रविवार, 14 जुलाई 2019

वोहरा रपट से धूल झाड़ने का अवसर सुरेंद्र किशोर


आज से बेहतर अवसर  कोई और हो ही नहीं हो सकता था।
माफिया-नेता अफसर गठजोड के खिलाफ कार्रवाई
के लिए यह सर्वोत्तम अवसर है। 
यह अवसर वोहरा कमेटी की  धूल खा रही रपट को गृह मंत्रालय की आलमारी से निकालने का है।रपट 1993 में सरकार को समर्पित की गई।
  रपट में माफिया-नेता- अफसर गठजोड¬ के खिलाफ कार्रवाई के उपायों का विवरण है।नोडल एजेंसी बनाने की जरूरत बताई गई है।
 रपट में देश की जिन खतरनाक स्थितियों का विवरण है,उनसेे निपटने के साहस वाली सरकार केंद्र में एक बार  फिर बन चुकी है।
  और अधिक मजबूती के साथ। 
आर्थिक क्षेत्र में सक्रिय लाॅबियों,तस्कर गिरोहों ,माफिया तत्वों के साथ नेताओं और अफसरों के बने गंठबंधन  को  तोड़ने के ठोस उपाय वोहरा रपट में मौजद हैं।
  रपट  इतनी सनसनीखेज है कि उसे तत्कालीन सरकार ने अपनी ओर से जाहिर तक नहीं की।
रपट की तीन ही प्रतियां तैयार की गई थीं।
 पिछले पांच वर्षों में पहली बार उन माफिया तत्वों के खिलाफ कार्रवाई की शुरूआत हुई  जिनकी चर्चा वोहरा रपट में है।
 पर अभी उन तत्वों पर निर्णायक हमला अभी बाकी  है।
देश के लिए यह अच्छी बात है कि मौजूदा सरकार में उन तत्वों की रक्षा करने वाले कोई मौजूद नहीं है।बल्कि हमले का हौसला रखने वाले अब शीर्ष पर हैं।
   इन्हीं तत्वों और उनके लगुए-भगुए ने पिछले पांच साल में मोदी सरकार को तरह -तरह से परेशान किया।
पर इस चुनाव में मतदाताओं ने उन्हें और उनके संरक्षकों को परोक्ष रूप से चेतावनी दे दी है।
   मूल माफियाओं की जड़ें अभी बाकी हैं।उनमें मट्ठा डालने की ऐतिहासिक जरूरत है।
 1993 में यदि वोहरा रपट पर कार्रवाई हुई होती तो दस साल पहले चर्चा में आए नाडिया टेप की कहानी के पात्र पहले ही जमीन्दोज हो चुके होते।
   पर लगता है कि अब उस सफाए का श्रेय मोदी-शाह की जोड़ी को मिलना है।
गुजरात में  ऐसे माफियाओं से भिड़कर उन्हें पराजित करने का अनुभव इनके पास हैं।
 मुम्बई में 1993 में हुए भीषण बम विस्फोटों की पृष्ठभ्ज्ञूमि में वोहरा कमेटी कव गठन किया गया था।वोहरा तब गृह सचिव थे।
   वोहरा समिति ने 1993 के ही अक्तूबर में अपनी सिफारिश केंद्र सरकार को दे दी थी।सिफारिश आर्थिक क्षेत्र में सक्रिय लाॅबियों,तस्कर गिरोहों ,माफिया तत्वों के साथ नेताओं और अफसरों के बने गंठबंधन  को  तोड़ने के ठोस उपाय बताए गए।

  पांच दिसंबर, 1993 को तत्कालीन केंद्रीय गृह सचिव  एन.एन.वोहरा ने अपनी सनसनीखेज रपट गृह मंत्री को सौंपी थी।
  गोपनीयता बनाए रखने के लिए रपट की तीन ही प्रतियां तैयार की गई थीं।
रपट में कहा गया  कि ‘ इस देश में अपराधी गिरोहों ,हथियारबंद सेनाओं, नशीली दवाओं का व्यापार करने वाले माफिया गिरोहों,तस्कर गिरोहों,आर्थिक क्षेत्रों में सक्रिय लाॅबियों का तेजी से प्रसार हुआ है।
 इन लोगों ने विगत कुछ वर्षों के दौरान स्थानीय स्तर पर नौकरशाहों, सरकारी पदों पर आसीन व्यक्तियों, राजनेताओं,मीडिया से जुड़े व्यक्तियों तथा गैर सरकारी क्षेत्रों के महत्वपूर्ण पदों पर आसीन व्यक्तियों के साथ व्यापक संपर्क विकसित किये हैं।इनमें से कुछ सिंडिकेटों की विदेशी आसूचना एजेंसियों के साथ- साथ अन्य अंतरराष्ट्रीय सबंध भी हैं।’

 संभवतः  रपट की सनसनीखेज बातों को देखते हुए ही केंद्र  सरकार ने उसे सार्वजनिक नहीं किया।
  इस रपट को एक बार फिर पढ़ने से साफ लगता है कि वोहरा ने नाडिया टेप मामले का पूर्वाभास पहले ही करा दिया था। इसका भी पूर्वाभास था कि एक दिन बड़े आर्थिक अपराधियों को  देश से भगा देने का रास्ता बड़ी कुर्सियों पर बैठे लोग ही साफ कर देंगेे।  
     रपट में यह भी कहा गया  कि इस देश के कुछ बड़े प्रदेशों  में इन गिरोहों को स्थानीय स्तर पर  राजनीतिक दलों के नेताओं और सरकारी पदों पर आसीन व्यक्तियों का संरक्षण हासिल है।कुछ राजनीतिक नेतागण इन गिरोहों, हथियारबंद सेनाओं के नेता बन जाते हैं तथा कुछ ही वर्षों में स्थानीय निकायोंं, राज्य की विधान सभाओं तथा संसद के लिए निर्वाचित हो जाते हैं।इसके परिणामस्वरूप इन तत्वों ने अत्यधिक राजनैतिक प्रभाव प्राप्त कर लिया है जिसके कारण प्रशासन को सुचारू रूप से चलाने तथा आम आदमी के जानमाल की हिफाजत करने की दिशा में गंभीर बाधा उत्पन्न हो जाती है।’
  अब यह देखना है कि  इस मामले में 1993 और 2019 के बीच कितना फर्क आया है ? जितना भी सकारात्मक फर्क आया है,उसके लिए शासन को धन्यवाद।किन्तु जितना नहीं आया है उसके लिए कौन -कौन लोग जिम्मेदार हैं ? 
 अन्य महत्वपूर्ण अफसरों के साथ -साथ सी.बी.आई.और आई.बी.निदेशक भी उच्चस्तरीय  वोहरा समिति के सदस्य थे। वोहरा समिति ने  यह भी कह दिया  
था कि ‘तस्करों के बड़े -बड़े सिंडिकेट देश के भीतर छा गये हैं और उन्होंने हवाला लेन देनों ,काला धन के परिसंचरण सहित विभिन्न आर्थिक कार्यकलापों को प्रदूषित कर दिया है।उनके द्वारा भ्रष्ट समानांतर अर्थ व्यवस्था चलाये जाने के कारण देश की आर्थिक संरचना को गंभीर क्षति पहुंची है।इन सिंडिकेटों ने  सरकारी तंत्र को सभी स्तरों पर सफलतापूर्वक भ्रष्ट किया हुआ है।इन तत्वों ने जांच -पड़ताल तथा अभियोजन अभिकरणों को इस तरह प्रभावित किया हुआ है कि उन्हें अपना काम चलाने में अत्यंत कठिनाइयों को सामना करना पड़ रहा है।’
  रपट में यह भी कहा गया  कि ‘कुछ माफिया तत्व नारकोटिक्स,ड्रग्स और हथियारों की तस्करी में संलिप्त हैं और उन्होंने विशेष कर जम्मू और कश्मीर,पंजाब,गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में अपना एक नारको-आतंक का तंत्र स्थापित कर लिया है।चुनाव लड़ने जैसे कार्यों में खर्च की जाने वाली राशि के मददेनजर राजनीतिज्ञ भी इन तत्वों के चंगुल में आ गये हैं।रोकथाम और खोजी तंत्र से इन माफियाओं ने गंभीर संबंध बना लिया है।यह वायरस देश के लगभग सभी केंद्रों में तटवर्ती स्थानों पर फैल गया है।
  सीमावर्ती क्षेत्र इससे विशेष रूप से पीडि़त  हैं।समिति की बैठक में आई.बी.के निदेशक ने साफ- साफ कहा था कि माफिया तंत्र ने वास्तव में एक समानांतर सरकार चला कर राज्य तंत्र को एक विसंगति में धकेल दिया है।इसलिए यह अत्यंत आवश्यक है कि इस प्रकार के संकट से प्रभावी रूप से निपटने के लिए एक संस्थान स्थापित किया जाए।’  
    पर, देश को गर्त में जाने से  बचाने के लिए गत 26  साल में इस दिशा में भरपूर प्रयास हुए होते तो स्थिति और नहीं  बिगड़ती  ।इस बीच इस देश के संसाधनों को लूटने वालों ने अपनी कार्य शैली व रणनीति में भी समय के साथ बदलाव कर लिया है। 
   वोहरा समिति ने ऐसे राष्ट्रविरोधी तत्वों को सजा दिलाने का प्रबंध करने की भी सलाह दी थी।पर उन सलाहों को नजरअंदाज कर दिया गया। 
   सवाल मंशा का है । इस देश के अधिकतर  नेताओं की मंशा सही नहीं है।यदि किसी की सही है भी तो वे भ्रष्ट तत्वों के सामने लाचार नजर आ रहे हंै ।इसलिए तरह -तरह के भ्रष्टों पर निर्णायक हमला नहीं हो पा रहा है।
   समिति ने यह सलाह दी है कि गृह मंत्रालय के तहत एक  नोडल एजेंसी  तैयार हो जो देश मेंे जो भी गलत काम हो रहे हैं,जिनकी चर्चा ऊपर की जा चुकी  है ,उसकी सूचना वह एजेंसी एकत्र करे।ऐसी व्यवस्था की जाए ताकि सूचनाएं लीक नहीं हों।क्योंकि सूचनाएं लीक होने से राजनीतिक दबाव पड़ने लगता है और ताकतवर लोगों के खिलाफ कार्रवाई खतरे में पड़ जाती है।यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि नोडल एजेंसी 
पर किसी तरह का दबाव नहीं पड़ सके और वह सूचनाओं को लेकर मामले को तार्किक परिणति तक पहुंचा सके।
  वोहरा समिति ने अपनी रपट में बार -बार इस बात का उल्लेख किया है कि राजनीतिक संरक्षण से ही इस देश में तरह -तरह के गोरख धंधे हो रहे हैं।रपट में यह साफ -साफ लिखा गया है कि ‘यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि आपराधिक सिंडिकेटों के राज्यों व केंद्र के वरिष्ठ सरकारी अफसरों या राजनीतिक नेताओं के साथ साठगांठ के  बारे में सूचना के किसी प्रकार के लीकेज का सरकार के काम काज पर अस्थिरकारी  प्रभाव हो सकता है।’
 क्या  ऐसी कारगर नोडल एजेंसी अब भी नहीं बन सकती ? क्या अब भी  माफिया-नेता-अफसर गठजोड़ को तोड़ा नहीं जा सकता ?
क्यों नहीं  ?
मोदी है तो यह भी मुमकिन है।


  

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