फेसबुक मित्र सेराज अनवर की
एक टिप्पणी के जवाब में ..
.........................................
सेराज जी,
फेसबुक पर लिखने के अलावा भी मेरे पास कुछ काम रहता है।
उसे आपने मेरी चुप्पी समझी।
आपने यह भी लिख दिया कि मैं अन्य लोगों से आपकी टिप्पणियों के खिलाफ लिखवा रहा हूं।
यही तो आपकी सोच है।
जो लोग लिख रहे हैं,उनमें से शायद ही किन्हीं से मेरा व्यक्तिगत संपर्क है।
वैसे आपकी सोच को देखते हुए लगता है कि किसी तरह की बहस की कोई सार्थकता नहीं है।
आप अपनी दुनिया में खुश रहिए।
मैं कोई सर्टिफिकेट नहीं दूंगा जैसा आपने मेरा गार्जियन
यानी ‘कुलपति’ बन कर मुझे दिया है।
संतुलित सोच वाले मेरे कई मुस्लिम मित्र-परिचित हैं जो कई बार मुझसे सहमत होते हैं।
मेरी सोच के कुछ नमूने यहां पेश हंै।
मैं वरूण गांधी के हाथ काटने वाले बयान को उतना ही बुरा मानता हूं जितना इमरान मसूद के मोदी को बोटी -बोटी काट देने वाले बयान को।
मैं 15 मिनट पुलिस हटा लेने वाले अकबरूद्दीन के बयान का उतना ही विरोधी हूं जितना अनुराग ठाकुर के गोली मारने वाले बयान का।
मैं 2002 में गोधरा रेलवे स्टेशन पर 59 कारसेवकों को जला कर मार देने के उतना ही खिलाफ हूं जितना बाद के दंगों के।
मैं इस देश को वास्तविक सेक्युलर देश के रूप में विकसित होते देखना चाहता हूं जहां न तो बहुसंख्यकों का किसी अन्य पर कोई ‘वर्चस्व’ रहे और न ही कोई अन्य इस देश में खलीफा राज कायम करने की कोशिश करे।
मैं गोड्से के उतना ही खिलाफ हूं जितना जिन्ना के जिसने डायरेक्ट एक्शन करके लाखों लोगों को मरवा देने का।
आदि आदि...........।
इसके बाद जो मुझे जैसा सर्टिफिकेट देना चाहते हैं ,दे सकते हैं।
पर उस सर्टिफिकेट के लिए मैं लालू प्रसाद नहीं बन सकता जिन्होंने फर्जी जांच बैठाकर यह रपट दिलवा दी कि गोधरा में रेलवे कम्पार्टमेंट में कार सेवकों ने खुद ही आग लगा ली थी।
मैं यह भी नहीं मानता कि गुजरात के दंगे जैसा भीषण दंगा उससे पहले इस देश में कभी नहीं हुआ और मोदी जैसा राक्षस और कोई नहीं।
गुजरात दंगे में क्या खास हुआ जो किसी अन्य दंगे में नहीं हुआ था ?
गुजरात के अलावा किस दंगे में 200 पुलिसकर्मियों ने दंगाइयों से निर्दोष लोगों को बचाने के लिए
अपनी जान दे दी थी ?
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.....सुरेंद्र किशोर--29 जनवरी 2020
एक टिप्पणी के जवाब में ..
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सेराज जी,
फेसबुक पर लिखने के अलावा भी मेरे पास कुछ काम रहता है।
उसे आपने मेरी चुप्पी समझी।
आपने यह भी लिख दिया कि मैं अन्य लोगों से आपकी टिप्पणियों के खिलाफ लिखवा रहा हूं।
यही तो आपकी सोच है।
जो लोग लिख रहे हैं,उनमें से शायद ही किन्हीं से मेरा व्यक्तिगत संपर्क है।
वैसे आपकी सोच को देखते हुए लगता है कि किसी तरह की बहस की कोई सार्थकता नहीं है।
आप अपनी दुनिया में खुश रहिए।
मैं कोई सर्टिफिकेट नहीं दूंगा जैसा आपने मेरा गार्जियन
यानी ‘कुलपति’ बन कर मुझे दिया है।
संतुलित सोच वाले मेरे कई मुस्लिम मित्र-परिचित हैं जो कई बार मुझसे सहमत होते हैं।
मेरी सोच के कुछ नमूने यहां पेश हंै।
मैं वरूण गांधी के हाथ काटने वाले बयान को उतना ही बुरा मानता हूं जितना इमरान मसूद के मोदी को बोटी -बोटी काट देने वाले बयान को।
मैं 15 मिनट पुलिस हटा लेने वाले अकबरूद्दीन के बयान का उतना ही विरोधी हूं जितना अनुराग ठाकुर के गोली मारने वाले बयान का।
मैं 2002 में गोधरा रेलवे स्टेशन पर 59 कारसेवकों को जला कर मार देने के उतना ही खिलाफ हूं जितना बाद के दंगों के।
मैं इस देश को वास्तविक सेक्युलर देश के रूप में विकसित होते देखना चाहता हूं जहां न तो बहुसंख्यकों का किसी अन्य पर कोई ‘वर्चस्व’ रहे और न ही कोई अन्य इस देश में खलीफा राज कायम करने की कोशिश करे।
मैं गोड्से के उतना ही खिलाफ हूं जितना जिन्ना के जिसने डायरेक्ट एक्शन करके लाखों लोगों को मरवा देने का।
आदि आदि...........।
इसके बाद जो मुझे जैसा सर्टिफिकेट देना चाहते हैं ,दे सकते हैं।
पर उस सर्टिफिकेट के लिए मैं लालू प्रसाद नहीं बन सकता जिन्होंने फर्जी जांच बैठाकर यह रपट दिलवा दी कि गोधरा में रेलवे कम्पार्टमेंट में कार सेवकों ने खुद ही आग लगा ली थी।
मैं यह भी नहीं मानता कि गुजरात के दंगे जैसा भीषण दंगा उससे पहले इस देश में कभी नहीं हुआ और मोदी जैसा राक्षस और कोई नहीं।
गुजरात दंगे में क्या खास हुआ जो किसी अन्य दंगे में नहीं हुआ था ?
गुजरात के अलावा किस दंगे में 200 पुलिसकर्मियों ने दंगाइयों से निर्दोष लोगों को बचाने के लिए
अपनी जान दे दी थी ?
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.....सुरेंद्र किशोर--29 जनवरी 2020
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