बुधवार, 17 जुलाई 2019

    श्रमदान से समाजसेवा
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 बुंदेल खंड के एक गांव में पानी की समस्या को एक बाबा ने किस तरह हल किया है,उसकी कहानी दैनिक आज ने छापी है।
 हमीर पुर जिले के बड़ा पचखुरा गांव में पानी की समस्या किशनपाल सिंह उर्फ कृष्णानंद बाबा ने हल की।
चार साल में अकेले परिश्रम करके 8 बीघे में फैले तालाब की गहरी खुदाई करके बाबा ने उसे पुनर्जीवित कर दिया है।
   इस देश में मनरेगा के पैसे का सदुपयोग हो रहा होता तो 
कृष्णानंद को यह काम नहीं करना पड़ता।
  खैर, मैंने पचास के दशक में सारण जिले के अपने गांव और आसपास श्रमदान से स्वयंसेवी लोगों को बांध,तालाब और आहर के काम करते देखा है।
  मेरे गांव में उन दिनों एक शांति बाबा आते थे।मेरे दालान में बैठते थे।
करीब सात फीट के कसरती शरीर वाले बाबा घोड़े पर चढ़कर आते थे।हाथ में भाला होता था।राजस्थानी परिधान में होते थे।
हमारे यहां आने पर उन्हें दूध दिया जाता था।
 हर बरसात से पहले आसपास के बांधों की मरम्मत श्रमदान से वे कराते थे।कोई भी ग्रामीण उनके आदेश का उलंघन नहीं कर सकता था।
  मूलतः वे राजस्थान के राजपूत थे और दिघवारा में गंगा किनारे आश्रम बना रखा था।
  साठ के दशक में मैंने दाउद पुर के पास के साध पुर छत्र गांव में केदार नाथ सिंह नामक शिक्षक को लोगों से श्रमदान के जरिए आहर पोखर की उड़ाही कराते देखा था।
मास्टर साहब खुद भी श्रमदान करते थे।
साध पुर मेरे बहनोई का गांव है जहां मैं अक्सर जाया करता था।  
  उन दिनों सिंचाई व बाढ़ नियंत्रण के लिए सरकार के पास अधिक पैसे नहीं हुआ करते थे।पर,तब तक  गांवों का सामाजिक बंधन और बुजुर्गांे का अघोषित  अभिभावकत्व आज की तरह मरा नहीं था।
इसलिए मिलजुल कर लोग श्रमदान करते थे।
-2019-


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