गुरुवार, 27 फ़रवरी 2020

  केजरीवाल जी, अतिवादियों की जगह आम
  मुसलमानों के हितों का ध्यान रखिए !
          सुरेंद्र किशोर 
जे.एन.यू.में 9 फरवरी, 2016 को अफजल गुरू की बरखी मनाई गई।
 वहां उस अवसर पर अफजल के प्रशंसकों ने जमकर राष्ट्र विरोधी नारे लगाए।
दिल्ली पुलिस ने उन नारेबाजों के खिलाफ अदालत में आरोप पत्र दाखिल किया।
आरोप देशद्रोह का है। 
किंतु केजरीवाल सरकार अभियोजन पक्ष को मुकदमा चलाने की अनुमति नहीं दे रही है।
मामला लटका हुआ है।
  अल्पसंख्यक मतदाताओं ने गत दिल्ली विधान सभा चुनाव में कांग्रेस को छोड़कर ‘आप’ को एकतरफा वोट दे दिया।
 फिर भी विधान सभा की सीटों की संख्या की दृष्टि से पहले से ‘आप’ की संख्या इस बार घटी और भाजपा की ंसंख्या बढ़ी।
  अल्पसंख्यकों के बीच के अतिवादियों के साथ हमदर्दी दिखाने का जल्दी ही एक और अवसर केजरीवाल सरकार को मिल गया।
मनीष सिसोदिया ने ‘शाहीन बाग’ का समर्थन कर दिया ।
नतीजतन वे विधान सभा चुनाव हारते -हारते बचे।
 अब ताजा दंगों को लेकर  ‘आप’ के जिन अल्संख्यक नेताओं के खिलाफ आरोप लग रहे हैं,उनको लेकर ‘आप’ के नेता मौन हैं।या बचाव की मुद्रा में हैं।उल्टे वे पुलिस पर आरोप लगा रहे हैं।
  केजरीवाल जी,
  हाल के वर्षों से  इस देश के कई प्रमुख राजनीतिक दल अल्पसंख्यकों के बीच के अतिवादियों का एकतरफा समर्थन करते रहे हैं।
सामान्य अल्पसंख्यकों के हितों की चिंता की होती तो उन दलों का नुकसान नहीं होता।
  इस रवैए से देश के कई तथाकथति सेक्युलर दल कमजोर होते जा रहेे हैं।उनकी कीमत पर भाजपा बढ़ गई।
 क्या  केजरीवाल की पार्टी भी उसी राह पर है ?
यह हकीकत है कि केजरीवाल सरकार जनहित में अच्छे -अच्छे काम करती जा रही है। 
 इसलिए उसके पास  पुण्य का खजाना बड़ा है।
पर,यदि केजरीवाल समूह इसी तरह अतिवादियों का समर्थन देता रहा तो ‘आप’
का राजनीतिक भविष्य भी अन्य दलों की तरह अनिश्चित हो सकता है।
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27 फरवरी 2020


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