जीवन का 75 वां साल ःः देखे -किए को
समेटने का अब समय
.......................................................
--सुरेंद्र किशोर--
कुलदीप नैयर की पुस्तक का नाम है--
‘‘एक जिन्दगी काफी नहीं।’’
उसी तर्ज पर के.नटवर सिंह ने अपनी किताब का नाम रखा-
‘‘एक ही जिन्दगी काफी नहीं।’’
पर वी.पी.सिंह पर लिखी पुस्तक का नाम है-
‘‘मंजिल से ज्यादा सफर।’’
आज जब मैंने अपने जीवन के 75 साल पूरे कर लिए तो पीछे मुड़कर देखना है कि इस बीच क्या किया ?
कितना किया ?
क्या नहीं किया ?
क्या खोया, क्या पाया ?
एक दर्शक और लघु पात्र के रूप में देखे गए नजारे और भोगे हुए यथार्थ को समेटने का अब समय आ गया है।
अनुभव कई क्षेत्रों का रहा है-
अध्यात्म, छात्र राजनीति,
समाजवादी राजनीति,
जेल जीवन,
अभियानी पत्रकारिता,
फरारी जीवन,
पेशेवर पत्रकारिता।
छोटे -बड़े नेताओं के कई -कई रूपों
के करीब से दर्शन !
राजनीतिक कार्यकत्र्ताओं की दशा-दुर्दशा।
सार्वजनिक जीवन के बदलते चाल,चरित्र और चिंतन !
ढहती मूत्र्तियां और तिरोहित होते मूल्य !
फिर भी जहां -तहां बची-खुची टिमटिमाती उम्मीद
की कुछ किरणें !!
गांधी युग के आदर्शवादी नेताओं से लेकर आधुनिक युग के अपराधी व व्यवसायी नेताओं से तक से पाला।
अब पलट कर
देखने और उन्हें समेटने का समय।
संकल्प तो है,पर देखना है कितना कुछ कर पाऊंगा !
वैसे भी 75 साल के बाद व्यक्ति स्वास्थ्य के डेंजर जोन में
प्रवेश कर जाता है।
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सुरेंद्र किशोर-30 जनवरी 2020
समेटने का अब समय
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--सुरेंद्र किशोर--
कुलदीप नैयर की पुस्तक का नाम है--
‘‘एक जिन्दगी काफी नहीं।’’
उसी तर्ज पर के.नटवर सिंह ने अपनी किताब का नाम रखा-
‘‘एक ही जिन्दगी काफी नहीं।’’
पर वी.पी.सिंह पर लिखी पुस्तक का नाम है-
‘‘मंजिल से ज्यादा सफर।’’
आज जब मैंने अपने जीवन के 75 साल पूरे कर लिए तो पीछे मुड़कर देखना है कि इस बीच क्या किया ?
कितना किया ?
क्या नहीं किया ?
क्या खोया, क्या पाया ?
एक दर्शक और लघु पात्र के रूप में देखे गए नजारे और भोगे हुए यथार्थ को समेटने का अब समय आ गया है।
अनुभव कई क्षेत्रों का रहा है-
अध्यात्म, छात्र राजनीति,
समाजवादी राजनीति,
जेल जीवन,
अभियानी पत्रकारिता,
फरारी जीवन,
पेशेवर पत्रकारिता।
छोटे -बड़े नेताओं के कई -कई रूपों
के करीब से दर्शन !
राजनीतिक कार्यकत्र्ताओं की दशा-दुर्दशा।
सार्वजनिक जीवन के बदलते चाल,चरित्र और चिंतन !
ढहती मूत्र्तियां और तिरोहित होते मूल्य !
फिर भी जहां -तहां बची-खुची टिमटिमाती उम्मीद
की कुछ किरणें !!
गांधी युग के आदर्शवादी नेताओं से लेकर आधुनिक युग के अपराधी व व्यवसायी नेताओं से तक से पाला।
अब पलट कर
देखने और उन्हें समेटने का समय।
संकल्प तो है,पर देखना है कितना कुछ कर पाऊंगा !
वैसे भी 75 साल के बाद व्यक्ति स्वास्थ्य के डेंजर जोन में
प्रवेश कर जाता है।
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सुरेंद्र किशोर-30 जनवरी 2020
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