शनिवार, 18 जनवरी 2020

ज्योति बसु की कहानी पढ़कर मुझे कर्पूरी ठाकुर की याद आई।
संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के एक कार्यकत्र्ता की हैसियत से
1972-73 में मैं कर्पूरी ठाकुंर का निजी सचिव था।
उन दिनों विधायक को वेतन के रूप में 300 रुपए मिलते थे।
दैनिक भत्ता 15 रुपए प्रतिदिन।
  पहले था कि जिस दिन कमेटी की बैठक होगी,उसी दिन का भत्ता मिलेगा।
बाद में हुआ कि सात दिनों के भीतर दो बैठकें होंगी तो पूरे सप्ताह का भत्ता मिलेगा।
बाद में वह बाधा भी दूर हो गई।
खैर,
 उतने पैसे में उन दिनों पटना में परिवार रखना ईमानदार विधायकों के लिए कठिन  था।
   कर्पूरी ठाकुर अक्सर अपने परिवार को कहा करते थे कि आप लोग जाकर गांव में रहिए।
  उसके विपरीत आज के विधायकों -मंत्रियों को मिल रही सुविधाएं देख लीजिए।
यदि भ्रष्टाचार कम करके सरकारी अस्पतालों मेंें गरीबों के इलाज व सरकारी स्कूलों में गरीब बच्चों की पढ़ाई की समुचित व्यवस्था हो गई होती तो आज के अधिकतर जन प्रतिनिधियों के शालीन जीवन स्तर आम लोगों को नहीं अखरते।
   लगे हाथ एक बात और बता दूं।
उन्हीं दिनों की बात है।
कर्पूरी जी को तुरंत समस्तीपुर जाना अत्यंत जरूरी था।
उनके पास कार नहीं थी।
टैक्सी भाड़े के लिए पैसे भी नहीं।
उन्होंने महामाया बाबू को फोन किया।
पूर्व मुख्य मंत्री खुद कर्पूरी जी को 400 रुपए पटेल पथ पहुंचा गए।
  वे भी क्या दिन थे !
देखते -देखते क्या से क्या हो गया !!!
--सुरेंद्र किशोर-18 जनवरी 2020

  

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