विकास ‘‘आइडिया आॅफ इंडिया’’ के अनुसार
या ‘‘आइडिया आॅफ भारत’’ के अनुसार ???
--सुरेंद्र किशोर--
आजादी के तत्काल बाद ‘‘आइडिया आॅफ भारत’’ के अनुसार यदि देश को चलाया गया होता तो सरकारें उद्योगों की अपेक्षा कृषि पर अधिक ध्यान देती।
यानी , तांगे के आगे घोड़ा होता, न कि घोड़े के आगे
तांगा !!
पर, तब के हुक्मरानों को तो देश को ‘‘आइडिया आॅफ इंडिया’’ के अनुसार चलाना था।
चैधरी चरण सिंह का कहना था कि किसानों की आय बढ़ेगी तो ही छोटे -बड़े उद्योग बढ़ेंगे।
नहीं बढ़ेगी तो करखनिया माल के खरीदार कहां से आएंगे ?
अपवादों को छोड़कर निर्यात के लिए जरूरी गुणवत्ता की कमी रही है।
यदि सफेदपोशों के लिए नौकरियों का इंतजाम पहले कर देना हो तब कोई चरण सिंह जैसों की बातों पर ध्यान क्यों देगा ?
आजादी के बाद सत्ताधीशों की सोच बनी कि लोक उपक्रमों का ही जाल पहले बिछाना होगा !
यही हुआ भी।
नेहरू सरकार की नीति थी कि अपने देश के कारखानों के माल विदेश में बिकेंगे और उन पैसों से विदेश से अनाज खरीदकर भारतीयों को खिलाया जाएगा।
ंयह नीति विफल हो गई।
देश का समुचित विकास नहीं हो सका।
हर स्तर पर भ्रष्टाचार ने कोढ़ में खाज का काम किया।
देर से ही सही , अब खेती पर ध्यान दिया जा रहा है ।फिर भी उतना नहीं, जितना दिया जाना चाहिए।
सरकार के पास साधनों की कमी है।
देर -सवेर कृषि आधारित उद्योगों का जाल देश में बिछाना ही होगा।
गांव से मजबूती से जुड़े बिहार चैंबर आॅफ कामर्स के पूर्व महा सचिव पशुपतिनाथ पांडेय ने ठीक ही कहा है कि गांवों के विकास पर विशेष फोकस का दूरगामी सकारात्मक असर होगा।
--सुरेंद्र किशोर--3 फरवरी 2020
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