इसलिए हो रहा सीएए-एनआरसी का विरोध !
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पाकिस्तान, बांग्ला देश और अफगानिस्तान आदि देशों में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर तो बन ही सकते हैंं।
बने भी हैं।
पर, भारत में इसे बनने नहीं दिया जा रहा है।
क्योंकि उन देशों में न तो पी.एफ.आई.जैसा संगठन सक्रिय है और न ही वहां हमारे देश जैसे वोटलोलुप नेतागण मौजूद हैं ।
वोटलोलुप नेताओं के लिए देश की एकता-अखंडता का कोई मतलब नहीं।
उन्हें सिर्फ वोट चाहिए।
सत्ता चाहिए।
सत्ता भी किसलिए चाहिए,यह सबको मालूम है।
प्रतिबंधित सिमी के लोगों ने 2006 में पी.एफ.आई.का गठन किया।
सिमी के नेताओं के बयान भारत के अखबारों में दर्ज हंै जिनमें उन्होंने डंके की चोट पर कह रखा है कि हम हथियारों के बल पर भारत में इस्लामिक शासन कायम करना चाहते हैं।
उन अखबारों की कतरनें मौजूद हैं।
याद रहे कि मौजूदा सी.ए.ए.-एन.आर.सी.विरोधी हिंसक आंदोलन की शुरूआत पी.एफ.आई.ने ही की है और करवाई है।
उन्हीं के लोग मुंह पर रूमाल बांध कर पुलिस पर रोड़े बरसा रहे थे । सार्वजनिक संपत्ति में आग लग रहे थे।
उनका संंबंध अंतरराष्ट्रीय है।
यदि आपका आंदोलन शांतिपूर्ण है और संविधान को बचाने के लिए है तो मुंह पर रूमाल क्यों ?
वैसे सीएए और एनआरसी से किसी असली भारतीय नागरिक की नागरिकता पर कोई खतरा नहीं चाहे वह नागरिक जिस किसी धर्म का हो।
जब खुद पर खतरा नहीं,फिर भी विरोध क्यों ?
वह भी हिंसक।
इससे भी साबित होता है कि विरोध का उद्देश्य कुछ और है।
कोई बड़ा उद्देश्य है जो जान से भी प्यारा है।
‘निजाम ए मुस्तफा’ के समर्थक यह जान गए हैं कि सी.ए.ए.-एन.-आर.सी.लागू हो जाने के बाद राजग को करीब सात करोड़ मतदाताओं की बढ़त मिल सकती है।
एक अनुमान के अनुसार 2 करोड़ शरणार्थी हैं तो पांच करोड़
बंगलादेशी मुस्लिम घुसपैठिए।
हालांकि इन आंकड़ों की पुष्टि होनी बाकी है।
वैसे मेरा मानना है कि मुसलमानों में ऐसे लोग भी हैं जो
निजाम ए मुस्तफा के झंझट में नहीं पड़ना चाहते,उसे असंभव मानते हैं और मिलजुलकर इस देश में शांतिपूर्वक रहना चाहते हैं।
पर दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि अतिवादी हिन्दुओं के खिलाफ जितने सेक्युलर हिन्दू समय -समय पर उठ खड़े होते हैं,उसी अनुपात में अतिवादी मुसलमानों के खिलाफ उनके बीच से विरोध नहीं हो पाता है।
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--सुरेंद्र किशोर--22 जनवरी 20
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पाकिस्तान, बांग्ला देश और अफगानिस्तान आदि देशों में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर तो बन ही सकते हैंं।
बने भी हैं।
पर, भारत में इसे बनने नहीं दिया जा रहा है।
क्योंकि उन देशों में न तो पी.एफ.आई.जैसा संगठन सक्रिय है और न ही वहां हमारे देश जैसे वोटलोलुप नेतागण मौजूद हैं ।
वोटलोलुप नेताओं के लिए देश की एकता-अखंडता का कोई मतलब नहीं।
उन्हें सिर्फ वोट चाहिए।
सत्ता चाहिए।
सत्ता भी किसलिए चाहिए,यह सबको मालूम है।
प्रतिबंधित सिमी के लोगों ने 2006 में पी.एफ.आई.का गठन किया।
सिमी के नेताओं के बयान भारत के अखबारों में दर्ज हंै जिनमें उन्होंने डंके की चोट पर कह रखा है कि हम हथियारों के बल पर भारत में इस्लामिक शासन कायम करना चाहते हैं।
उन अखबारों की कतरनें मौजूद हैं।
याद रहे कि मौजूदा सी.ए.ए.-एन.आर.सी.विरोधी हिंसक आंदोलन की शुरूआत पी.एफ.आई.ने ही की है और करवाई है।
उन्हीं के लोग मुंह पर रूमाल बांध कर पुलिस पर रोड़े बरसा रहे थे । सार्वजनिक संपत्ति में आग लग रहे थे।
उनका संंबंध अंतरराष्ट्रीय है।
यदि आपका आंदोलन शांतिपूर्ण है और संविधान को बचाने के लिए है तो मुंह पर रूमाल क्यों ?
वैसे सीएए और एनआरसी से किसी असली भारतीय नागरिक की नागरिकता पर कोई खतरा नहीं चाहे वह नागरिक जिस किसी धर्म का हो।
जब खुद पर खतरा नहीं,फिर भी विरोध क्यों ?
वह भी हिंसक।
इससे भी साबित होता है कि विरोध का उद्देश्य कुछ और है।
कोई बड़ा उद्देश्य है जो जान से भी प्यारा है।
‘निजाम ए मुस्तफा’ के समर्थक यह जान गए हैं कि सी.ए.ए.-एन.-आर.सी.लागू हो जाने के बाद राजग को करीब सात करोड़ मतदाताओं की बढ़त मिल सकती है।
एक अनुमान के अनुसार 2 करोड़ शरणार्थी हैं तो पांच करोड़
बंगलादेशी मुस्लिम घुसपैठिए।
हालांकि इन आंकड़ों की पुष्टि होनी बाकी है।
वैसे मेरा मानना है कि मुसलमानों में ऐसे लोग भी हैं जो
निजाम ए मुस्तफा के झंझट में नहीं पड़ना चाहते,उसे असंभव मानते हैं और मिलजुलकर इस देश में शांतिपूर्वक रहना चाहते हैं।
पर दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि अतिवादी हिन्दुओं के खिलाफ जितने सेक्युलर हिन्दू समय -समय पर उठ खड़े होते हैं,उसी अनुपात में अतिवादी मुसलमानों के खिलाफ उनके बीच से विरोध नहीं हो पाता है।
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--सुरेंद्र किशोर--22 जनवरी 20
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