विश्व कैंसर दिवस
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घिन न आए तो स्वमूत्र चिकित्सा
से पा सकते हैं कैंसर से मुक्ति
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...सुरेंद्र किशोर..
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यदि कैंसर लीवर में नहीं हो तो उसका इलाज संभव है।
बशत्र्ते आपको स्वमूत्र पान से घिन न आती हो।
कोई भी इलाज योग्य चिकित्सक के निदेशन में ही हो।
गुजरात और मुम्बई में वैसे चिकित्सक मिल सकते हैं।
गुगल शायद मदद करे।
कुछ महीने पहले एक मित्र का फोन आया।
कहा कि फलां नेता कैंसर से पीडि़त हैं।
उन्हें मूत्र चिकित्सक का पता बता दीजिए।
मैंने कहा कि मेरे पास किसी का पता नहीं है।
और,यदि रोग एडवांस स्टेज में होगा तो शायद लाभ नहीं होगा।
वही था।
हाल में नेता जी गुजर गए।
खैर, मैंने भी इस विषय पर अस्सी के दशक में मोराजी देसाई से पत्राचार किया था।
उन्होंने मूत्र चिकित्सा पर पुस्तक का नाम भी बताया था।
लेखक हैं श्री पन्नालाल झवेरी।
पोस्टकार्ड की स्कैन काॅपी यहां पेश है।
पोस्टकार्ड को पढ़ना मुश्किल है।
अन्य कई लोगों ने भी मुझे समय -समय अनुभव बताए।
जैन कालेज आरा, के राजनीति शास्त्र के अध्यक्ष डा.केशव प्रसाद सिंह को टाटा मेमोरियल अस्पताल ने लाइलाज घोषित कर दिया था।
बाद में उन्होंने मूत्र चिकित्सा अपनाया।
बाद में कई साल तक जीवित रहे।
खुद भी चिकित्सक बन गए थे।
मैं आरा में उनसे एक मरीज के साथ मिला था।
उसे भी लाभ हुआ था।
अस्सी के दशक में पटना के एक बड़े पत्रकार प्रोस्टेट कैंसर से जूझ रहे थे।
मुम्बई में इलाज करा रहे थे।
पर, निराश हो गए थे।
इस बीच उन्हें पटना के ही एक उतने ही बड़े पत्रकार ने सलाह दी,
‘ आप स्वमूत्र चिकित्सा अपनाइए।
ठीक हो जाइएगा।’
उन्होंने यह भी कहा था कि लीवर कैंसर को छोड़कर किसी भी अन्य अंग के कैंसर के लिए स्वमूत्र चिकित्सा रामवाण है।
सलाह देने वाले बुजुर्ग पत्रकार ने उन्हीं दिनों बिहार विधान सभा के प्रेस रूम में एक दिन मुझे बताया था कि
‘मेरी सलाह पर उन्होंने स्वमूत्र चिकित्सा को अपनाया और वे अब स्वस्थ हैं।’
याद रहे कि स्वमूत्र चिकित्सा के सबसे बड़े प्रशंसक व लाभुक मोरारजी देसाई थे।
वह खुद स्वमूत्र पान करते थे।
छिपाते भी नहीं थे।
उनकी लंबी उम्र का यही राज बताया गया था।
पर आम भारतीयों में इसके प्रति अभी आम स्वीकृति नहीं है। हालांकि जापान-ताइवान आदि देशों में बड़ी सख्या में लोगों ने इसे अपनाया है।रिसर्च हुए हैं।
यह बात खुद मोरारजी भाई ने एक अखबार को बताई थी।
पर कुछ लोग इसे अवैज्ञानिक चिकित्सा बताते हैं।
वैसे इस विषय पर उपलब्ध सबसे अच्छी किताब
‘वाटर आॅफ लाइफ’ है।उसके लेखक आर्मस्ट्रांग ने इस चिकित्सा विधि के पक्ष में अनेक तर्क दिए हैं।
उन्होंने बाइबिल को इस ज्ञान का स्त्रोत माना है।
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--सुरेंद्र किशोर--4 फरवरी 2020
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घिन न आए तो स्वमूत्र चिकित्सा
से पा सकते हैं कैंसर से मुक्ति
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...सुरेंद्र किशोर..
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यदि कैंसर लीवर में नहीं हो तो उसका इलाज संभव है।
बशत्र्ते आपको स्वमूत्र पान से घिन न आती हो।
कोई भी इलाज योग्य चिकित्सक के निदेशन में ही हो।
गुजरात और मुम्बई में वैसे चिकित्सक मिल सकते हैं।
गुगल शायद मदद करे।
कुछ महीने पहले एक मित्र का फोन आया।
कहा कि फलां नेता कैंसर से पीडि़त हैं।
उन्हें मूत्र चिकित्सक का पता बता दीजिए।
मैंने कहा कि मेरे पास किसी का पता नहीं है।
और,यदि रोग एडवांस स्टेज में होगा तो शायद लाभ नहीं होगा।
वही था।
हाल में नेता जी गुजर गए।
खैर, मैंने भी इस विषय पर अस्सी के दशक में मोराजी देसाई से पत्राचार किया था।
उन्होंने मूत्र चिकित्सा पर पुस्तक का नाम भी बताया था।
लेखक हैं श्री पन्नालाल झवेरी।
पोस्टकार्ड की स्कैन काॅपी यहां पेश है।
पोस्टकार्ड को पढ़ना मुश्किल है।
अन्य कई लोगों ने भी मुझे समय -समय अनुभव बताए।
जैन कालेज आरा, के राजनीति शास्त्र के अध्यक्ष डा.केशव प्रसाद सिंह को टाटा मेमोरियल अस्पताल ने लाइलाज घोषित कर दिया था।
बाद में उन्होंने मूत्र चिकित्सा अपनाया।
बाद में कई साल तक जीवित रहे।
खुद भी चिकित्सक बन गए थे।
मैं आरा में उनसे एक मरीज के साथ मिला था।
उसे भी लाभ हुआ था।
अस्सी के दशक में पटना के एक बड़े पत्रकार प्रोस्टेट कैंसर से जूझ रहे थे।
मुम्बई में इलाज करा रहे थे।
पर, निराश हो गए थे।
इस बीच उन्हें पटना के ही एक उतने ही बड़े पत्रकार ने सलाह दी,
‘ आप स्वमूत्र चिकित्सा अपनाइए।
ठीक हो जाइएगा।’
उन्होंने यह भी कहा था कि लीवर कैंसर को छोड़कर किसी भी अन्य अंग के कैंसर के लिए स्वमूत्र चिकित्सा रामवाण है।
सलाह देने वाले बुजुर्ग पत्रकार ने उन्हीं दिनों बिहार विधान सभा के प्रेस रूम में एक दिन मुझे बताया था कि
‘मेरी सलाह पर उन्होंने स्वमूत्र चिकित्सा को अपनाया और वे अब स्वस्थ हैं।’
याद रहे कि स्वमूत्र चिकित्सा के सबसे बड़े प्रशंसक व लाभुक मोरारजी देसाई थे।
वह खुद स्वमूत्र पान करते थे।
छिपाते भी नहीं थे।
उनकी लंबी उम्र का यही राज बताया गया था।
पर आम भारतीयों में इसके प्रति अभी आम स्वीकृति नहीं है। हालांकि जापान-ताइवान आदि देशों में बड़ी सख्या में लोगों ने इसे अपनाया है।रिसर्च हुए हैं।
यह बात खुद मोरारजी भाई ने एक अखबार को बताई थी।
पर कुछ लोग इसे अवैज्ञानिक चिकित्सा बताते हैं।
वैसे इस विषय पर उपलब्ध सबसे अच्छी किताब
‘वाटर आॅफ लाइफ’ है।उसके लेखक आर्मस्ट्रांग ने इस चिकित्सा विधि के पक्ष में अनेक तर्क दिए हैं।
उन्होंने बाइबिल को इस ज्ञान का स्त्रोत माना है।
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--सुरेंद्र किशोर--4 फरवरी 2020
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