रविवार, 16 फ़रवरी 2020


जो पुलिस और थानों को ठीक कर दे वह जीत सकता है तीन चुनाव--सुरेंद्र किशोर
मुख्य मंत्री अरविंद केजरीवाल ने सरकारी अस्पतालों और विद्यालयों आदि को बेहतर बना कर दो चुनाव जीते लिए।
पर, इस देश की कोई राज्य सरकार यदि पुलिस थानों को बेहतर बना दे तो 
वह सिर्फ इसी ‘पुण्य’ के आधार पर लगातार
 तीन चुनाव जीत सकती है !
  याद रहे कि ‘आप’ ने दिल्ली का पहला विधान सभा चुनाव भ्रष्टाचार के विरोध में जारी अन्ना आंदोलन के कारण जीता था।
अपवादों को छोड़ कर देश भर के पुलिस थानों के बारे में यह आम धारणा है कि शरीफ लोगों को थानों में जाने से डर लगता है।
क्योंकि पुलिस जनता की दोस्त नहीं है जैसा यूरोप के देशों में है।मजबूरी में ही लोग वहां जाते हैं।
जबकि, वहां जनता से मिले टैक्स के पैसों से वेतन पाने वाले लोग ही वहां बैठते हैं।
दूसरी बात यह कि अपवादों को छोेड़कर पुलिस थानों में बिना पैसा कोई काम नहीं होता।
 वैसे मेरा मानना है कि इसके लिए सिर्फ थाना और थानेदार ही जिम्मेदार-कसूरवार  नहीं है।
  ऊपर से ही ऐसा कोई प्रयास नहीं है कि थानों को जनता का सेवक -रक्षक बनाया जाए।
  टाटा इंस्टिट्यट और सोशल साइंस,मुुम्बई के एक छात्र को अपने शैक्षणिक काम के सिलसिल में वहां के  एक थाने में लगातार एक माह तक जाना पड़ा था।
उसने मुझे बताया कि उस थाने में सरकार कार्बन -कागज जैसी बुनियादी सुविधाएं तक नहीं देती।
संभवतः फंड बीच में कहीं अटक जाते हैं जिसे बड़ी मछली गटक जाती है।थानों को कह दिया जाता है कि अपने प्रभाव का इस्तेमाल करो।
‘चंदा’ वसूल कर थाना चलाओ।
क्या यह सही है ?
इसकी निष्पक्ष जांच होनी  चाहिए। 
जब पेट्रोलिंग के लिए भी सरकार की ओर से पर्याप्त साधन थानों को नहीं मिलते तो चंदा किस विधि से जुटाया जाता होगा,उसकी कल्पना कर लीजिए।
  यह सब नाजायज तरीके से थानेदार जुटाता है।जब थाना चलाने के लिए जुटाएगा तो अपने लिए भी क्यों नहीं उसमें से बचाएगा ?यह सब कानून -व्यवस्था की कीमत पर ही तो संभव है।
ऐसा महाराष्ट्र,उत्तर प्रदेश,बिहार पश्चिम बंगाल हर जगह हो रहा है।
    इस तरह के अनेक उदाहरण है।थानों की कार्य शैली की जांच के लिए निष्पक्ष जांच हो,तो बहुत सारे खुलासे होंगे।
पुलिसकर्मियों की  शिकायतेंे  और उनके खिलाफ शिकायतों का समुचित उपचार हो।
  इस तरह थानों को जो राज्य सरकार सुधारेगी ,उस सरकार को चलाने वाले दल पर मतों की बरसात हो जाएगी।
 थाने और राजस्व अंचल कार्यालय सरकारोंं की आंख-कान-खिड़की   हैं।
जनता का उनसे सीधे पाला पड़ता है।कोई अच्छी सरकार यह नहीं चाहेगी कि उनकी सरकार की ये खिड़कियां जनता की ओर खुलं ही नहीं।
 --दिल्ली चुनाव के बाद 
बिहार को लेकर अटकलें--
दिल्ली के बाद अब बिहार विधान सभा चुनाव को लेकर अटकलों का बाजार गर्म है।
स्वाभाविक ही है।
पर अनुमान छह अंधों और हाथी की कहानी की तरह ही हैं।
बिहार में स्थिति स्पष्ट है।
मोटी -मोटी बातोें में सच्चाई छिपी  है।
राज्य में मुख्यतः तीन राजनीतिक शक्तियां हैं।राजद,जदयू और भाजपा।
इनमें से कोई दो एक साथ आ गए तो तीसरे के लिए सत्ता की गुंजाइश समाप्त हो जाती है।
अभी जद यू और भाजपा साथ -साथ है।इसके अलग होने की कोई संभावना नहीं दिखाई पड़ती।
अमित शाह भी कह चुके हैं कि बिहार में राजग नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ेगा।इसलिए नेतृत्व पर भी कोई विवाद नहीं होना है।
  हां,  खास -खास सीटों के बारे में सूचनाएं पाने के लिए लागबाग उत्सुक जरूर रहेंगे।
  याद रहे कि मौजूदा बिहार विधान सभा का कार्यकाल नवंबर, 2020 में पूरा हो रहा है। 
--राजद के कुछ सकारात्मक कदम--
अपने संगठन को लेकर राजद ने हाल में कुछ सकारात्मक कदम उठाए हैं।
दल का दावा है कि ‘‘हम ए. टू जेड’’हैं यानी  सबके लिए हैं।
याद रहे कि लालू प्रसाद पहले यह कहते नहीं थकते थे कि हमारा एम.वाई समीकरण है।
2015 के बिहार विधान सभा चुनाव में तो राजद सुप्रीमो ने यह भी कह दिया था कि यह लड़ाई अगड़ों और पिछड़ों के बीच है।
बीच में राजद ने संसद में पेश सामान्य वर्ग आरक्षण विधेयक का विरोध करके बड़ा राजनीतिक खतरा मोल ले लिया।
उसका नतीजा यह हुआ कि 2019 के लोक सभा चुनाव में राजद को एक भी सीट नहीं मिल सकी ।
  चलिए,
अच्छा हैं।
अपने अनुभवों से सीख कर राजद का एम.वाई. अब  ए.टू.जेड.तक पहुंच गया है।
पर राजनीतिक प्रेक्षकोें के अनुसार राजद को उसका इतिहास इतनी जल्दी पीछा छोड़ देगा,यह कहना कठिन है।
अभी उसे और लंबी यात्रा तय करनी होगी।
हां,पिछले महीनों राजद का एक और सकारात्मक पक्ष सामने आया।
प्रदर्शन के दौरान आम गरीबों  की संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले नेताओेें पर भी पार्टी ने कार्रवाई की।
      --और अंत में-
  पटना में लोगों को डुबोने वाले अफसरों के खिलाफ बिहार सरकार ने वैसी ही कार्रवाई की है जिसके वे काबिल  हैं।
उम्मीद है कि यह शुरुआती कार्रवाई अपनी तार्किक परिणति तक भी पहुंचेगी।
उधर मुजफ्फर पुर बालिका गृह उत्पीड़न कांड में अदालती सजा भी सबक सिखाने वाली है।
 इस देश और प्रदेश में इस तरह की सख्त कार्रवाइयांें के बिना  आम लोगों का सिस्टम पर से कैसे बढ़ेगा ?
--कानोंकान-प्रभात खबर-पटना-14 फरवरी 20 
  


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