दिल्ली के आवासीय इलाकों में स्थित व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को ‘सील’ करने का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने बहुत पहले दिया था।
पर, संभवतः सीलिंग का वह काम आज तक नहीं हो सका।
यदि यह खबर गलत हो तो कोई मित्र मुझे वास्तविकता बता दें।
पर, पटना नगर निगम ने पटना के आवासीय इलाकों के व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को बंद कराने के लिए नोटिस दे दिए हैं।
नियम-कानून जब दिल्ली में लागू नहीं हो पा रहा है तो वही काम पटना में कैसे लागू होगा,यह देखना दिलचस्प होगा।
यदि यह काम हो जाए तो उससे लगेगा कि देश में कानून का राज है।
पर, यह असंभव काम है।क्योंकि निहितस्वार्थी तत्व इस देश में किसी भी सरकार या अदालत से अधिक ‘ताकत’ रखते हैं।
जिस राज्य में कोई जिलाधिकारी जब अपने अधीनस्थ कर्मचारियों तक को कार्य अवधि में अपने आॅफिस में उपस्थित होने के लिए बाध्य तक नहीं कर सकता,उस राज्य में बड़े- बड़े लोगों के व्यावसायिक संस्थानों को शासन कैसे हटवा सकता है ?
उन नियम भंजकों के लिए तो अब इस देश में एक कल्याणकारी तानाशाह की जरूरत महसूस की जा रही है।
खैर मैंने हाल में भी पटना की मुख्य सड़कों पर पार्किंग की जगह छोड़े बिना बड़े -बड़े व्यावसायिक भवनों का निर्माण होते देखा है।
किनकी साठगांठ से वे आलीशान भवन बेधड़क बन रहे हैं,उसकी खोज- खबर लिए बिना संबंधित हुक्मरान अलग से मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डाल रहे हैं।
वह उनके वश की बात नहीं।
जो शासन पटना हाईकोर्ट के कड़े निदेशों के बावजूद पटना की मुख्य सड़कों पर बीचोंबीच पैसे लेकर दुकानें सजवाने से थानेदारों तक को नहीं रोक सकता है,वह आवासीय इलाकों से प्रभावशाली लोगों के व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को भला क्या खाकर हटाएगा ?
इस पहल को कुछ लोग बस मजाक और कुछ दूसरे लोग कुछ और ही समझ रहे हैं !
--27 जुलाई 2019
पर, संभवतः सीलिंग का वह काम आज तक नहीं हो सका।
यदि यह खबर गलत हो तो कोई मित्र मुझे वास्तविकता बता दें।
पर, पटना नगर निगम ने पटना के आवासीय इलाकों के व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को बंद कराने के लिए नोटिस दे दिए हैं।
नियम-कानून जब दिल्ली में लागू नहीं हो पा रहा है तो वही काम पटना में कैसे लागू होगा,यह देखना दिलचस्प होगा।
यदि यह काम हो जाए तो उससे लगेगा कि देश में कानून का राज है।
पर, यह असंभव काम है।क्योंकि निहितस्वार्थी तत्व इस देश में किसी भी सरकार या अदालत से अधिक ‘ताकत’ रखते हैं।
जिस राज्य में कोई जिलाधिकारी जब अपने अधीनस्थ कर्मचारियों तक को कार्य अवधि में अपने आॅफिस में उपस्थित होने के लिए बाध्य तक नहीं कर सकता,उस राज्य में बड़े- बड़े लोगों के व्यावसायिक संस्थानों को शासन कैसे हटवा सकता है ?
उन नियम भंजकों के लिए तो अब इस देश में एक कल्याणकारी तानाशाह की जरूरत महसूस की जा रही है।
खैर मैंने हाल में भी पटना की मुख्य सड़कों पर पार्किंग की जगह छोड़े बिना बड़े -बड़े व्यावसायिक भवनों का निर्माण होते देखा है।
किनकी साठगांठ से वे आलीशान भवन बेधड़क बन रहे हैं,उसकी खोज- खबर लिए बिना संबंधित हुक्मरान अलग से मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डाल रहे हैं।
वह उनके वश की बात नहीं।
जो शासन पटना हाईकोर्ट के कड़े निदेशों के बावजूद पटना की मुख्य सड़कों पर बीचोंबीच पैसे लेकर दुकानें सजवाने से थानेदारों तक को नहीं रोक सकता है,वह आवासीय इलाकों से प्रभावशाली लोगों के व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को भला क्या खाकर हटाएगा ?
इस पहल को कुछ लोग बस मजाक और कुछ दूसरे लोग कुछ और ही समझ रहे हैं !
--27 जुलाई 2019
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें