सोमवार, 3 फ़रवरी 2020

इस झूठ के बिना भी काम 
तो चल ही सकता है !
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   हमारे देश के अधिकतर नेता दो अवसरों पर खास कर सच नहीं बोलते।
एक प्रतिशत नेता ही सच बोलते हैं।
99 प्रतिशत नेता असत्य या फिर अर्ध सत्य बोलते हैं।
जाहिर है कि इससे नेताओं व राजनीति की साख खराब होती है।पर आज उसकी चिंता भला किसे है ?
एक अवसर होता है -बजट।
बजट पर प्रतिक्रियाओं को देख-पढ़ लीजिए ।
सत्ता पक्ष के लिए सब कुछ हरा ही हरा होता है।
तो ,प्रतिपक्ष के लिए कुछ भी सही नहीं होता ।
सच्चाई कहीं बीच में होती है।
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दूसरा अवसर--मतदान और मतदान की गणना के बीच का समय।
जो नेता मन ही मन अच्छी तरह जानता है कि वह या उसका दल  हार रहा  है,फिर भी वह कहता है कि हम ही जीत रहे हैं।इतना पर भी नहीं रुकता।
चार असभ्य बातें मीडिया और एक्जिट पोल सर्वेक्षण करने वालों के खिलाफ भी बोल जाता है।
एक बात मीडिया को लेकर भी
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पुराने दिनों के कुछ संपादक बताते थे कि ‘‘घाटे का बजट’’ कभी मत लिखो।
‘‘कमी का बजट’’ लिखो ।
 क्योंकि सरकार कोई व्यापारी तो है नहीं !!
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--सुरेंद्र किशोर 
2 फरवरी 2020    

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