संविधान निर्माताओं की इच्छा के
खिलाफ मनमाना वितरण के लिए
ही 1954 में शुरू हुए थे पद्म सम्मान
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--सुरेंद्र किशोर--
पाकिस्तानी मूल के गायक अदनान सामी को पद्म सम्मान दिए जाने पर कांग्रेस प्रवक्ता जयवीर शेरगिल .ने
आरोप लगाया है कि मोदी सरकार की चाटुकारिता करने के लिए यह सम्मान उन्हें मिला है।
याद रहे कि सामी 2016 से भारतीय नागरिक हैं।
युवा जयवीर से एक सवाल है।
संविधान सभा ने ऐसे सम्मानों-पुरस्कारों के खिलाफ अपनी स्पष्ट राय जाहिर की थी।
इसके बावजूद पचास के दशक में पद्म पुरस्कार क्यों शुरू कर दिया गया ?
राजीव गांधी के अनुसार सन 1985 तक देश में भ्रष्टाचार की स्थिति ऐसी हो चुकी थी कि 100 सरकारी पैसों में से 85 पैसे बिचैलिये लूट लेते थे।
इसके बावजूद 1946 और 1985 के बीच के प्रधान मंत्रियों को ‘भारत रत्न’ क्यों दिया गया ?
कोई किसान यदि अपनी सौ एकड़ पुश्तैनी जमीन में से 85 एकड़ बेच कर पैसे लुटा दे तो उसका वंशज उस किसान का अपने घर की दीवाल पर फोटो तक नहीं लगाएगा।
पर इस देश में तो ऐसा भी हुआ कि कंेद्रीय मंत्रिमंडलों ने अपने ही प्रधान मंत्रियों को बारी -बारी से ‘भारत रत्न’ दे दिया।
संविधान सभा में ऐसे पुरस्कारों को शुरु करने का विरोध करने वालों में हृदयनाथ कुंजरू प्रमुख थे।
तब यह कहा गया कि पुरस्कारों द्वारा समाज को छोटे-बड़े में बांटने की प्रक्रिया शुरु होगी।
बाद में इन पुरस्कारों का राजनीतिकरण होगा।
इसीलिए संविधान सभा ने ऐसे पुरस्कार शुरु करने से साफ मना कर दिया था।
पर 1954 मेंे ‘भारत रत्न’ की शुरुआत हुई।
जो सम्मान तमिलनाडु के मुख्य मंत्री रहे एम. जी. रामचंद्रन को पहले मिल जाए और सरदार पटेल को बाद में मिले तो उसमें राजनीति नहीं तो और क्या है ?
भारत रत्न डा.जाकिर हुसेन को पहले मिला और डा.आम्बेडकर को बाद में।
पुरस्कार अरुणा आसफ अली को तो मिल जाए,पर भगत सिंह और डा.राम मनोहर लोहिया आदि को न मिले तो उसमें राजनीति नहीं है तो क्या है ?
इन्हीं कारणों से 1977 की मोरारजी सरकार ने इसे बंद कर दिया था।
पर 1980 में सत्ता में आने के बाद इंदिरा गांधी ने फिर शुरू कर दिया।
2008 में अपने काॅलम में सरदार खुशवंत सिंह ने लिखा कि ‘‘पद्म पुरस्कार के लिए नामों के चयन में किस बात पर ध्यान दिया जाता है,यह आज तक मेरी समझ में नहीं आया।’’
किंतु मेरी समझ में तभी आ गया था जब कुछ दशक पहले मुझे यह पता चला कि एक ‘सज्जन’ ने अपने पद्मश्री सम्मान को 16 लाख रुपए खर्च करके उसी साल पद्भूषण में बदलवा लिया था।
याद रहे कि पद्म पुरस्कारों के संबंध में सरकारी आदेश यह है कि
‘‘ये सम्मान उपाधि नहीं है,इसलिए इनका उपयोग अपने नाम से पूर्व या बाद में नहीं किया जा सकता।’’
कई साल पहले दुरुपयोग करने के कारण दक्षिण भारत के दो फिल्मी हस्तियों के पद्म सम्मान वापस ले लिए गए थे।
पर उत्तर भारत खास कर हिन्दी राज्यों में ऐसे सम्मान प्राप्त लोग न सिर्फ अपने लेटर हेड में बल्कि घर के दरवाजे पर लगे नेमप्लेट में भी पद्मश्री आदि लिखवा लेते हैं।
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28 जनवरी , 2020
खिलाफ मनमाना वितरण के लिए
ही 1954 में शुरू हुए थे पद्म सम्मान
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--सुरेंद्र किशोर--
पाकिस्तानी मूल के गायक अदनान सामी को पद्म सम्मान दिए जाने पर कांग्रेस प्रवक्ता जयवीर शेरगिल .ने
आरोप लगाया है कि मोदी सरकार की चाटुकारिता करने के लिए यह सम्मान उन्हें मिला है।
याद रहे कि सामी 2016 से भारतीय नागरिक हैं।
युवा जयवीर से एक सवाल है।
संविधान सभा ने ऐसे सम्मानों-पुरस्कारों के खिलाफ अपनी स्पष्ट राय जाहिर की थी।
इसके बावजूद पचास के दशक में पद्म पुरस्कार क्यों शुरू कर दिया गया ?
राजीव गांधी के अनुसार सन 1985 तक देश में भ्रष्टाचार की स्थिति ऐसी हो चुकी थी कि 100 सरकारी पैसों में से 85 पैसे बिचैलिये लूट लेते थे।
इसके बावजूद 1946 और 1985 के बीच के प्रधान मंत्रियों को ‘भारत रत्न’ क्यों दिया गया ?
कोई किसान यदि अपनी सौ एकड़ पुश्तैनी जमीन में से 85 एकड़ बेच कर पैसे लुटा दे तो उसका वंशज उस किसान का अपने घर की दीवाल पर फोटो तक नहीं लगाएगा।
पर इस देश में तो ऐसा भी हुआ कि कंेद्रीय मंत्रिमंडलों ने अपने ही प्रधान मंत्रियों को बारी -बारी से ‘भारत रत्न’ दे दिया।
संविधान सभा में ऐसे पुरस्कारों को शुरु करने का विरोध करने वालों में हृदयनाथ कुंजरू प्रमुख थे।
तब यह कहा गया कि पुरस्कारों द्वारा समाज को छोटे-बड़े में बांटने की प्रक्रिया शुरु होगी।
बाद में इन पुरस्कारों का राजनीतिकरण होगा।
इसीलिए संविधान सभा ने ऐसे पुरस्कार शुरु करने से साफ मना कर दिया था।
पर 1954 मेंे ‘भारत रत्न’ की शुरुआत हुई।
जो सम्मान तमिलनाडु के मुख्य मंत्री रहे एम. जी. रामचंद्रन को पहले मिल जाए और सरदार पटेल को बाद में मिले तो उसमें राजनीति नहीं तो और क्या है ?
भारत रत्न डा.जाकिर हुसेन को पहले मिला और डा.आम्बेडकर को बाद में।
पुरस्कार अरुणा आसफ अली को तो मिल जाए,पर भगत सिंह और डा.राम मनोहर लोहिया आदि को न मिले तो उसमें राजनीति नहीं है तो क्या है ?
इन्हीं कारणों से 1977 की मोरारजी सरकार ने इसे बंद कर दिया था।
पर 1980 में सत्ता में आने के बाद इंदिरा गांधी ने फिर शुरू कर दिया।
2008 में अपने काॅलम में सरदार खुशवंत सिंह ने लिखा कि ‘‘पद्म पुरस्कार के लिए नामों के चयन में किस बात पर ध्यान दिया जाता है,यह आज तक मेरी समझ में नहीं आया।’’
किंतु मेरी समझ में तभी आ गया था जब कुछ दशक पहले मुझे यह पता चला कि एक ‘सज्जन’ ने अपने पद्मश्री सम्मान को 16 लाख रुपए खर्च करके उसी साल पद्भूषण में बदलवा लिया था।
याद रहे कि पद्म पुरस्कारों के संबंध में सरकारी आदेश यह है कि
‘‘ये सम्मान उपाधि नहीं है,इसलिए इनका उपयोग अपने नाम से पूर्व या बाद में नहीं किया जा सकता।’’
कई साल पहले दुरुपयोग करने के कारण दक्षिण भारत के दो फिल्मी हस्तियों के पद्म सम्मान वापस ले लिए गए थे।
पर उत्तर भारत खास कर हिन्दी राज्यों में ऐसे सम्मान प्राप्त लोग न सिर्फ अपने लेटर हेड में बल्कि घर के दरवाजे पर लगे नेमप्लेट में भी पद्मश्री आदि लिखवा लेते हैं।
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28 जनवरी , 2020
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