निकलने लगीं हैं ढकी-छुपी बातें
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एक ताजा किताब से यह बात सामने आई कि जवाहर लाल नेहरू अपने प्रथम मंत्रिमंडल में सरदार पटेल को शामिल करने के पक्ष में ही नहीं थे।
इससे पहले भी बारी -बारी से कई ढकी-छुपी बातें सामने आती रही हैं।
रामचंद्र गुहा सहित अनेक लेखकों ने लिखा कि इंदिरा गांधी को राजनीति में आगे बढ़ाने में नेहरू का कोई हाथ नहीं था।
पर जब महावीर त्यागी-जवाहरलाल नेहरू पत्र -व्यवहार सामने आया तो सच्चाई का पता चल गया।
नेहरू ने 1 फरवरी, 1959 को त्यागी को लिखा था कि ‘‘इस वक्त उसका कांग्रेस अध्यक्ष बनना मुफीद भी हो सकता है।’’
मोतीलाल पेपर्स के अनुसार मोतीलाल नेहरू ने अपने बाद 1929 में जवाहरलाल नेहरू को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने के लिए गांधी को तीन चिट्ठियां लिखीं।
पहले दो चिट्ठियों पर गांधी राजी नहीं हुए थे।
तीसरी पर मान गए।
अब कांग्रेस की आज की दयनीय स्थिति पर नजर डालिए।
पचास-साठ के दशकों की कांग्रेस से उसकी तुलना कीजिए।
उसकी अवनति में वंशवाद का कितना योगदान है ?
किसी नेता के योग्य पुत्र को पद देना बुरा नहीं है।
पर किसी वंश में यह परंपरा ही डाल दी जाए कि योग्य हो या न हो, उसी वंश का व्यक्ति प्रधान बनेगा तो उसका खामियाजा भी भुगतना ही पड़ेगा।
स्थानीय कारणों से कांग्रेस भले कुछ राज्यों में चुनाव जीत जाए, पर राष्ट्रीय स्तर उसका कोई हस्तक्षेप बचा भी है ?
बातें छुपाने का एक प्रयास कुछ साल पहले भी हुआ था।
वामपंथी लेखक की एक किताब आई जिसमें लिखा गया कि इस देश की राजनीति में वंशवाद की परंपरा सिंधिया परिवार ने डाली।
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---सुरेंद्र किशोर--11 फरवरी 2020
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एक ताजा किताब से यह बात सामने आई कि जवाहर लाल नेहरू अपने प्रथम मंत्रिमंडल में सरदार पटेल को शामिल करने के पक्ष में ही नहीं थे।
इससे पहले भी बारी -बारी से कई ढकी-छुपी बातें सामने आती रही हैं।
रामचंद्र गुहा सहित अनेक लेखकों ने लिखा कि इंदिरा गांधी को राजनीति में आगे बढ़ाने में नेहरू का कोई हाथ नहीं था।
पर जब महावीर त्यागी-जवाहरलाल नेहरू पत्र -व्यवहार सामने आया तो सच्चाई का पता चल गया।
नेहरू ने 1 फरवरी, 1959 को त्यागी को लिखा था कि ‘‘इस वक्त उसका कांग्रेस अध्यक्ष बनना मुफीद भी हो सकता है।’’
मोतीलाल पेपर्स के अनुसार मोतीलाल नेहरू ने अपने बाद 1929 में जवाहरलाल नेहरू को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने के लिए गांधी को तीन चिट्ठियां लिखीं।
पहले दो चिट्ठियों पर गांधी राजी नहीं हुए थे।
तीसरी पर मान गए।
अब कांग्रेस की आज की दयनीय स्थिति पर नजर डालिए।
पचास-साठ के दशकों की कांग्रेस से उसकी तुलना कीजिए।
उसकी अवनति में वंशवाद का कितना योगदान है ?
किसी नेता के योग्य पुत्र को पद देना बुरा नहीं है।
पर किसी वंश में यह परंपरा ही डाल दी जाए कि योग्य हो या न हो, उसी वंश का व्यक्ति प्रधान बनेगा तो उसका खामियाजा भी भुगतना ही पड़ेगा।
स्थानीय कारणों से कांग्रेस भले कुछ राज्यों में चुनाव जीत जाए, पर राष्ट्रीय स्तर उसका कोई हस्तक्षेप बचा भी है ?
बातें छुपाने का एक प्रयास कुछ साल पहले भी हुआ था।
वामपंथी लेखक की एक किताब आई जिसमें लिखा गया कि इस देश की राजनीति में वंशवाद की परंपरा सिंधिया परिवार ने डाली।
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---सुरेंद्र किशोर--11 फरवरी 2020
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