सोमवार, 24 फ़रवरी 2020


लाॅर्ड मेकाले ने 2 फरवरी, 1835 को ब्रिटिश संसद में निम्नलिखित भाषण दिया था-- 
उस चर्चित भाषण की भारत में आए दिन चर्चा
होती रहती है।
वह भाषण यहां हिन्दी में प्रस्तुत है।
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   ‘‘मैंने भारत का चैतरफा दौरा किया और यह पाया कि 
न ही यहां एक भी भिखारी है, और न कोई चोर ही।
ऐसा समृद्ध है यह देश ।
इतने ऊंचे नैतिक मूल्यों पर चलने वाले सद्चरित्र लोग,मुझे नहीं लगता कि हम इसको कभी अपने अधीन कर पाएंगे।
जब तक कि हम इसके  मूल आधार को ही नष्ट कर न दें ,जो कि है इसकी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत।
  इसलिए मैं इसकी सनातन सांस्कृतिक शिक्षा व्यवस्था को बदलने की अनुशंसा करता हूं ।
क्योंकि अगर भारतीय यह समझेंगे कि जो भी कुछ विदेशी और अंग्रेजी है,वह अच्छा है और उनसे बेहतर है,तब वह अपने आत्म सम्मान और अपनी मूल संस्कृति को खो देंगे, 
 और तब वे वही बन जाएंगे जो हम उन्हें बनाना चाहते हैं,और तभी  होगा हमारा इस देश पर पूर्ण आधिपत्य।’’
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  बंबई प्रेसिडेंसी के शिक्षा विभाग की 1858 की  रपट के अनुसार,
 ‘‘शासन ने अंग्रेजी शिक्षा देने के लिए चार जातियों को चुनाव।
रपट के अनुसार उनमें से एक जाति अपने पूर्वजों की वीरगाथा में इतनी मगलन थी कि उसे अंग्रेजी  शिक्षा में कोई रुचि नहीं थी।’’
     ---आम्बेडकर संपूर्ण से।
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क्या एक बार फिर मेकाले-वाद की तरह का ही खतरा
भारत पर उपस्थित है ? !!
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प्रस्तुति--सुरेंद्र किशोर - 21 फरवरी 2020

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