देश,काल और पात्र के अनुसार जयप्रकाश नारायण ने
कई बार अपने ही पिछले विचारों और कार्यनीतियों में परिवत्र्तन किए थे ।
पर उस विचार परित्र्तन में कभी भी उनका निजी स्वार्थ नहीं था।
जीवन के प्रारंभिक काल में जेपी माक्र्सवादी थे।
बाद में महात्मा गांधी के साथ जुड़े।
महत्वपूर्ण साथियों से मिलकर कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी बनाई।
1942 में क्रांतिकारी आजाद दस्ता बनाया।
आजादी के बाद कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी को
कांग्रेस से अलग किया।
सोशलिस्ट पार्टी बनी।
1952 के चुनाव अभियान का नेतृत्व किया।
बाद में सर्वोदय -भूदान के काम किए।
देश की तब की विषम स्थिति देखकर उन्होंने 1974-77 में बिहार आंदोलन का नेतृत्व किया।
यानी देश,काल पात्र के अनुकूल जनहित में उन्होंने समय -समय तरह -तरह की भूमिकाएं निभाईं।
नेहरू के बुलावे के बावजूद वे कभी सत्ता में शामिल नहीं हुए।
मेरी समझ से ईमानदार लोगों को देश,काल पात्र यानी देशहित-जनहित की जरुरतों को देखते हुए अपनी भूमिका तय करनी चाहिए।
कोई जरुरी नहीं कि आप किसी दल से जुड़ें।
इस बात के आधार पर तय नहीं करनी चाहिए कि कुछ लोग मेरी भूमिका पर क्या सोचेंगे।
आज देश की स्थिति विषम है।
बल्कि देश चैराहे पर है।
देश तोड़क शक्तियां इस बात पर अमादा हंै कि ‘‘अब नहीं तो कभी नहीं।’’
जब वे लोग अपनी भूमिका तय करके मरने -मारने पर उतारू हैं तो फिर इस देश की एकता-अखंडता की रक्षा के लिए भी असली संविधानवादियों को भी खुल कर सामने आना ही चाहिए।क्योंकि आज की परिस्थिति की यही मांग है।
पहले की अपनी किसी ‘‘बंदरमूठ टाइप’’ विचारधारा के कारण आज यदि आपको
स्पष्ट लाइन लेने में दिक्कत हो रही है तो फिर तो आप मौजूदा इतिहास का हिस्सा बनने से वंचित रह जाएंगे।
अंत में, एक ही शत्र्त है कि आप की किसी पहल के पीछे कोई निजी हित नहीं हो।
---सुरेंद्र किशोर-
18 फरवरी 2020
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