शुक्रवार, 5 जुलाई 2019

एंटोनी समिति की रपट में मौजूद है कांग्रेस के पुनरुद्धार का मंत्र


लोकतंत्र की मजबूती के लिए कांग्रेस यानी मुख्य प्रतिपक्ष का पुनरुद्धार जरूरी है। पर, उसके पुनरुद्धार के लिए यह आवश्यक है कि कांग्रेस अपनी चुनावी दुर्दशा का असली कारण समझे। उसे स्वीकार करे और तत्संबंधी सुधार का प्रयास भी करे।

नब्बे के दशक में समाजवादी नेता मधुलिमये ने भी कहा था कि देश को चलाने के लिए कांग्रेस में सुधार जरूरी है क्योंकि कांग्रेस ही देशव्यापी पार्टी है।

खैर, अभी तो देश को चलाने का भार जनता राजग व नरेंद्र मोदी को सौंप कर निश्चिंत हो गई है। पर एक जिम्मेवार प्रतिपक्ष की भूमिका निभाने के लिए भी जरूरी है कि कांग्रेस आत्मचिंतन करे। खुद को मजबूत बनाने का वह वास्तविक प्रयास करे।

सिर्फ इस बात की प्रतीक्षा न करे कि मोदी सरकार की छवि जब धूमिल होगी तो जनता खुद ही कांग्रेस को एक बार फिर सत्ता में पहुंचा देगी। ऐसे में कांग्रेस को धोखा हो सकता है। क्योंकि मोदी सरकार की कार्यशैली कुछ अलग ढंग की हैै। इसलिए कांग्रेस खुद भी कुछ उपाय करे।इसके लिए यह जरूरी है कि वह चेहरे के बदले आईना साफ करने में समय बर्बाद न करे। मर्ज सिर में है तो सिर के बदले पैर के इलाज में समय नष्ट न करे।

राहुल गांधी ने अपने इस्तीफे में जो बातें लिखी हैं, वे सब ‘राजनीतिक’ बातें ही हैं। राजनीतिक हलकों में यही माना जा रहा है। कांग्रेस की विफलता के असली कारण 2014 में ही ए.के. एंटोनी समिति ने बता दिए थे। एंटोनी की वह बात आज भी लागू है। उन कारणों का निदान जरूरी है।

2014 के लोकसभा चुनाव में भारी पराजय के बाद पूर्व रक्षामंत्री एंटोनी से कांग्रेस हाईकमान ने कहा था कि वह हार के कारणों का पता लगाएं। एंटोनी ने अपनी रपट में साफ -साफ कह दिया था कि 2014 के लोकसभा चुनाव में हमारी हार इसलिए हुई क्योंकि लोगों में यह धारणा बनी कि कांग्रेस धार्मिक अल्पसंख्यकों के पक्ष में पूर्वाग्रस्त है। इसलिए बहुमत मतदाताओं का झुकाव भाजपा की ओर हुआ।

एंटोनी के अनुसार भ्रष्टाचार, मुद्रास्फीति और दल में अनुशासनहीनता हार के अन्य कारण थे। पर 2014 के बाद कांग्रेस ने एंटोनी समिति की रपट पर कोई ध्यान ही नहीं दिया। बल्कि उसी गलत दिशा में कांग्रेस आगे बढ़ती चली गई। नतीजा सामने है।



राहुल गांधी को धन्यवाद !

इस देश में पदलोलुप नेताओं की अपार भीड़ है। वैसे में राहुल गांधी धन्यवाद के पात्र हैं। पद पर बने रहने के तमाम आग्रहों के बावजूद उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष जैसा महत्वपूर्ण पद अंततः छोड़ ही दिया। 


कैसे बंद हो गवाहों पर दबाव


आदतन अपराधी खास कर बड़े अपराधी यानी माफिया अक्सर अपने खिलाफ जारी मुकदमों के गवाहों को पटा लेते हैं। या, डरा- धमका कर गवाही बदलवा देते हैं। इस तरह वे सजा से बच जाते हैं। फिर वे अगले अपराध कार्य में लग जाते हैं। अपराध बढ़ने का यह एक बड़ा कारण है।

कई बार तो ऐसा होता है कि एक ही अपराधी अनेक मामलों में बारी -बारी से गवाहों को डरा-धमका कर सजा से बच जाते हैं।

गवाह के पलट जाने के कारण कोई आरोपित यदि लगातार दो से अधिक बार सजा से बच जाता है तो तीसरी बार उसके मामले में एक खास उपाय किया जाना चाहिए। उसके खिलाफ गवाह की गवाही पुलिस के साथ—साथ न्यायिक दंडाधिकारी के समक्ष दंड प्रक्रिया संहिता की धारा-164 के तहत भी दिलवा दी जानी चाहिए।

वैसी स्थिति में पलटी मारने पर गवाह पर मुकदमा भी हो सकता है। उससे गवाह डरेंगे। सामान्यतः अपनी गवाही नहीं बदलेंगे। यदि आरोपित कोई बड़ा अपराधी हो तो गवाह को सुरक्षा देने का पोख्ता प्रबंध भी शासन करे। सुप्रीम कोर्ट ऐसा आदेश कई बार दे चुका है। साथ ही ऐसे मामलों की सुनवाई जल्द से जल्द पूरी हो। ऐसे उपाय करने से अपराध घटेंगे।

भूली बिसरी याद


कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष दामोदरन संजीवैया ने इंदौर में 1963 में कहा था कि ‘वे कांग्रेसी जो 1947 में भिखारी थे, वे आज करोड़पति बन बैठे।’ गुस्से में बोलते हुए कांग्रेस अध्यक्ष ने यह भी कहा था कि ‘झोपडि़यों का स्थान शाही महलों ने और कैदखानों का स्थान कारखानों ने ले लिया है।’

इधर संजीवैया के बारे में पढ़ रहा था।यह जानकर आश्चर्य हुआ कि सिर्फ 51 साल की आयु में ही 1972 में उनका निधन हो गया था। पर उससे पहले वे अपनी प्रतिभा और नेकनीयती  के बल पर बड़े -बड़े पदों पर रहे।

पेशे से वकील संजीवैया अनुसूचित जाति से आते थे। वे 1950 में अस्थायी संसद के सदस्य बनाए गए। 1952 में मद्रास मंत्रिमंडल के सदस्य बने। वहां बाद के मंत्रिमंडलों में भी रहे। आंध्र के मुख्य मंत्री भी बने। दलित समुदाय से आने वाले किसी राज्य के वे पहले मुख्य मंत्री थे। 

संजीवैया कांग्रेस अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्रिमंडल के भी सदस्य रहे। कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में वे पार्टी में नई जान फूंकना चाहते थे,पर इस बीच उनका निधन हो गया। 

और अंत में



बिहार विधान मंडल के प्रतिपक्षी दलों के विधायकों ने विरोधस्वरूप आम और आम के पौधे लौटा दिए। राज्य सरकार उन्हें उपहारस्वरूप दे रही थी। आम लौटाकर तो अच्छा किया। पर आम के पौधे ले लिए होते तो यह माना जाता कि हमारे विधायकगण पर्यावरण संरक्षण की चिंता करते हैं। 

(5 जुलाई, 2019 के प्रभात खबर-बिहार -में प्रकाशित मेरे काॅलम कानोंकान में )

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