सोमवार, 15 जुलाई 2019

प्रभाष जोशी के जन्म दिन के अवसर पर
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बहु आयामी व्यक्तित्व व प्रतिभा के संपादक प्रभाष जोशी
का अपने अधीनस्थ पत्रकारों के साथ भी स्नेहिल व्यवहार रहता था।
 उन अधीनस्थों में सौभाग्यवश मैं भी शामिल था।
इस बात का पता तो मुझे पहले से ही था।
पर, उसकी गहराई उनकी पत्नी ने उनके नहीं रहने बाद मेरी पत्नी को बताई।
  प्रभाष जी के गुजर जाने के बहुत बाद एक दफा मैं सपरिवार दिल्ली गया था।
उषा भाभी से मिलने पुत्र के साथ मेरी पत्नी रीता जनसत्ता अपार्टमेंट गई थी।
बहुत सारी बातों के साथ -साथ उषा जी ने यह भी बताया कि वे यही पास का फ्लैट सुरेंद्र जी को दिलवाना चाहते थे।
वे चाहते थे कि इन दोनांे फ्लैटों के एक -एक कमरे को मिला कर उसे लाइब्रेरी बना दिया जाए।
उसमें हम दोनों की पुस्तकें व संदर्भ सामग्री रहें।
 हालांकि अपने जीवन काल में प्रभाष जी ने कभी मुझसे यह इच्छा नहीं बताई थी।
यदि बताई होती तो मैं उनसे कहता कि मेरे पुस्तकालय-संदर्भालय में जो कुछ आपको पसंद हो ,उसे मैं मुफ्त में आपको भिजवा दूंगा।
 एक बार उन्होंने पटना के मेरे घर में उसे देख कर कहा था कि देश के किसी पत्रकार के पास ऐसा पुस्तकालय-संदर्भालय  नहीं है।
उषा भाभी से उनकी इच्छा जानने के बाद मैंने महसूस किया कि इस पुस्तकालय-सह -संदर्भालय का प्रभाष जी से बेहतर कोई भी अन्य व्यक्ति इसका सदुपयोग नहीं कर सकता था।मैं तो कत्तई नहीं।
   पर, लगता है कि जिस फूल को ईश्वर अधिक पसंद करता है,उसे समय से पहले ही चुन लेता है।
 प्रभाष जी के गुजर जाने की कोई उम्र नहीं थी।
उनके नहीं रहने के बाद मेरे सहित देश के अनेक पत्रकार  अनाथ से हो गए।
  बिहार के एक दबंग नेता ने एक बार किसी से कहा था कि सुरेंदर का रक्षक जोशी जी हैं।इसलिए उसका कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता।
जोशी जी के नहीं रहने पर उस नेता ने मेरा बिगाड़ भी दिया था।
 खैर, प्रभाष जी मेरे पीछे में यह कहा करते थे कि धीरेंद्र श्रीवास्तव और सुरेंद्र किशोर के लिए कुछ और करना चाहता हूं।
चूंकि पटना में विशेष संवाददाता से बड़ा पद मुझे नहीं दे सकते थे,इसलिए उन्होंने 1998 में लखनउ से हेमंत शर्मा के साथ-साथ पटना से मेरा भी तबादला दिल्ली करवा दिया था।
  मैंने कभी खुद को दिल्ली के अनुकूल नहीं पाया।इसलिए उनसे विनती करके एक महीने बाद ही फिर पटना लौट आया।
  मेरी बदली के पीछे उनका उद्देश्य मेरा प्रमोशन था जिसका हकदार वे मुझे समझते थे।
अपने कार्यकाल में राहुल देव भी मुझे दिल्ली बुलाकर बड़ा पद देना चाहते थे।मैं उनका भी आभारी हूं।
   मैं जो भी बन पाया हूं ,उसमें प्रभाष जी का सबसे बड़ा योगदान रहा  है।
उन्होंने खुद पर खतरा व नुकसान उठाकर भी अन्य सहकर्मियों के साथ -साथ हमेशा ही मेरा भी बचाव किया।
यहां तक कि सती प्रथा वाले चर्चित संपादकीय की जिम्मेवारी भी प्रभाष जी ने खुद पर ले ली थी जबकि उसके लेखक कोई और थे।
याद रहे कि अदमनीय अखबार जनसत्ता के संवाददाताओं पर सत्ताधारी नेताओं का तरह -तरह से भारी दबाव रहा करता  था।
दबाव डालने वालों में गोयनका जी के मददगार नेता भी शामिल थे।
पर जोशी जी ने उनकी भी कभी परवाह नहीं की।इसके लिए रामनाथ गोयनका भी धन्यवाद के पात्र थे। 
 कुल मिलाकर इस संक्षिप्त विवरण में यही कहा जा सकता है कि प्रभाष जोशी के बाद कोई प्रभाष जोशी पैदा नहीं हुआ।
आज जो माहौल है,उसमें संभवतः होगा भी नहीं।
होने नहीं दिया जाएगा।
बाबरी मस्जिद को ढाहे जाने के बाद प्रभाष जी भावुक हो उठे थे।
उसके बाद उन्होंने कुछ खास संगठनों के खिलाफ खूब लिखे।
पर उसमें उनकी भावना थी न कि उनका कोई एजेंडा।
इसीलिए फिर भी संघ से जुड़े कई लोगों का उनके प्रति आदर कम नहीं हुआ। 
   राजेंद्र माथुर के साथ-साथ उन्हें भी हाल के वर्षों की पत्रकारिता का युग पुरुष ही कहा जाएगा।
      
   

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