सोमवार, 3 फ़रवरी 2020

   साठोत्तरी राजनीति पर मुझसे बेहतर संस्मरण
   शिवानंद तिवारी ही लिख सकते हैं।
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      -- सुरेंद्र किशोर--
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 बिहार की साठोत्तरी राजनीति पर मुझसे बेहतर संस्मरण एक ही व्यक्ति लिख सकते हैं।
उनका नाम है-शिवानंद तिवारी।
उन्होंने लिखने का वादा भी किया है।
पर शायद उनसे संभव नहीं हो पाएगा !
अब तो वे ‘‘शाहीन बाग’’ में लग गए।
वह कहते हैं कि यह लंबा चलेगा।
वैसी लड़ाई में शिवानंद भाई का मन भी अधिक लगता है।
इसलिए लगता है कि मेरे लिए मैदान साफ है।
फिर भी यदि शिवानंद जी लिखें तो उनकी किताब में मेरी अपेक्षा अधिक जानकारियां होंगी।
उनमें मुझसे अधिक हिम्मत भी है।
  मैंने संस्मरणों वाली अपनी प्रस्तावित किताब की तैयारी में संदर्भ सामग्री पलटने का काम शुरू भी कर दिया है।
मेरे पास 50-55 साल से जतन से तिनका- तिनका एकत्र किया हुआ राॅ मेटेरियल्स का पहाड़  है।
मैं ऐसी एक पंक्ति भी नहीं लिखना चाहता जिसका मेरे पास सबूत या संदर्भ न हो।
   देखने के सिलसिले में कल मुझे एक खास बात से संबंधित सामग्री मिली।
वह बात है-लालू प्रसाद ने किस तरह मेरी जान बचाई।
और, मैंने एक अन्य अवसर पर किस तरह लालू प्रसाद की जान बचाई।
हम दोनों पर गंभीर खतरा था।
  होगी न पठनीय मेरी संस्मरणात्मक किताब ! ?
लालू प्रसाद और मैं दो धु्रव हैं।
हममें लव और हेट का संबंध है।
 पर कुछ  बातें समाज की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण भी हैं।
मेरा मानना है कि मंडल आरक्षण के पक्ष में मजबूती से खड़ा होकर लालू प्रसाद ने युगांतरकारी काम किया।
समाज को बदल दिया।यह काम सिर्फ वही कर सकते थे।
कर्पूरी ठाकुर जी नरम पड़ गए थे।
बाकी तो जो -जो काम लालू ने किए,उसका फल तो 
वे भोग ही रहे हैं।
उसके लिए वे खुद जिम्मेदार हैं।
समाजवादी मित्र की हैसियत से मैंने तो लिख- लिख कर उन्हें तब चेताया था।वह मुझसे उम्र में भी छोटे हैं।
  पहले मेरे बारे में उनकी राय बहुत खराब थी।
उनकी नजर में मंै एक ‘‘राजपूत पत्रकार’’ के अलावा कुछ नहीं था।
उन्होंने मुुझे अखबार से निकलवाने व बदली करवाने की बड़ी कोशिश की।
पर हाल में एक अत्यंत विश्वसनीय व्यक्ति ने रांची से लौटकर  मुझे बताया कि वे अब मेरे बहुत बड़े प्रशंसक हो गए हैं।
  यह भी बता दूं कि 1969 में समाजवादी युवजन सभा की बिहार शाखा के निर्वाचित --मनोनीत नहीं--तीन संयुक्त सचिवों में मैं और लालू प्रसाद थे।
शिवानंद तिवारी सचिव चुने गए थे।
वे हमारे नेता थे।
वैसे इन सब बातों का कोई खास मतलब नहीं है।
मतलब यह है कि सार्वजनिक जीवन में समाज के लिए किसने कितना किया,नहीं किया,यह सब अगली पीढि़यों को भी जानना चाहिए।
ताकि, अपने- अपने ढंग से लोग सबक ले सकें।
  इतिहास व संस्मरण लिखने में हमारे देश के लोग बड़े कंजूस होते हैं।
कई लोगों ने तो लिखा कम, छिपाया ही अधिक।
उसका खामियाजा आज भी देश भुगत रहा है।
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--सुरेंद्र किशोर --3 फरवरी ,2020

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