रविवार, 23 फ़रवरी 2020

प्रो.जाबिर हुसेन रचित ‘‘जैसे रेत पर गिरती है ओस’’
मेरे सामने है।
 बिहार विधान परिषद के पूर्व सभापति प्रो. हुसेन राज्य सभा से रिटायर होने के बाद लगातार
लिख रहे हैं।
‘दोआबा’ के अंक भी लगातार आ रहे हैं।
मुझे नहीं मालूम कि उन्होंने सक्रिय राजनीति से अलग होकर 
खुद ही साहित्य रचना के अपने पुराने काम को तेज कर दिया है या कोई बात है !
उनसे मेरा भी संपर्क अत्यंत सीमित है।
  जो भी हो, राजनीति में सक्रिय व्यक्ति की क्षमता यदि किसी अन्य क्षेत्र में भी काम करने की होती है तो उसे राजनीति से अलग होना कम ही खटकता है।
  दरअसल खुद के दिमाग से सोचने -करने वालोें के लिए राजनीति में जगह सिकुड़ती जा रही है।
  दूसरे संदर्भ में एक सत्ताधारी नेता ने मुझसे कई साल पहले कहा था,
‘‘आप ही का अच्छा है।
आपको पढ़ने-लिखने आता था,
इसलिए सक्रिय राजनीति छोड़कर पत्रकारिता में चले गए।
मुझे तो यही सब झेलना है !’’
दरअसल मेरे सामने ही उनसे एक ऐसे करीबी मित्र ने एक ऐसे काम के लिए  पैरवी की थी जो काम वह नेता नहीं करना चाहते थे।
  नहीं करने पर उस मित्र की नाराजगी  झेलने की आश्ंाका से वह चिंतित थे। 
---सुरेंद्र किशोर -23 फरवरी 20 

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