बुधवार, 17 जुलाई 2019

   चाहिए एक ‘सरदार’ का मजबूत डंडा
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कई लोग देश में तो जीवंत लोकतंत्र चाहते हैं।
चाहते हैं कि उन्हें कुछ भी बोलने व लिखने की आजादी मिले।
कई बार वे राष्ट्रद्रोह पर भी उतारू हो जाते हैं।
फिर भी वे चाहते हैं कि उन्हें उसकी कोई सजा न हो।
पर, वही लोग अपनी पार्टी के लिए एक दबंग ‘सरदार’ चाहते हैं।
ताकि,तानाशाह  ‘सरदार’ बलपूर्वक सब पर तानाशाही चलाता रहे ।
भेड़-बकरी की तरह सबको अपने डंडे से हांक कर एकजुट बनाए रखे।
 सबको अपने कदमों में झुकाएं रहे।
सरदार के खिलाफ कुछ भी बोलना ईश निंदा मानी जाए।
पर हां, अधिकतर मातहतों की कोशिश इस बात की भी रहती है कि ‘माल-असवाब’ का बंटवारा ठीक ढंग से होता रहे।
यदि उसमें कोई कमी आएगी तो वे हरी घास के लिए पुरानी पार्टी किसी भी क्षण छोड़ देंगे।
  अपवादों को छोड़ दें तो इस देश की राजनीति का आज यही आम चलन हो गया है।
  ऐसी राजनीति और चम्बल के गिरोहों के बीच कितना अंतर रह गया है ?
जुलाई 2019



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