2020 के लिए संकल्प
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संकल्प है कि इस साल मैं अपनी प्रस्तावित किताबों पर काम करूंगा।
देखना है कि यह काम पूरा होता है या नहीं !
वैसे मेरी तरफ से कोई कमी नहीं रहेगी।
यह एक दीर्घ प्रतीक्षित योजना है।
मित्रों और प्रकाशकों की मांग भी रही है।
हिन्दुस्तान, पटना में मेरे संपादक रहे नवीन जोशी तो कहते -कहते थक गए कि ‘आप अपना संस्मरण लिखें।’
अब लगता है कि उतने अच्छे इंसान के आदेश का पालन करने की स्थिति मैं आ गया हूं।
पर, चूंकि मेरी क्षमता-योग्यता कम है, इसलिए मैं एक साथ एक ही काम कर सकता हूं।
इसीलिए सिर्फ अपने मूल काम यानी पत्रकारिता में ही लगा रहा।
अब पुस्तक लेखन को मुख्य काम बनाना चाहता हूंं।
कुछ किताबों का ‘कच्चा व अधूरा मसौदा’ तो पहले से तैयार हैं।
एक पुस्तक पर तो प्रभाष जोशी के कहने पर काम शुरू किया था,राजकमल के लिए।
उस पर तीन चैथाई काम हो चुका है।
इस बीच वे नहीं रहे।
कुछ अन्य पुस्तकों पर एकत्र सामग्री को फाइनल करने के लिए कुछ और श्रमसाध्य काम करने होंगे।
कई दशक पहले लखनऊ के जनसंत्ता संवाददाता हेमंत शर्मा मुझे दिल्ली में प्रभात प्रकाशन के मालिक श्यामसुंदर जी के यहां ले गए थे।
उन्होंने मुझे बिहार पर तुरंत एक किताब लिख देने के लिए कहा था।
उससे पहले बिहार पर उर्मिलेश की किताब चर्चित हो चुकी थी।
मैंने तो तब गोलमोल जवाब दे दिया,पर दरअसल उसके लिए मेरे पास समय ही नहीं था।
हां, श्याम सुंदर जी के यहां से यह छाप लेकर जरूर लौटा कि जो जितना बड़ा व्यक्ति होता है,वह उतना विनम्र भी होता है।
यानी विनम्र होने से व्यक्ति के बड़ा होने के चांस अधिक हैं।
अपवादों की बात और है।
यानी,
उतने बड़े प्रकाशक के समक्ष मैंने खुद को छोटा महसूस नहीं किया।
बल्कि उन्होंने महसूस होने ही नहीं दिया।
खैर, अब तो प्रभात प्रकाशन और भी बड़ा संस्थान हो चुका है।
फेसबुक पर मेरे इतना अधिक सक्रिय होने का मुख्य उद्देश्य यह रहा कि मैं यह देखूं कि मेरे लेखन में कितने लोगों की रूचि है।
मेरे पास जो तथ्य हैं,उनमें कितना दम है।
आपके विचार जो भी हों,लोगों-घटनाओं पर आपका आकलन जो भी हों, वे तो अलग -अलग होंगे ही,पर तथ्य सही होने चाहिए।
ठीक ही कहा गया है
--‘‘तथ्य पवित्र हैं और विचार आपके हंै।’’
यदि आपके पास तथ्य हैं तो पाठक आप पर भरोसा कर सकते हैंं।
इस देश के कुछ बड़े इतिहासकारों के साथ दिक्कत यह है कि वे अपनी सुविधानुसार तथ्यों के साथ भी खिलवाड़ करते रहे हैं।
हां, तो मैं इस फेसबुकी-परीक्षा में मैं लगभग पास हो गया।
हौसला बढ़ा है।
याद रहे कि मेरे फेसबुक मित्रों में कई अच्छे जानकार लोग शामिल हैं।
--सुरेंद्र किशोर--1-1-2020
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संकल्प है कि इस साल मैं अपनी प्रस्तावित किताबों पर काम करूंगा।
देखना है कि यह काम पूरा होता है या नहीं !
वैसे मेरी तरफ से कोई कमी नहीं रहेगी।
यह एक दीर्घ प्रतीक्षित योजना है।
मित्रों और प्रकाशकों की मांग भी रही है।
हिन्दुस्तान, पटना में मेरे संपादक रहे नवीन जोशी तो कहते -कहते थक गए कि ‘आप अपना संस्मरण लिखें।’
अब लगता है कि उतने अच्छे इंसान के आदेश का पालन करने की स्थिति मैं आ गया हूं।
पर, चूंकि मेरी क्षमता-योग्यता कम है, इसलिए मैं एक साथ एक ही काम कर सकता हूं।
इसीलिए सिर्फ अपने मूल काम यानी पत्रकारिता में ही लगा रहा।
अब पुस्तक लेखन को मुख्य काम बनाना चाहता हूंं।
कुछ किताबों का ‘कच्चा व अधूरा मसौदा’ तो पहले से तैयार हैं।
एक पुस्तक पर तो प्रभाष जोशी के कहने पर काम शुरू किया था,राजकमल के लिए।
उस पर तीन चैथाई काम हो चुका है।
इस बीच वे नहीं रहे।
कुछ अन्य पुस्तकों पर एकत्र सामग्री को फाइनल करने के लिए कुछ और श्रमसाध्य काम करने होंगे।
कई दशक पहले लखनऊ के जनसंत्ता संवाददाता हेमंत शर्मा मुझे दिल्ली में प्रभात प्रकाशन के मालिक श्यामसुंदर जी के यहां ले गए थे।
उन्होंने मुझे बिहार पर तुरंत एक किताब लिख देने के लिए कहा था।
उससे पहले बिहार पर उर्मिलेश की किताब चर्चित हो चुकी थी।
मैंने तो तब गोलमोल जवाब दे दिया,पर दरअसल उसके लिए मेरे पास समय ही नहीं था।
हां, श्याम सुंदर जी के यहां से यह छाप लेकर जरूर लौटा कि जो जितना बड़ा व्यक्ति होता है,वह उतना विनम्र भी होता है।
यानी विनम्र होने से व्यक्ति के बड़ा होने के चांस अधिक हैं।
अपवादों की बात और है।
यानी,
उतने बड़े प्रकाशक के समक्ष मैंने खुद को छोटा महसूस नहीं किया।
बल्कि उन्होंने महसूस होने ही नहीं दिया।
खैर, अब तो प्रभात प्रकाशन और भी बड़ा संस्थान हो चुका है।
फेसबुक पर मेरे इतना अधिक सक्रिय होने का मुख्य उद्देश्य यह रहा कि मैं यह देखूं कि मेरे लेखन में कितने लोगों की रूचि है।
मेरे पास जो तथ्य हैं,उनमें कितना दम है।
आपके विचार जो भी हों,लोगों-घटनाओं पर आपका आकलन जो भी हों, वे तो अलग -अलग होंगे ही,पर तथ्य सही होने चाहिए।
ठीक ही कहा गया है
--‘‘तथ्य पवित्र हैं और विचार आपके हंै।’’
यदि आपके पास तथ्य हैं तो पाठक आप पर भरोसा कर सकते हैंं।
इस देश के कुछ बड़े इतिहासकारों के साथ दिक्कत यह है कि वे अपनी सुविधानुसार तथ्यों के साथ भी खिलवाड़ करते रहे हैं।
हां, तो मैं इस फेसबुकी-परीक्षा में मैं लगभग पास हो गया।
हौसला बढ़ा है।
याद रहे कि मेरे फेसबुक मित्रों में कई अच्छे जानकार लोग शामिल हैं।
--सुरेंद्र किशोर--1-1-2020
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