यदि कभी भ्रष्टाचार और आतंकवाद के खिलाफ भी मानव श्रृंखला बने।
वैसे बिहार सरकार ने हाल के वर्षों में राज्य में हरित क्षेत्र में बढ़ोत्तरी की है।
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार सन 2012 तक बिहार में करीब 9 दशमलव 79 प्रतिशत हरित क्षेत्र था।
2018 में बढ़कर 15 प्रतिशत हो गया।
2022 तक इसे बढ़ाकर 17 प्रतिशत करने का राज्य सरकार का लक्ष्य है।
भारत का औसत हरियाली क्षेत्र कुल रकबा का करीब 21
दशमलव 67 प्रतिशत है।
वैसे पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार 33 प्रतिशत वन क्षेत्र को आदर्श माना जाता है।
--कर्पूरी कथा ः एक बार फिर--
सन 1977 में जय प्रकाश नारायण के पटना स्थित आवास पर जेपी का जन्म दिन मनाया जा रहा था।
बड़े -बड़े नेतागण जुटे थे। तत्कालीन मुख्य मंत्री कर्पूरी ठाकुर भी वहां पहुंचे।
उनका कुत्र्ता थोड़ा फटा हुआ था।
चप्पल की स्थिति भी ठीक नहीं थी।
दाढ़ी बढ़ी हुई थी।
और बाल बिखरे हुए थे ।
वह धोती थोड़ा ऊपर करके पहनते थे।
नानाजी देशमुख ने कहा कि
‘‘भई किसी मुख्य मंत्री के गुजारे के लिए उसे न्यूनत्तम कितनी तनख्वाह मिलनी चाहिए ?
वह तनख्वाह कर्पूरी जी को मिल रही है या नहीं ?’’
इस टिप्पणी के बाद जनता पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष चंद्र शेखर उठ खडे़ हुए।
वे नाटकीय ढंग से अपने कुत्र्ते के अगले हिस्से के दो छोरों को दोनों हाथो ंसे पकड़कर खड़े हो गये।
वे वहां उपस्थित नेताओं के सामने बारी -बारी से जाकर वे कहने लगे,
‘‘आपलोग कर्पूरी जी के कुत्र्ता फंड में चंदा दीजिए।’’
चंदा मिलने लगा।कुछ सौ रुपये तुरंत एकत्र हो गये।
उन रुपयों को चंद्र शेखर ने कर्पूरी जी के पास जाकर उन्हें समर्पित कर दिया । कहा कि ‘‘आप इन पैसों से कुत्र्ता ही बनवाइएगा।कोई और काम मत कीजिएगा।’’
कर्पूरी जी ने मुस्कराते हुए उसे स्वीकार कर लिया और कहा कि ‘‘इसे मैं मुख्य मंत्री रिलीफ फंड में जाम करा दूंगा।’’
--और अंत में--
चुनाव आयोग ने 9 जनवरी, 2011 को कहा था कि
‘‘यह विडंबना है कि जेल में बंद व्यक्ति को उसका मुकदमा लंबित रहने के दौरान चुनाव लड़ने की तो आजादी है,लेकिन वह मतदान करने के योग्य नहीं है।’’
आयोग ने तब यह सलाह भी दी थी कि ‘‘हत्या, बलात्कार तथा अवैध वसूली के गंभीर आरोपों का सामना कर रहे उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने से रोकने के लिए तुरंत कदम उठाए जाएं।’’
राजनीति के बढ़ते अपराधीकरण की पृष्ठभूमि में आयोग के इस पुराने सुझाव पर सरकार को विचार करना चाहिए,ऐसा अनेक लोग मानते हैं।
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--कानोंकान-प्रभात खबर-24 जनवरी 2020
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