चेतन भगत ने लिखा है,
‘प्रिय कांग्रेस, आने वाले कुछ दिन आपके भविष्य के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं।
नई वास्तविकताओं को स्वीकार करते हुए
एक ऐसे नेता को चुनिए जो आपको भविष्य में सुधार के लिए सबसे बेहतर अवसर प्रदान कर सके।’
प्रिय चेतन,
अन्य कई बातों की आपकी समझ बेजोड़ है।
पर, पता नहीं आप मौजूदा कांग्रेस का डीएनए समझने में कैसे गलती कर बैठे !
क्या आप कभी किसी वैसे डूबते हुए व्यापारिक घराने को यह सलाह दे सकते हैं कि आप अपनी कंपनी का नेतृत्व परिवार के बाहर किसी अन्य के हाथों में सौप दें ताकि कंपनी का पुनरुद्धार हो सके ?
ऐसी सलाह आप देंगे भी तो वह नहीं मानेगा चाहे कंपनी डूब ही क्यों न जाए।
कौन अपनी संपत्ति दूसरे को यूं ही दे देता है ?
चेतन की कल्पना के अनुसार जो नेता कांग्रेस का सुधार कर देगा,वह खुद कांग्रेस का सुप्रीमो नहीं बन जाएगा ! ?
ऐसा मौका ‘प्रथम परिवार’ किसी अन्य को क्यों देगा ?
वह तो मोदी सरकार के अलोकप्रिय होने का इंतजार भर करेगा। भले उसके इंतजार के साल लंबे हो जाएं।
यानी, कांग्रेस नामक निजी पारिवारिक कंपनी का नेतृत्व वैसे व्यक्ति को सौंपने का सुझाव आप कैसे दे सकते हैं जो कांग्रेस को सुधार दे ?
प्रथम परिवार कांग्रेस की कमान यदि किसी बाहरी व्यक्ति को सौंपेगा भी तो वह व्यक्ति ‘एक और मन मोहन ंिसंह’ ही होगा।वह मोदी के अलोकप्रिय होने तक सीट गरम करता रहेगा।भले वह दिन आने से पहले ही कांगे्रस का इतिश्री हो जाए।हालांकि लोकंतत्र के लिए यह अच्छा नहीं होगा।
सरकारें तो बदलती ही रहनी चाहिए।
प्रथम परिवार को भी हार के कारणों का पता है।पर उसने सुधार की इच्छा,सामथ्र्य और शक्ति खो दी है।प्रथम परिवार का तो एजेंडा ही गैर राजनीतिक है।
2014 की लोस हार के बाद पूर्व रक्षा मंत्री ए.के.एंटोनी ने हार का कारण प्रथम परिवार को साफ- साफ बता दिया था।
एंटोनी ने अपनी रपट में साफ -साफ कह दिया था कि ‘2014 के लोक सभा चुनाव में हमारी हार इसलिए हुई क्योंकि लोगों में यह धारणा बनी कि कांग्रेस
धार्मिक अल्पसंख्यकों के पक्ष में पूर्वाग्रहग्रस्त है।
इसलिए बहुमत मतदाताओं का झुकाव भाजपा की ओर हुआ।
एंटोनी के अनुसार भ्रष्टाचार, मुद्रास्फीति और दल में अनुशासनहीनता हार के अन्य कारण थे।’
पर 2014 के बाद कांग्रेस ने एंटोनी समिति की रपट पर कोई ध्यान ही नहीं दिया।
बल्कि उसी गलत दिशा में कांग्रेस आगे बढ़ती चली गई।
उसकी ओर हाल में आनंद शर्मा ने इशारा किया है।
2019 की हार के कुछ कारण प्रमोद जोशी -राष्ट्रीय सहारा-
के अनुसार कांग्रेस दुलारा नेता आनंद शर्मा ने बता दिया है।
दरअसल प्रथम परिवार को छोड़कर बाकी नेता व कार्यकत्र्ता कंपनी के छोटे -बड़े अफसर या कर्मचारी मात्र हैं।वे जब तक पार्टी में हैं, तब तक वही बात बोलेंगे जो प्रथम परिवार चाहता है।
देश के लोकतंत्र का यह दुर्भाग्य है कि एक महत्वपूर्ण बड़ी पार्टी को, जिसमें संभावनाएं थीं,बिखर रही है। वंश तंत्र अन्य क्षेत्रीय दलों की तरह अंततः उसे बर्बाद ही कर रहा है।
अब कांग्रेस नेता आनंद शर्मा की ताजा उक्तियां पढि़ए--
‘पार्टी घोषणा पत्र में देशद्रोह के कानून को खत्म करने और आम्र्ड फोर्सेस स्पेशल पावर्स एक्ट में भारी बदलाव करने वाली बातों को शामिल करना गलती थी।कांग्रेस के घोषणा पत्र में यह भी कहा गया था कि कश्मीर में सेना कम करनी है।
आनंद शर्मा के अनुसार इन बातों का वोटरों पर विपरीत प्रभाव पड़ा।
आनंद जी,यह गलती नहीं, बल्कि वंश तंत्र पर आधारित अधिकतर राजनीतिक दलों की रणनीति का यह हिस्सा रहा है।
जातीय व सांप्रदायिक वोट बैंक बनाओ,कुछ दलों से चुनावी तालमेल करो। सत्ता पाओ और सत्ता भोगो।
इस बीच कुछ जनहितकारी काम हो जाए, तो हो जाए।
अपने वंश-परिवार और आधार वोट बैंक वाली जाति के लोगों को सबसे महत्वपूर्ण पदों पर बैठाओ।लाभ कमाओ और कमआओ।
सांप्रदायिक वोट बैंक की धार्मिक भावनाओं को सहलाओ और उनके धार्मिक एजेंडा को आगे बढ़ाने में मदद करो।
जहां ऐसी राजनीति चलेगी, वहां भाजपा सत्ता में नहीं आएगी तो कौन आएगा ! ?
‘प्रिय कांग्रेस, आने वाले कुछ दिन आपके भविष्य के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं।
नई वास्तविकताओं को स्वीकार करते हुए
एक ऐसे नेता को चुनिए जो आपको भविष्य में सुधार के लिए सबसे बेहतर अवसर प्रदान कर सके।’
प्रिय चेतन,
अन्य कई बातों की आपकी समझ बेजोड़ है।
पर, पता नहीं आप मौजूदा कांग्रेस का डीएनए समझने में कैसे गलती कर बैठे !
क्या आप कभी किसी वैसे डूबते हुए व्यापारिक घराने को यह सलाह दे सकते हैं कि आप अपनी कंपनी का नेतृत्व परिवार के बाहर किसी अन्य के हाथों में सौप दें ताकि कंपनी का पुनरुद्धार हो सके ?
ऐसी सलाह आप देंगे भी तो वह नहीं मानेगा चाहे कंपनी डूब ही क्यों न जाए।
कौन अपनी संपत्ति दूसरे को यूं ही दे देता है ?
चेतन की कल्पना के अनुसार जो नेता कांग्रेस का सुधार कर देगा,वह खुद कांग्रेस का सुप्रीमो नहीं बन जाएगा ! ?
ऐसा मौका ‘प्रथम परिवार’ किसी अन्य को क्यों देगा ?
वह तो मोदी सरकार के अलोकप्रिय होने का इंतजार भर करेगा। भले उसके इंतजार के साल लंबे हो जाएं।
यानी, कांग्रेस नामक निजी पारिवारिक कंपनी का नेतृत्व वैसे व्यक्ति को सौंपने का सुझाव आप कैसे दे सकते हैं जो कांग्रेस को सुधार दे ?
प्रथम परिवार कांग्रेस की कमान यदि किसी बाहरी व्यक्ति को सौंपेगा भी तो वह व्यक्ति ‘एक और मन मोहन ंिसंह’ ही होगा।वह मोदी के अलोकप्रिय होने तक सीट गरम करता रहेगा।भले वह दिन आने से पहले ही कांगे्रस का इतिश्री हो जाए।हालांकि लोकंतत्र के लिए यह अच्छा नहीं होगा।
सरकारें तो बदलती ही रहनी चाहिए।
प्रथम परिवार को भी हार के कारणों का पता है।पर उसने सुधार की इच्छा,सामथ्र्य और शक्ति खो दी है।प्रथम परिवार का तो एजेंडा ही गैर राजनीतिक है।
2014 की लोस हार के बाद पूर्व रक्षा मंत्री ए.के.एंटोनी ने हार का कारण प्रथम परिवार को साफ- साफ बता दिया था।
एंटोनी ने अपनी रपट में साफ -साफ कह दिया था कि ‘2014 के लोक सभा चुनाव में हमारी हार इसलिए हुई क्योंकि लोगों में यह धारणा बनी कि कांग्रेस
धार्मिक अल्पसंख्यकों के पक्ष में पूर्वाग्रहग्रस्त है।
इसलिए बहुमत मतदाताओं का झुकाव भाजपा की ओर हुआ।
एंटोनी के अनुसार भ्रष्टाचार, मुद्रास्फीति और दल में अनुशासनहीनता हार के अन्य कारण थे।’
पर 2014 के बाद कांग्रेस ने एंटोनी समिति की रपट पर कोई ध्यान ही नहीं दिया।
बल्कि उसी गलत दिशा में कांग्रेस आगे बढ़ती चली गई।
उसकी ओर हाल में आनंद शर्मा ने इशारा किया है।
2019 की हार के कुछ कारण प्रमोद जोशी -राष्ट्रीय सहारा-
के अनुसार कांग्रेस दुलारा नेता आनंद शर्मा ने बता दिया है।
दरअसल प्रथम परिवार को छोड़कर बाकी नेता व कार्यकत्र्ता कंपनी के छोटे -बड़े अफसर या कर्मचारी मात्र हैं।वे जब तक पार्टी में हैं, तब तक वही बात बोलेंगे जो प्रथम परिवार चाहता है।
देश के लोकतंत्र का यह दुर्भाग्य है कि एक महत्वपूर्ण बड़ी पार्टी को, जिसमें संभावनाएं थीं,बिखर रही है। वंश तंत्र अन्य क्षेत्रीय दलों की तरह अंततः उसे बर्बाद ही कर रहा है।
अब कांग्रेस नेता आनंद शर्मा की ताजा उक्तियां पढि़ए--
‘पार्टी घोषणा पत्र में देशद्रोह के कानून को खत्म करने और आम्र्ड फोर्सेस स्पेशल पावर्स एक्ट में भारी बदलाव करने वाली बातों को शामिल करना गलती थी।कांग्रेस के घोषणा पत्र में यह भी कहा गया था कि कश्मीर में सेना कम करनी है।
आनंद शर्मा के अनुसार इन बातों का वोटरों पर विपरीत प्रभाव पड़ा।
आनंद जी,यह गलती नहीं, बल्कि वंश तंत्र पर आधारित अधिकतर राजनीतिक दलों की रणनीति का यह हिस्सा रहा है।
जातीय व सांप्रदायिक वोट बैंक बनाओ,कुछ दलों से चुनावी तालमेल करो। सत्ता पाओ और सत्ता भोगो।
इस बीच कुछ जनहितकारी काम हो जाए, तो हो जाए।
अपने वंश-परिवार और आधार वोट बैंक वाली जाति के लोगों को सबसे महत्वपूर्ण पदों पर बैठाओ।लाभ कमाओ और कमआओ।
सांप्रदायिक वोट बैंक की धार्मिक भावनाओं को सहलाओ और उनके धार्मिक एजेंडा को आगे बढ़ाने में मदद करो।
जहां ऐसी राजनीति चलेगी, वहां भाजपा सत्ता में नहीं आएगी तो कौन आएगा ! ?
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