पक्ष और प्रतिपक्ष के बीच सार्थक
संवाद की आज कितनी गुंजाइश ?
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अच्छी मंशा वाले एक बुद्धिजीवी सह पूर्व अधिकारी ने इस बात पर चिंता जाहिर की है कि आज देश में सत्ता पक्ष और प्रतिपक्ष के बीच कोई सार्थक संवाद नहीं है।
उनकी चिंता की पृष्ठभूमि समझ में आ रही है।
पर, क्या आज की स्थिति में कोई सार्थक
संवाद संभव भी है ?
गैर राजग दलों के अनेक शीर्ष व मझोले नेताओं के खिलाफ विभिन्न अदालतों में भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के तहत मुकदमे चल रहे हैं।
कई बड़े नेता जेल आ -जा रहे हैं ।
या फिर जमानत पर हैं।
अपार संपत्ति जप्त हो रही है या फिर मामला उसके कगार पर है।
कुछ मामले 2014 से पहले के हैं तो कई बाद के।
कई नेताओं की कटु जुबान के पीछे का यह एक बड़ा कारण बताया जाता है।
इन दिनों कई नेताओं के ऐसे-ऐसे बोल निकलते हंै मानो यह राजनीतिक लड़ाई नहीं है, बल्कि निजी संपत्ति का झगड़ा हो।
इस पृष्ठभूमि में सवाल यह है कि क्या उन मुकदमों की वापसी या उनमें सरकार की ओर से ढिलाई के बिना दोनों पक्षों के बीच कोई सार्थक संवाद संभव भी है ?
दूसरी ओर अपवादों को छोड़कर क्या भ्रष्टाचार के मामलों की वापसी या ढिलाई के बाद राजग खासकर भाजपा की अपने मतदाताओं के बीच भी साख रह पाएगी ?
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सुरेंद्र किशोर
15 जनवरी 2020
संवाद की आज कितनी गुंजाइश ?
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अच्छी मंशा वाले एक बुद्धिजीवी सह पूर्व अधिकारी ने इस बात पर चिंता जाहिर की है कि आज देश में सत्ता पक्ष और प्रतिपक्ष के बीच कोई सार्थक संवाद नहीं है।
उनकी चिंता की पृष्ठभूमि समझ में आ रही है।
पर, क्या आज की स्थिति में कोई सार्थक
संवाद संभव भी है ?
गैर राजग दलों के अनेक शीर्ष व मझोले नेताओं के खिलाफ विभिन्न अदालतों में भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के तहत मुकदमे चल रहे हैं।
कई बड़े नेता जेल आ -जा रहे हैं ।
या फिर जमानत पर हैं।
अपार संपत्ति जप्त हो रही है या फिर मामला उसके कगार पर है।
कुछ मामले 2014 से पहले के हैं तो कई बाद के।
कई नेताओं की कटु जुबान के पीछे का यह एक बड़ा कारण बताया जाता है।
इन दिनों कई नेताओं के ऐसे-ऐसे बोल निकलते हंै मानो यह राजनीतिक लड़ाई नहीं है, बल्कि निजी संपत्ति का झगड़ा हो।
इस पृष्ठभूमि में सवाल यह है कि क्या उन मुकदमों की वापसी या उनमें सरकार की ओर से ढिलाई के बिना दोनों पक्षों के बीच कोई सार्थक संवाद संभव भी है ?
दूसरी ओर अपवादों को छोड़कर क्या भ्रष्टाचार के मामलों की वापसी या ढिलाई के बाद राजग खासकर भाजपा की अपने मतदाताओं के बीच भी साख रह पाएगी ?
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सुरेंद्र किशोर
15 जनवरी 2020
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