शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2020

पाक से लौट कर सबक दे गए सज्जाद 
जहीर और जोगेंद्र नाथ मंडल !
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यदि  सीखना चाहते हों 
तो अब भी समय है !!
हालांकि अब समय काफी कम है।
 --सुरेंद्र किशोर--
जो कुछ बातें आजादी के बाद हमसे भरसक छिपाई गई हैं,उनमें जोगेंद्र नाथ मंडल और सज्जाद जहीर की कहानियां भी शामिल हैं।
दैनिक जागरण को धन्यवाद कि आज उसने नई पीढ़ी को अपने देश की भाषा में मंडल की कहानी लिख ही दी।
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  सज्जाद जहीर की संक्षिप्त  कहानी 
इसी के साथ मेरी ओर से पेश है 
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पाक के पहले कानून मंंत्री 
जिन्हें लौटना पड़ा था भारत
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भारत-पाकिस्तान  का विभाजन बीती बात हो चुकी है।
लेकिन तुलनात्मक रूप से देखें तो पाकिस्तान आज भारत से पीछे है।
यह कुंठा पाकिस्तानी राजनेताओं के बयानों और आतंकी कार्रवाइयों के जरिए समझ में  भी आती है।
  पाकिस्तान ने लोगों को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया और फिर उन्हें छोड़ दिया। 
चाहे फिर वो पाकिस्तान के पहले कानून मंत्री जोगेंद्र नाथ मंडल ही क्यों न हो।
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रपति के अभिभाषण पर जवाब देते हुए अपने संबोधन में जोगेंद्र नाथ मंडल का जिक्र किया।
जिज्ञासा जरूर पनपती है कि कैसे एक दलित शख्स पाकिस्तान कव पहला कानून मंत्री बना और फिर कैसे उन्हें वापस भारत लौटना पड़ा।
 शुरुआती जीवन
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जोगेंद्र नाथ मंडल का जन्म 29 जनवरी, 1904 को नामसुंद्रा दलित समाज में अविभाजित बंगाल में हुआ था।
शुरुआती जीवन में उन्हें छुआछूत का सामना करना पड़ा।
उनका राजनीतिक जीवन बंगाल में अनुसूचित जातियों के नेता के रूप में शुरू हुआ।
वे 1937 में बंगाल विधान सभा के लिए चुने गए।
बाद में मंत्री बने।
हालांकि कांग्रेस से मोहभंग होने के बाद वे मुस्लिम लीग से जुड़े।
  पाकिस्तान में योगदान
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जोगेंद्र नाथ मंडल उन प्रमुख व्यक्तियों में थे जिन पर मुहम्मद अली जिन्ना को काफी विश्वास था।
 वे उन प्रमुख व्यक्तियों में एक थे जिन्होंने पाकिस्तान को आधुनिक व विकसित करने का ख्वाब देखा था।
वे पाकिस्तान के पहले कानून अैर श्रम मंत्री रहेे।
 साथ ही वे राष्ट्रमंडल और कश्मीर मामलों के दूसरे मंत्री थे।
लीग के लिए उनका समर्थन इस विश्वास से उपजा था कि भारत में जवाहरलाल नेहरू या महात्मा गांधी की तुलना में जिन्ना के धर्म निरपेक्ष पाकिस्तान में दलित हित को बेहतर रूप में संरक्षित किया जाएगा।
 विभाजन के बाद वे 1947 में पाकिस्तान की संविधान सभा के सदस्य बने।
 ऐसे बिगड़ी बात
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मुस्लिम बहुल देश में मंडल को कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा।
खास तौर पर 1948 में जिन्ना की मौत के बाद।
मार्च 1949 में मंडल ने एक विावदास्पद प्रस्ताव का समर्थन किया।
जिसमें पाकिस्तान के लिए कई सिद्धांत थे।
जिनमें ब्रह्मांड पर अल्लाह की सम्प्रभुता,लोकतंत्र के सिद्धांत ,स्वतंत्रता सभी को इस्लाम के अनुसार देखा गया।
 छोड़ दिया पाकिस्तान
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पाकिस्तान बननने के बाद ही गैर मुस्लिमों के हालात लगातार बिगड़ने लगे।
मंडल ने इसके खिलाफ आवाज उठाई।
जवाब में उनकी देशभक्ति पर संदेह किया जाने लगा।
उन्होंने लियाकत अली मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया।
8 अक्तूबर 1950 को भारत लौट आए।
 इस्तीफे में लिखा यह
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मंडल ने अपने इस्तीफे में लिखा कि पाकिस्तान में दलितों के खिलाफ अत्याचार बढ़ गए हैं।
कोई सुनवाई नहीं है।
हत्या-अत्याचार आम है।
इसमें उन्होंने हिन्दुओं पर हुए अत्याचारों का जिक्र किया।
कहा कि बलपूर्वक इस्लाम में परिवत्र्तन किया जा रहा है।
5 अक्तूबर, 1968 को मंडल  का निधन हो गया।
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अब कम्युनिस्ट नेता
सज्जाद की कहानी
साम्यवाद का प्रचार करने के लिए 
पाक में जा बसे थे।
निराश होकर लौटने के लिए नेहरू की मदद लेनी पड़ी।
उससे पहले वे वहां के जेल में भी रहे।
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पाक से लौटना पड़ा था सज्जाद जहीर को
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सज्जाद जहीर उत्तर प्रदेश के एक अच्छे खानदान से आते थे।
उनके पिता न्यायाधीश थे।
फिर भी उन्होंने संघर्ष का जीवन अपनाया।
आजादी की लड़ाई में कूद पड़े।
कम्युनिस्ट बने।
प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना की।
भारत के बंटवारे के बाद सी.पी.आई.ने इस प्रमुख कम्युनिस्ट नेता सज्जाद जहीर को पाकिस्तान भेजा ताकि वहां बेहतर ढंग से पार्टी का काम हो सके।
  पर, वहां जाकर जहीर को निराशा हुई।
वहां उनके काम करने का कोई माहौल ही नहीं था।
उन्हें 1951 में पाक सरकार ने जेल में डाल दिया।
  किसी तरह छूटे और प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू की मदद से 1954 में भारत लौट आए।
 1973 में उनका निधन हो गया।
याद रहे कि फिल्म अभिनेता राज बब्बर की पहली शादी सज्जाद जहीर की  बेटी नादिरा से हुई। 
यानी नादिरा का जन्म एक ऐसे सेक्युलर व प्रगतिशील माहौल में हुआ था कि उन्हें राज बब्बर से शादी करने में कोई परेशानी नहीं हुई।
ऐसे सेक्युलर नेता की पाकिस्तान में भला क्या जरूरत !!
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