रविवार, 16 फ़रवरी 2020


नार्को टेस्ट को लेकर ठोस कानून के बिना सजा का प्रतिशत बढ़ना मुश्किल-सुरेंद्र किशोर   
22 मई, 2010 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ‘‘आरोपी या फिर संबंधित व्यक्ति की सहमति से ही उसका नार्को एनालिसिस हो सकता है।
किसी की इच्छा के खिलाफ उसका ब्रेन मैपिंग नहीं हो सकता।
पाॅलीग्राफ टेस्ट के बारे में भी यही बात लागू होगी।’’
  इस जजमेंट से खास तरह की स्थिति पैदा हो गई है।
अभियोजन पक्ष के सामने कई बार बेबसी रहती है।
गवाह कम मिलने पर नार्को टेस्ट की रपट काम आ सकती है।
हाल में एक जघन्य अपराध के मामले में अदालत इस आधार पर जमानत दे दी कि एक ही गवाह ने इनके खिलाफ गवाही दी है।
पटना के चर्चित शिल्पी-गौतम हत्याकांड में आरोपी ने डी.एन.ए.जांच के लिए अपने खून का नमूना देने से मना कर दिया था।
इस पृष्ठभूमि में केंद्र सरकार को चाहिए कि वह इस आदेश को बदलने की सुप्रीम कोर्ट से पहले गुजारिश करे।
  यदि सुप्रीम कोर्ट अपना  निर्णय  बदलने को तैयार नहीं हो, तो इस संबंध में संसद कानून बनाए।
साथ ही, उसे नवीं अनुसूची में डाल दे।
  नवीं अनुसूची में डाल देने पर उस कानून को अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकेगी।
ऐसा कानून बने जिसके तहत जांच एजेंसी जरुरत समझने पर किसी आरोपी का नार्को आदि टेस्ट करवा सके।आरोपी की अनिच्छा बाधक न बने।
यह कानूनी- व्यवस्था भी हो कि उसे कोर्ट भी साक्ष्य के रूप में स्वीकारे।
 याद रहे कि ऐसी जांचों के अभाव में न जाने कितने खूंखार अपराधी और राष्ट्रद्रोही सजा से बच जा रहे  हैं।
याद रहे कि इन दिनों अपराधियों में राष्ट्रविरोधी तत्व भी अच्छी-खासी संख्या में हैं।
 जानकार लोग बताते हैं कि नार्को टेस्ट के अभाव में भी इस देश में सजा का प्रतिशत नहीं बढ़ रहा है।
  यह अच्छी बात है कि बिहार सरकार ने गवाहों की सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाने की घोषणा की है।किन्तु  वही काफी नहीं है।
जांच का तरीका भी बदला जाना चाहिए।
  क्योंकि अपराध के तरीके भी समय के साथ बदलते जा रहे हैं।
   --  सजा की दर चिंताजनक--
साठ के दशक में अपने देश में 65 प्रतिशत आरोपितों को अदालतों से सजा मिल जाया करती थी।
  पर सत्तर के दशक से राजनीति और प्रशासन में जो गिरावट शुरू हुई,उसका सीधा असर आपराधिक न्याय व्यवस्था पर पड़ा।
आज अपने देश में सौ में से 73 बलात्कारी अदालती सजा से साफ बचा लिए जाते हैं।
 सौ में से 64 हत्यारे सजा से बच जाते हैं।
बिहार में तो 98 प्रतिशत आरोपित हत्यारे सजा से बच जाते हैं।
आम अपराध में इस देश में सिर्फ 46 प्रतिशत आरोपितों को ही कोर्ट से सजा हो पाती है।
बिहार में आम अपराध के आरोपितों में से 90 प्रतिशत 
आरोपितों को कोई सजा नहीं होती।पश्चिम बंगाल में  ग्यारह प्रतिशत अपराधियों को ही सजा हो पाती है।
दूसरी ओर, जापान में सजा की दर 99 है तो अमेरिका में 93 है।
  बिहार के लिए यह अच्छी बात होगी  कि 
यहां गवाहों को सरकारी सुरक्षा देर -सवेर मिलने लगेगी।
पर साथ ही नार्को टेस्ट आदि के बारे में कानून बने तो सजा
की दर बढ़ेगी।
  --प्लास्टिक कूड़े से सड़क-निर्माण--
सन 2015 में केंद्र सरकार ने प्लास्टिक कूड़े को अन्य सामग्री में मिलाकर 
सड़क बनाने का निदेश सड़क निर्माताओं को दिया था।
उसका अच्छा असर हुआ है।
खबर है कि इस विधि से देश के 11 राज्यों की एक लाख किलोमीटर सड़कों का निर्माण हो रहा है।
यह पता नहीं है कि इनमें से कितनी सड़कें बन कर तैयार हो गर्इं और कितनी अब भी निर्माणाधीन है।
ताजा खबर यह है कि महाराष्ट्र के रायगढ में रिलायंस कंपनी ने 40 किलोमीटर सड़क प्लास्टिक कूड़े की मदद से बनवाई है।
  प्लास्टिक कूड़े से बनने वाली सड़क न सिर्फ टिकाऊ होती है,बल्कि उस पर खर्च भी अपेक्षाकृत कम आता है।
 उधर प्लास्टिक को नष्ट करने की समस्या भी कम होती है।
           --और अंत में--
कभी भाजपा के ‘‘थिंक टैंक’’ रहे के.एन.गोविंदाचार्य का 
मानना है कि भाजपा को झारखंड में उबारने के लिए 
पूर्व मुख्य मंत्री बाबूलाल मरांडी बेहतर विकल्प होंगे।
चलिए,अब भी गोविंद जी को भाजपा से हमदर्दी है।
ऐसा कम ही होता है।
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-- प्रभात खबर, पटना-31 जनवरी 20


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